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नीलामी में जीते, खनन शुरू करने में छूट रहा पसीना

कोयला नीलामी में ऊंची बोली लगाकर खदान जीतने वाली कंपनियां परेशान हैं। नीलामी के आठ महीने बाद भी यादातर कंपनियों को लीज आवंटित नहीं की गई है। नीलामी के माध्यम से इन नौ कंपनियों ने कोल ब्लॉक हासिल किए थे।

By Abhishek Pratap SinghEdited By: Published: Fri, 08 Jan 2016 08:49 AM (IST)Updated: Fri, 08 Jan 2016 08:56 AM (IST)
नीलामी में जीते, खनन शुरू करने में छूट रहा पसीना

रांची। कोयला नीलामी में ऊंची बोली लगाकर खदान जीतने वाली कंपनियां परेशान हैं। नीलामी के आठ महीने बाद भी यादातर कंपनियों को लीज आवंटित नहीं की गई है। नीलामी के माध्यम से इन नौ कंपनियों ने कोल ब्लॉक हासिल किए थे।

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वहीं छह कोल ब्लॉक सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को दी गई हैं। खनन प्रक्रिया जल्द शुरू हो इसके लिए राय सरकार की तरफ से लगातार कोशिशें की जा रही हैं। मुख्य सचिव की अध्यक्षता में कमेटी गठित की गई है। कमेटी लगातार जिला प्रशासन, खान विभाग और उद्योग विभाग के साथ समन्वय स्थापित कर प्रक्रिया की रफ्तार तेज कर रही है।इसके बाद भी आठ माह में मात्र ¨हडाल्को और एस्सार पावर की लीज ही स्वीकृत हुई है।


ज्यादातर कंपनियों की लीज का मामला द्वितीय चरण की पर्यावरण स्वीकृति की वजह से फंसा हुआ है। नए नियमों के मुताबिक बगैर द्वितीय चरण की स्वीकृति के खनन कार्य शुरू नहीं हो सकता। मुख्यमंत्री इस मसले को सुलझाने के लिए दो दिन पूर्व केंद्रीय वन रायमंत्री से चर्चा कर चुके हैं। राय सरकार विकास योजना के लिए क्षतिपूरक वन रोपण के मॉडल में बदलाव चाहती है।

राय का कहना है कि जमीन के बदले दो गुणी राशि ली जाए। झारखंड के इस अनुरोध पर केंद्र की तरफ से कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला है। वहीं कई कंपनियां पहले चरण की शर्तो को भी पूरा नहीं कर पाई हैं। ऐसे में उन्हें द्वितीय चरण की स्वीकृति फिलहाल नहीं मिलती दिख रही है।


क्या हो रहा नुकसान :

खनन शुरू नहीं होने का नुकसान कंपनियों, जनता और सरकार तीनों को उठाना पड़ रहा है। कंपनियों ने नीलामी की आधार राशि केंद्र सरकार के पास जमा कर दी है। करोड़ों निवेश करने के बाद भी इन्हें खनन शुरू करने में कामयाबी नहीं मिल पाई है। जिससे निवेश की संभावनाओं को झटका लग रहा है। वहीं चालू खदानों के बंद होने से स्थानीय कारोबार और रोजगार पर संकट के बादल छा गए हैं।

पाकुड़ के पंचुवाड़ा और पलामू के कठौतिया कोयला खदान की वजह से विस्थापित लोगों को उनका पुनर्वास की शर्तो के तहत मिलने वाली सुविधाएं मिलनी बंद हो गई हैं। इस वजह से इनके सामने भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो गई है। वहीं राय सरकार को राजस्व का नुकसान उठाना पड़ रहा है। खदान चालू होने से सरकार को रॉयल्टी, सेल टैक्स आदि मिलना आरंभ होगा।


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