world cancer day 2020: विकसित देशों की तुलना में भारत में कम हैं कैंसर रोगी
world cancer day 2020 दुनिया की तुलना में भारत में कैंसर रोगियों की संख्या कम है लेकिन आबादी अधिक होने की वजह से यहां कैंसर रोगियों की संख्या अधिक मालूम पड़ती है।
मुंबई, ओमप्रकाश तिवारी। भारत में कैंसर का रोग भले ही हर साल लाखों जिंदगियां लील रहा हो, लेकिन दुनिया की तुलना में भारत में इसके रोगियों की संख्या अब भी एक तिहाई ही है। यदि सावधानी बरती जाए तो इसे और कम किया जा सकता है।
गांव के मुकाबले शहरों में कैंसर रोगी अधिक
मुंबई स्थित कैंसर के सबसे बड़े अस्पताल टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल एवं रिसर्च सेंटर के उपनिदेशक डॉ. पंकज चतुर्वेदी के अनुसार विकसित देशों की तुलना में भारत में कैंसर रोगियों की संख्या एक तिहाई ही होती है। यानी अमरीका जैसे विकसित देशों में यदि 100 में तीन व्यक्तियों को कैंसर होता है, तो भारत में 100 में सिर्फ एक को। इसके बावजूद भारत में तीस लाख लोग कैंसर से पीड़ित हैं, और हर साल 10 लाख नए रोगी इनमें जुड़ रहे हैं।
चूंकि भारत की आबादी अधिक है। इसलिए यहां कैंसर रोगियों की संख्या अधिक मालूम पड़ती है। डॉ. चतुर्वेदी का मानना है कि देश में शहरीकरण बढ़ने के साथ-साथ यह रोग अपने पांव और पसारता जा रहा है। शहरों में कैंसर रोगियों की संख्या गांवों की तुलना में डेढ़ गुना अधिक होती है। क्योंकि शहरों का अनियंत्रित खान-पान एवं पाश्चात्य जीवन शैली कैंसर के विस्तार में सहायक हो रही है।
कैंसर विशेषज्ञ चिकित्सकों एवं संसाधनों की कमी
जहां तक कैंसर उपचार सुविधाओं का सवाल है, भारत में भी इसके सारे उपचार मौजूद हैं। लेकिन कैंसर विशेषज्ञ चिकित्सकों एवं संसाधनों की कमी है। रेडियो थेरेपी एवं कीमो थेरेपी की सुविधाएं कम हैं। डॉ. चतुर्वेदी मानते हैं कि भारत जैसे देश में कोई व्यक्ति ऑपरेशन करवाने के लिए तो एक-दो बार मुंबई-दिल्ली जैसे बड़े शहरों में जा सकता है। लेकिन लंबे समय तक वहां रहकर रेडियो थेरेपी एवं कीमो थेरेपी के कोर्स कर पाना उसके लिए मुश्किल होता है। इसलिए भारत में इनकी सुविधाएं जिला स्तर पर, वह भी सस्ती दरों पर जुटाई जानी चाहिएं। ताकि रोगी अपने घर के आसपास रहते हुए इनका लाभ ले सके।
पुरुषों में मुख कैंसर अधिक
पुरुषों में सबसे ज्यादा होने वाले मुख कैंसर को रोकने के लिए कई वर्षों से अभियान चलाते आ रहे डॉ. पंकज का मानना है कि शराब एवं तंबाकू का बढ़ता सेवन कैंसर के विस्तार में मददगार साबित हो रहा है। डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ, शीतल पेय एवं जंक फूड भी नुकसानदेह हैं। गुटखा एवं पान मसाला का विज्ञापन करने वाली फिल्मी हस्तियों की ओर इशारा करते हुए डॉ. चतुर्वेदी कहते हैं कि ऐसे लोग यदि सिगरेट, शराब एवं पान मसाला के विज्ञापन से दूर रहें तो इस रोग पर नियंत्रण पाने में वह बड़ा योगदान दे सकते हैं।