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इंदौर की इस महिला ने कोरोना से जंग जीत जन्मदिन पर मौत को गले लगाया, जानें पूरा मामला

मध्य प्रदेश के इंदौर के महूनाका क्षेत्र में रहने वाली 64 वर्षीय रेणु जैन ने कोरोना से जंग जीतने के बाद संलेखना ली। उनकी समाधि (निधन) उस दिन हुई जिस दिन उनका जन्मदिन था। वह कोरोना से जंग जीत गई थीं।

By Pooja SinghEdited By: Published: Sat, 10 Oct 2020 08:08 AM (IST)Updated: Sat, 10 Oct 2020 08:08 AM (IST)
इंदौर की इस महिला ने कोरोना से जंग जीत जन्मदिन पर मौत को गले लगाया, जानें पूरा मामला
इंदौर की इस महिला के जन्मदिन पर ही मौत हो गई।

इंदौर,जेएनएन। मध्य प्रदेश के इंदौर के महूनाका क्षेत्र में रहने वाली 64 वर्षीय रेणु जैन ने कोरोना से जंग जीतने के बाद संलेखना ली। उनकी समाधि (निधन) उस दिन हुई, जिस दिन उनका जन्मदिन था। वह कोरोना से जंग जीत गई थीं। निजी अस्पताल में उपचार के बाद उनकी कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आई थी, लेकिन फेफड़े कमजोर हो गए थे। उन्होंने संलेखना (मृत्यु को निकट मान अन्न-जल त्याग) लेने की इच्छा जताई।

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पुष्पगिरि तीर्थ प्रबंधकारिणी कमेटी के सदस्य वीरेंद्र बड़जात्या ने कहा कि चैतन्य अवस्था में उन्होंने जल एवं आहार का त्याग कर संलेखना ली। इसके बाद सभी को देखते हुए क्षमा मांगते हुए विदाई ली। निजी अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद स्वजन उन्हें तीर्थस्थल पुष्पगिरि लेकर गए थे।

पुष्पदंत सागर महाराज के सान्निध्य में उनकी संलेखना हुई। सात अक्टूबर को उनकी समाधि हुई। 23 सितंबर को आई थी पॉजिटिव रिपोर्टस्क्रीनिंग सेंटर प्रभारी डॉ. अनिल डोंगरे ने बताया कि रेणु जैन 21 सितंबर को उपचार के लिए निजी अस्पताल में भर्ती हुई थीं। उनकी कोरोना संक्रमण की रिपोर्ट 23 सितंबर को पॉजिटिव आई थी। कोरोना के संक्रमण के कारण फेफड़े कमजोर हो जाते हैं। इसके चलते सांस लेने में दिक्कत होती है

क्या है संलेखना

दिगंबर जैन महासमिति मध्यांचल के अध्यक्ष डीके जैन ने बताया कि दिगंबर जैन समाज में मृत्यु को स्वीकार करने की प्रक्रिया को संलेखना कहते हैं। बता दें कि देश इस वक्त कोरोना भायरस की चपेट में प्रत्येक दिन देश में कोरोना के नए-नए मामले सामने आ रहे हैं। इस वक्त देश दुनिया में दूसरा सबसे ज्यादा संक्रमित देश है। वहीं पहले नंबर पर संक्रमित देश अमेरिका है। इसे ही वैष्णव संप्रदाय में समाधि और श्वेतांबर जैन समाज में संथारा कहा जाता है। संलेखना मृत्यु को निकट जानकर अपनाए जाने वाली एक जैन प्रथा है। इसमें जब व्यक्ति को लगता है कि वह मौत के करीब है तो वह खुद खाना-पीना त्याग देता है।


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