Move to Jagran APP

अपने बच्चों को लिवर दान देने में पुरुषों से काफी आगे हैं महिलाएं

मां की ममता को शब्दों में नहीं बांधा जा सकता। मां हमेशा बच्चों की बेहतरी के लिए तत्पर रहती है। जरूरत पड़ने पर अपने कलेजे के टुकड़े को जिगर (लिवर) देने से भी पीछे नहीं हटती है। माताएं बच्चों को लिवर दान कर उनकी जिंदगी बचाने में आगे हैं। बच्चों

By anand rajEdited By: Published: Sun, 19 Apr 2015 08:09 AM (IST)Updated: Sun, 19 Apr 2015 08:58 AM (IST)
अपने बच्चों को लिवर दान देने में पुरुषों से काफी आगे हैं महिलाएं

नई दिल्ली (रणविजय सिंह)। मां की ममता को शब्दों में नहीं बांधा जा सकता। मां हमेशा बच्चों की बेहतरी के लिए तत्पर रहती है। जरूरत पड़ने पर अपने कलेजे के टुकड़े को जिगर (लिवर) देने से भी पीछे नहीं हटती है। माताएं बच्चों को लिवर दान कर उनकी जिंदगी बचाने में आगे हैं। बच्चों के लिवर प्रत्यारोपण के करीब 65 फीसद मामलों में मां ने ही अपना लिवर दान किया है। उन्होंने अपना जीवन दांव पर लगाकर बच्चों के जीवन की रक्षा की है।

loksabha election banner

दिल्ली सरकार के यकृत एवं पित्त विज्ञान संस्थान (आइएलबीएस) में 25 बच्चों, अपोलो में 200 और गंगराम अस्पताल में 80 बच्चों का लिवर प्रत्यारोपण किया जा चुका है। इन सभी अस्पतालों में 65 फीसद बच्चों को उनकी माताओं ने लिवर दान किया। 30 फीसद बच्चों को पिता ने और पांच फीसद बच्चों को परिवार के अन्य सदस्यों ने लिवर दान किया है।

दिल्ली के अस्पतालों में अन्य राज्यों से भी मरीज आते हैं। सामाजिक तानाबाना और आर्थिक जरूरतों को पूरा करने की जिम्मेदारी पिता को ऐसा करने से रोकती है। यदि लिवर की बीमारी से पीड़ित बच्चे का ब्लड ग्रुप पहले मां के ब्लड ग्रुप से मिल जाए तो वह दान कर देती है। ब्लड ग्रुप न मिलने पर ही पिता या परिवार के अन्य सदस्य लिवर दान करने का साहसिक कदम उठाते हैं।

इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ सर्जन डॉ. सुभाष गुप्ता कहते हैं कि लिवर प्रत्यारोपण की सर्जरी मुश्किल होती है। लोग यह सोचते हैं कि पिता अधिक भागदौड़ कर सकता है, इसलिए मां लिवर दान करे तो बेहतर है। आइएलबीएस अस्पताल के मुख्य लिवर प्रत्यारोपण सर्जन डॉ. वी पामेचा ने बताया कि विदेश में 95 फीसद लिवर प्रत्यारोपण ब्रेनडेड घोषित व्यक्ति से लिवर दान में लेकर किया जाता है, जबकि अपने देश में ऐसा नहीं है। यहां ज्यादातर व्यक्ति के लिवर का एक तिहाई हिस्सा काटकर मरीज में लगाया जाता है। इसमें जोखिम भी होता है। हालांकि अब समाज की सोच बदल रही है। गंगाराम अस्पताल के लिवर प्रत्यारोपण सर्जन डॉ. निशांत वाधवा कहते हैं कि ज्यादातर परिवारों में पिता कमाने वाला होता है, इसलिए मां जोखिम उठाती है।

इसलिए पड़ती है जरूरत

कई बच्चे जन्मजात बीमारी बिलियरी एटिसिया से पीड़ित होते हैं। इस बीमारी में पित्ताशय और आंत के बीच नली विकसित नहीं हो पाती है। इसके चलते बच्चे पीलिया से ग्रसित हो जाते हैं। बाद में लिवर खराब हो जाता है। इसके अलावा हेपेटाइटिस ए और हेपेटाइटिस ई के कारण भी बच्चों का लिवर खराब हो जाता है।

ये भी पढ़ेंः ब्लड ग्रुप एक नहीं फिर भी हुआ लिवर प्रत्यारोपण

ये भी पढ़ेंः जीबी पंत अस्पताल में मुफ्त होगा लिवर प्रत्यारोपण


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.