राम, रावण, कुंभकरण... इस रामलीला के हर किरदार में महिलाएं करती हैं मंचन
रंगमंच अभिव्यक्ति का माध्यम है। रामायण हमें आदर्श परिवार आदर्श पति व पत्नी के आदर्श चरित्र से रूबरू कराती है। एक महिला रोजाना कई किरदार निभाती है।
अंबुज मिश्र, शाहजहांपुर। उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर स्थित कृभको फैक्ट्री की महिला कर्मियों ने मिथक तोड़ दिया है। इनकी रामलीला में हर किरदार महिलाओं का होता है। वे न सिर्फ रामलीला के मंच का नया दौर विकसित कर रहीं, बल्कि नारी सशक्तीकरण का संदेश भी दे रहीं हैं। वर्ष 1990 की बात है, यहां स्थित ऑर्डिनेंस क्लॉथिंग फैक्ट्री में होने वाली रामलीला में जब संगीता गुप्ता सीता का किरदार निभाने उतरीं तो अधिकतर कलाकार मंच छोड़कर चले गए।
यह कहते हुए कि रामलीला मंचन में सिर्फ पुरुष ही अभिनय करें, महिलाएं नहीं। ऐसी पाबंदियां और रूढ़ियां अकसर जगह-जगह सामने आती रहीं। मगर शाहजहांपुर कृभको (कृषक भारती कोऑपरेटिव लिमिटेड) फैक्ट्री की महिलाओं ने इन मिथकों और रूढ़ियों को तोड़ दिया। जी हां, राम से लेकर रावण तक, इनकी रामलीला में हर किरदार महिलाएं ही निभाती हैं।
देना था संदेश
पिछले साल से इस रामलीला की शुरुआत फैक्ट्री के उपाध्यक्ष रवि चोपड़ा की पत्नी नीतू चोपड़ा ने की। कहती हैं कि कई जगह पढ़ा और सुना कि महिलाओं को पवित्रता का हवाला देकर रामलीला के पात्रों की भूमिका नहीं निभाने दी जाती। तब सोचा कि इस पाबंदी को तोड़कर ऐसी रामलीला करें, जिसमें सभी कलाकार महिलाएं ही हों। दशहरा के दिन इस लीला का मंचन होता है। इससे 15 दिन पहले से अभ्यास शुरू हो जाता है।
महिला नहीं थी, इसलिए 12 साल निभाते रहे सुलोचना का किरदार
शाहजहांपुर में आर्डिनेंस क्लॉथिंग फैक्ट्री में होने वाली रामलीला में 12 साल तक सुलोचना का रोल निभाने वाले 70 साल के सत्यनारायण जुगनू कहते हैं कि वहां महिलाओं के किरदार तक पुरुष ही निभाते रहे। नाट्य परंपरा का तर्क देते हुए तर्क दिया जाता था कि नाटक का नायक प्रख्यात वंश का प्रतापी पुरुष होना चाहिए। लेकिन अब रूढ़ियां टूट रहीं हैं।
पहली बार नाटक के मंच पर आईं थीं गुलाब बाई
1931 में फर्रुखाबाद निवासी गुलाब बाई को पहली महिला कलाकार बताया जाता है, जिन्होंने मंच पर जाकर नौटंकी विधा में अभिनय किया। उस वक्त उनकी उम्र 12 साल थी। उनसे पहले हर किरदार पुरुष निभाते रहे।
रामलीला : भरत मुनि के नाट्य शास्त्र से पारसी थिएटर तक...
भारतीय नाट्यकला का आधार भरत मुनि रचित नाट्य शास्त्र ही रहा है। इसमें नाटक के सभी पात्र पुरुषों के लिए ही निर्दिष्ट थे। लिहाजा लंबे समय तक नाटकों में महिलाओं को मंचन का अवसर नहीं मिला। इधर, पारसी थिएटर ने जब भारतीय सिनेमा की नींव रखना शुरू किया, तब महिलाओं को अभिनय करने का अवसर मिला, जिसे धीरे- धीरे समाज में स्वीकार्यता मिलती गई। इसी का असर रामलीलाओं पर भी दिखा। हालांकि रामलीला के मंचन में महिलाओं को एंट्री तब भी नहीं मिली। उत्तर प्रदेश में राधेश्याम रामायणी ने नौटंकी शैली को विकसित करने में अहम योगदान दिया।
क्या कहते हैं समाजशास्त्री
रंगमंच अभिव्यक्ति का माध्यम है। रामायण हमें आदर्श परिवार, आदर्श पति व पत्नी के आदर्श चरित्र से रूबरू कराती है। एक महिला रोजाना कई किरदार निभाती है। रामलीला में पुरुषों के पात्र भी निभाकर वह बड़ा संदेश दे रहीं हैं। असल मायने में उन्हें अभिव्यक्ति की आजादी भी मिल रही है।
- डॉ नीलम टंडन, समाजशास्त्र विभाग, जीएफ कॉलेज, शाहजहांपुर
लगातार दूसरी बार राम की भूमिका निभा रही हूं। कभी अभिनय नहीं किया था, लेकिन रामायण को कई बार पढ़ा। इस रामलीला ने हम महिलाओं के अंदर आत्मविश्वास को बढ़ाया है।
- कविता झा, राम की भूमिका में
हम रामायण के हर किरदार को जी रहे हैं। अब तक टीवी पर ही रामलीला देखी, लेकिन अब रोल करते हुए पात्रों को महसूस कर रहे हैं।
- सोनिका कुलश्रेष्ठ, भरत की भूमिका में
मैं शिक्षिका हूं, रावण का किरदार निभाती हूं। उनकी चाल, भाव भंगिमा अपनाने के लिए उनके बारे में और पढ़ना पड़ा। कॉलेज के समय में कुछ समय अभिनय किया था, लेकिन रामलीला में रावण का किरदार निभाना अपने आप में अनूठा अनुभव है।
- कनु गौड़, रावण की भूमिका में
मैंने बीटेक किया है। मैं लक्ष्मण का अहम रोल निभा रही हूं। इसके लिए रामायण के अलावा स्टेज शो भी देखे।
- प्रियंका तायल, लक्ष्मण की भूमिका में