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महिलाएं अपनी हर जिम्मेदारी निभाते हुए बच्चों की पढ़ाई को लेकर हैं गंभीर, लेकिन जरूरत है सतर्क रहने की...

अगर बच्चे टीनएजर हैं तो वे मॉम का फोन ले लेते हैं। कई बार वे मां के सोशल मीडिया तक को खंगाल डालते हैं। फोन पर दूसरी साइट्स सर्च करने लगते हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 11 Jul 2020 04:11 PM (IST)Updated: Sat, 11 Jul 2020 04:12 PM (IST)
महिलाएं अपनी हर जिम्मेदारी निभाते हुए बच्चों की पढ़ाई को लेकर हैं गंभीर, लेकिन जरूरत है सतर्क रहने की...
महिलाएं अपनी हर जिम्मेदारी निभाते हुए बच्चों की पढ़ाई को लेकर हैं गंभीर, लेकिन जरूरत है सतर्क रहने की...

यशा माथुर। छोटे बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई हो रही है तो मां का साथ बैठना जरूरी है, अगर बच्चे थोड़े बड़े हैं तो उन्हें इंटरनेट सौंप देना बड़ी मुश्किल। बच्चा ठीक से पढ़ रहा है या नहीं? उसे टीचर की बात समझ आ रही है या नहीं? कक्षा के समय स्क्रीन ऑफ कर कुछ और तो नहीं कर रहा? होमवर्क कितना मिला? कैसे पूरे होंगे सारे टास्क? ये सब टेंशन मां की ही है। महिलाएं अपनी हर जिम्मेदारी निभाते हुए बच्चों की पढ़ाई को लेकर भी गंभीर हैं, लेकिन जरूरत है सतर्क रहने की भी...

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पड़ोस के घर में कोरियर वाला आया तो घरवालों ने बोला हमने तो कोई सामान नहीं मंगाया। डिलीवरी ब्वॉय कह रहा है कि मैैम इसी पते से ही ऑर्डर किया गया है। जब पड़ताल हुई तो पता चला कि ऑनलाइन कक्षाओं के लिए मां का स्मार्टफोन बेटी के हाथों में था और उसने अपने मनमर्जी से सामान ऑर्डर कर दिया था। बच्चों की ऑनलाइन कक्षाओं के चक्कर में स्मार्टफोन का उनके हाथों में आना और बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई को मैनेज करना मां के लिए कई तरह की मुश्किलों का सबब बन गया है।

अलर्ट रहना पड़ता है: जब बच्चों के हाथ में स्मार्टफोन, टैब या लैपटॉप आ जाता है तो उनके जिज्ञासु मन को रोक पाना बेहद कठिन काम हो जाता है। अगर बच्चे टीनएजर हैं तो वे मॉम का फोन ले लेते हैं। कई बार वे मां के सोशल मीडिया तक को खंगाल डालते हैं। फोन पर दूसरी साइट्स सर्च करने लगते हैं। अब मां को इस पर भी नजर रखना मुश्किल हो रहा है। सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं निधि। बेटी चौदह साल की है। सुबह दस बजे से ऑनलाइन कक्षाएं शुरू होती हैं तो वे बेटी का पूरा सिस्टम सेट कर देती हैं, लेकिन फिर उन्हें खुद भी लॉगइन करना पड़ता है। वे वर्कफ्रॉम होम में व्यस्त हो जाती हैं, लेकिन हर वक्त मन में लगा रहता कि बेटी तान्या ठीक से पढ़ाई कर रही है न। थोड़ी-थोड़ी देर में आकर देखती हैं। निधि कहती हैं, डर लगता है कि बच्चा इंटरनेट पर भटक न जाए। जब वह पढ़ाई कर लेती है तो मैं इंटरनेट की हिस्ट्री चेक करती हूं कि उसने क्या-क्या सर्च किया है। यह बच्चे पर भरोसा न करने की बात नहीं है, लेकिन अलर्ट रहना पड़ता है।

बढ़ गए मां के काम: अगर छोटे बच्चे की ऑनलाइन कक्षाएं हैं तो भी मां की मुश्किल। उन्हें पूरे टाइम उसके साथ बैठना पड़ता है, जो टीचर बोलते हैं उसे समझना और फिर बच्चे को पढ़ाना या होमवर्क करवाना। यह सब तब है जब घर का सारा काम भी उनके कंधों पर है। रिलेशन व लाइफस्टाइल एक्सपर्ट रचना खन्ना सिंह कहती हैं, आजकल तो नर्सरी की भी क्लासेज हो रही हैं, जबकि इनका कोई मतलब नहीं है। चार साल का बच्चा स्क्रीन के सामने कैसे बैठेगा? मां कामकाजी हैं तो उन्हें अपना काम छोड़कर उनके साथ बैठना पड़ रहा है और फिर टीचर के साथ तो बच्चे ठीक से रहते हैं, लेकिन मम्मी के साथ आसानी से नहीं बैठते हैं। उनकी आंखों पर भी बहुत जोर पड़ रहा है। बच्चों के लिए स्कूल केवल शिक्षा का माध्यम नहीं है। उनके लिए फन भी है। वे अपने पियर ग्रुप से मिलते हैं। घर से बाहर निकल कर मस्ती करने का मौका भी मिलता है उन्हें। खेलकूद अहम हिस्सा है शिक्षा का। इतना होमवर्क मिल रहा है कि उसे करवाना भी मां का टास्क है, लेकिन मां के पास विकल्प ही कहां है। उन्हें अपनी दिनचर्या में से समय निकाल कर बच्चे की पढ़ाई में लगना ही पड़ रहा है।

सकारात्मक रहना है: फोन, बच्चे, कक्षाएं और मां की जिम्मेदारियां, इन सबके बीच सामंजस्य कैसे हो? यह एक प्रश्न है और इस पर बात करने की जरूरत है। इसका सीधा सा समाधान सकारात्मक रहना ही है। होमियोपैथी डॉक्टर हैं अरुणिमा, लेकिन बच्चे छोटे होने के कारण घर पर ही रहती हैं। उनसे बातकर लगा कि जैसे कोई तनाव नहीं है। वह कहती हैं, मुझे लगता है कि पूरे साल की पढ़ाई खराब हो इससे अच्छा तो बच्चे ऑनलाइन ही कुछ पढ़ लें। मेहनत तो बहुत होती है। बच्चे के साथ लगना पड़ता है। मुश्किलें भी आती हैं, लेकिन बच्चे रूटीन में रहते हैं। सब परेशान हो रहे हैं, लेकिन मुझे लगता है कि हम बच्चे पर टीचर्स से ज्यादा अच्छी तरह से ध्यान दे सकते हैं। मेरी बेटी अनिका पहली क्लास में है। गूगल क्लासरूम पर उसकी कक्षाएं चल रही हैं। सुबह दस बजे से दो बजे तक अनिका के साथ रहती हूं। जितनी देर क्लास होती है मुझे बैठना ही पड़ता है। बच्चे खुद से लिख नहीं पाते हैं। पहले लगातार तीन घंटे क्लास होती थी, लेकिन अब बच्चों को आधे घंटे का ब्रेक देते हैं। मैं तो उसी समय रिवाइज भी करवा देती हूं। बीच-बीच में काम कर लेती हूं। सुबह जल्दी उठकर काम निपटाती हूं। स्कूल एक्टीविटीज भी कराते हैं। हम बच्चों के वीडियोज भी भेजते हैं। होमवर्क तो वैसे भी करवाना ही पड़ता है।

मां के लिए टिप्स

  • वेब साइट्स लॉक रखें।
  • फोन लॉक रखें, जब क्लास हो तब ही दें।
  • समय-समय पर फोन और लैपटॉप की नेट हिस्ट्री चेक करती रहें।
  • टीचर्स से टच में रहें। इससे बच्चे को पता रहेगा कि मम्मी की टीचर से बात होती रहती है।

बच्चे गंभीर नहीं हो पाते: दो बच्चों की पढ़ाई को संभालने के साथ जुंबा की ऑनलाइन ट्रेनिंग दे रही सोनल अग्रवाल अपने समय को बेहद सुचारू रूप से प्रयोग कर बच्चों की पढ़ाई करवा रही हैं और अपना काम भी कर रही हैं, पर बच्चों की भलाई के लिए वह स्कूल की पढ़ाई को ही प्राथमिकता देती हैं। वह कहती हैं कि दबाव तो बढ़ा है, लेकिन इन कक्षाओं से बच्चे वापस से पढ़ाई के टच में जरूर आ गए हैं। इनसे बच्चों को लाभ हुआ है, लेकिन स्कूल जाकर बच्चों को पढ़ाई की गंभीरता का जो अहसास होता है वह वहां जाकर ही आएगा। इस समय मजबूरी है तो ऑनलाइन कक्षाएं ठीक हैं, लेकिन सब कुछ सामान्य होने पर बच्चों का स्कूल जाना ही सबसे अच्छा है। स्कूल में बच्चे टीचर्स से अपने प्रश्न अलग से भी पूछ सकते हैं। यहां तो नियत समय के लिए ही क्लास हो पाती है।

कर रही हैं माइंडफुलनेस प्रैक्टिस

रिलेशन व लाइफ स्टाइल एक्सपर्ट रचना खन्ना सिंह ने बताया कि आजकल मां छोटे बच्चों के साथ बैठकर माइंडफुलनेस प्रैक्टिस कर रही हैं। इससे मां और बच्चा दोनों शांत रहते हैं और पॉजिटिव रहते हैं। इसमें मेडीटेशन और सांस लेने वाली एक्सरसाइजेज, ध्यान लगाना, अच्छा संगीत सुनाना आदि सम्मिलित है। इससे फोकस बढ़ता है और स्क्रीन टाइम भी कम होता है। सुबह ही दस मिनट कर लें तो आप दोनों का मन शांत रहेगा। मां को सकारात्मक ही रहना होगा और सोचना होगा कि कुछ महीनों बाद सब ठीक हो जाएगा। हालांकि जिम्मेदारी बढ़ गई है उसे भी स्वीकार करना होगा। स्कूल भी पढ़ाई का समय कम करें। एक्टीविटी बेस्ड अधिक करें। पढ़ाई दिलचस्प बनाएं। बच्चों को दोस्तों के साथ एंजॉय करने का वक्त दें।


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