World Breastfeeding Week: मां के दूध पर बच्चे का अधिकार, बेबी फूड के जाल में उलझी आधुनिक माताएं
आज की कुछ आधुनिक माताएं बेबी फूड के जाल में ऐसे उलझ गई हैं कि अपने ही बच्चे को अपना दूध पिलाना उन्हें अच्छा नहीं लगता। यह एक मासूम को उसके अधिकार से वंचित करने का षड्यंत्र है जिसका शिकार आज की माताएं हो रही हैं।
[डा. महेश परिमल] आज देश में कुपोषण से मासूमों की मौतें हो रही हैं। विश्व में कुपोषण से जितनी मौतें हो रही हैं, उसका 40 प्रतिशत हिस्सा केवल भारत के पाले में आता है। इस दिशा में जिस तरह के जागरूकता की आवश्यकता है, उतनी अभी तक आम नागरिकों में नहीं पहुंच पाई है। दूसरी ओर आज की कुछ आधुनिक माताएं बेबी फूड के जाल में ऐसे उलझ गई हैं कि अपने ही बच्चे को अपना दूध पिलाना उन्हें अच्छा नहीं लगता। यह एक मासूम को उसके अधिकार से वंचित करने का षड्यंत्र है, जिसका शिकार आज की माताएं हो रही हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियों का जाल हमें इस तरह से भ्रमित कर रहा है कि हम चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं। यह विकट स्थिति है। हमें इस मायाजाल से बचकर निकलना ही होगा।
हालांकि कई माताएं कामकाजी होती हैं। इन माताओं के लिए अपने बच्चे को दूध पिलाना सचमुच एक गंभीर समस्या है। अभी इसे भारतीय परिवेश में नहीं देखा गया है। किंतु अमेरिका में अब माताओं के लिए उनकी आफिस में यह व्यवस्था की जाने लगी है, जहां वे इत्मीनान से अपने बच्चे को दूध पिला सकती हैं। अमेरिकी महिलाएं इसके लिए कोर्ट जा रही हैं और आंदोलन कर रही हैं। अभी कुछ महीने पूर्व अमेरिका में एक तस्वीर वायरल हुई थी जिसमें कई महिलाएं एक डिपार्टमेंटल स्टोर की सीढ़ियों पर अपने बच्चों को दूध पिला रही हैं। यह उस आंदोलन का एक छोटा सा हिस्सा था, जिसमें माताएं अपने बच्चों को दूध पिलाने के लिए स्थान की मांग कर रही हैं।आखिर कुछ भारतीय माताएं ऐसा क्यों सोचती हैं कि वे यदि अपने बच्चे को दूध पिलाएंगी तो उसका शरीर बेडौल हो जाएगा। क्या शरीर का आकर्षक बच्चे के भविष्य में अधिक आवश्यक है? इस दृष्टि से देखा जाए तो भारत के गरीब बच्चे अधिक खुशकिस्मत हैं। उन्हें मां के दूध के सिवाय और कुछ नहीं मिलता। इसलिए बच्चा कम से कम एक साल तक तो मां के दूध से वंचित नहीं रहता। बच्चे को दूध न पिलाने की प्रवृत्ति कुछ शिक्षित महिलाओं में ही अधिक देखी जाती है।
अभी हमारे देश में ऐसी व्यवस्था कम ही हो पाई है, जहां मां का दूध फ्रिज करके रखा जाता है। ऐसी माताएं भी नहीं हैं, जो अपने दूध को मिल्क बैंक में देती हों। हां दूसरों के बच्चों को अपना दूध पिलाने की परंपरा अवश्य है। पर यह परंपरा केवल उन माताओं तक ही सीमित है जो गरीबी से त्रस्त होकर केवल धन कमाने के लिए ऐसा कर रही हैं। माताएं यह न भूलें कि वे अपनी संतान को एक वर्ष तक अपना दूध पिलाकर उसका भविष्य संवार रही हैं, उसके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को विकसित कर रही हैं और उसे सबल बना रही हैं, भविष्य में विषमताओं से जूझने के लिए। अंत में उन माताओं को प्रणाम, जो आज भी अपने दूध पर संतान का अधिकार समझती हैं, उसे दूध पिलाती हैं।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)