आत्मविश्वास आया और आत्मनिर्भर होने लगीं 2,500 महिलाएं
सभी समूहों की महिलाओं ने बचत करके 21 लाख रुपये बैंक में जमा किए हैं। जब भी किसी महिला को जरूरत होती है तो 12 महिलाओं की समिति उसे जरूरत के मुताबिक, पैसे देती है।
मुरैना, अनिल तोमर। बानमोर नया गांव की रंजना राजपूत ने कभी घर से बाहर की दुनिया नहीं देखी थी। पति वीरेन्द्र राजपूत क्रेशर पर मजदूरी करते हैं। ऐसे में घर चलाना भी मुश्किल था। आज स्व-सहायता समूह के माध्यम से वे न केवल स्वयं काम कर रही हैं, बल्कि समूहों से एकत्रित की गई राशि से उधार लेकर बच्चों को भी पढ़ा रही हैं।
यह कहानी मायादेवी राठौर, सुनीता, मुन्नी खां और गीता जैसी करीब 25 सौ महिलाओं की है। एक साल से सभी 150 स्व-सहायता समूहों के माध्यम से ये महिलाएं स्वयं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो रही हैं। इस तरह मिला रास्ता मुन्नी खां व माया देवी बताती हैं कि एक साल पहले उन्हें रेखा राकेश सिंह ने बुलाया और समूह बनाकर काम करने का रास्ता दिखाया। काम देखने के छत्तीसगढ़ भी भेजा। इसके बाद समूहों का गठन किया। अब बानमोर में ही 110 और मुरैना में 40 समूह हैं। इस तरह 150 समूहों में 25 सौ महिलाएं हैं। हर समूह में तकरीबन 15 महिलाएं हैं।
इस तरह हो रही हैं आत्मनिर्भर
150 समूहों में से कुछ समूहों की महिलाओं को सिलाई-कढ़ाई का प्रशिक्षण दिया गया है और कुछ को दोना पत्तल, टेडी बीयर बनाने का। समूहों की महिलाओं को ब्यूटी पार्लर की ट्रेनिंग भी दी गई। इसी तरह उम्र दराज महिलाओं को पापड़, अचार आदि बनाने के लिए ट्रेंड किया और काम शुरू करा दिया।
8वीं पास सुनीता चलाती हैं कंप्यूटर
8वीं पास सुनीता ने वैसे तो सिलाई-कढ़ाई की ट्रेनिंग ली है, लेकिन वे कम्प्यूटर भी सीख रही हैं, जिससे वे अपना हिसाब-किताब रख सकें।
महिलाओं ने एकत्रित किए 21 लाख
सभी समूहों की महिलाओं ने बचत करके 21 लाख रुपये बैंक में जमा किए हैं। जब भी किसी महिला को जरूरत होती है तो 12 महिलाओं की समिति उसे जरूरत के मुताबिक, पैसे देती है। महिला बाद में किस्तों में रुपये वापस कर देती है। कई महिलाओं ने घर के बड़े-बड़े काम निपटाए है। अब इन्हें दूसरों के सामने हाथ नहीं फैलाना पड़ रहा है।
बानमोर के मां शीतला जनहितकारणी महिला मंडल की संचालक रेखा राकेश सिंह बताती हैं कि बानमोर व मुरैना क्षेत्र की आर्थिक रूप से पिछड़ी महिलाओं को जागरूक कर उनके समूह बनवाए हैं, जिससे महिलाएं स्वयं अपने पैरों पर खड़ी हो सकें। एक साल से इन सभी महिलाओं के जीवन स्तर में भी काफी सुधार आया है और उनका आत्मविश्वास बढ़ा है।
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