Rishi kapoor की बदौलत ही पेशावर स्थित कपूर खानदान की पुश्तैनी हवेली बन सकी संग्रहालय
मेरा नाम जोकर से जो सफर ऋषि कपूर ने शुरू किया था वो आखिर तक जारी रहा। वो जमीन से जुड़े एक जिंदादिल व्यक्ति थे।
नई दिल्ली। भारत के लिए वर्ष 2020 जितना खराब साल शायद ही कोई रहा होगा। साल की शुरुआत से ही एक जानलेवा वायरस की गिरफ्त में बंधे भारत को लगातार एक के बाद एक झटका लगता रहा है। बीते 24 घंटों में बॉलीवुड ने पहले इरफान खान को खोया तो अगले ही दिन ऋषि कपूर को भी हमसे छीन लिया। इन दोनों के निधन ने बॉलीवुड को हिलाकर रख दिया। ऋषि कपूर के निधन से जो एक शून्य बना है उसको भरपाना मुमकिन नहीं होगा। उन्हें प्यार से सभी चिंटू पुकारते थे।
अमिताभ बच्चन ने जब उनके निधन की खबर ट्विटर पर दी तो हर कोई स्तब्ध था। किसी के पास कुछ कहने के लिए बचा नहीं था। ऋषि कपूर 67 वर्ष के थे। लोग इरफान खान के सदमे से उबर भी नहीं पाए थे कि ऋषि कपूर के निधन की खबर ने उन्हें तोड़ कर रख दिया। खुद अमिताभ बच्चन ने कहा कि वो बुरी तरह से टूट गए हैं। आपको बता दें कि अमिताभ बच्चन रिश्तेदार भी थे और एक अच्छे दोस्त भी थे।
ऋषि कपूर कैंसर से पीडि़त थे। ऋषि कपूर बीते वर्ष अक्टूबर-नवंबर में इलाज के बाद वापस मुंबई लौटे थे। इसके बाद उन्होंने दोबारा फिल्मों में काम करना शुरू कर दिया था, लेकिन 2 अप्रैल से उनकी हालत फिर खराब हो रही थी जिसके बाद वो दोबारा काम नहीं कर पाए थे। ऋषि कपूर मानते थे कि इस दौर में उनके कैरेक्टर को और निखारने वाले किरदार उनके सामने आ रहे हैं। वो इन किरदारों को करके खुशी महसूस करते थे। सैकड़ों फिल्मों में काम कर चुके ऋषि मानते थे कि भले ही उन्होंने 70, 80 और 90 के दशक में कई फिल्में की, लेकिन जो अब वो कर रहे हैं वो उनके ज्यादा करीब हैं। इस बात को उन्होंने कई बार अपने इंटरव्यू में दोहराया भी था। ऐसा ही कुछ इरफान के साथ भी था। अपने हर किरदार को उन्होंने बखूबी निभाया।
ऋषि कपूर की बात करें तो उनका ताल्लुक बॉलीवुड के उस परिवार से था जिसको उनके दादा पृथ्वीराज कपूर ने बड़ी मेहनत से बनाया था। इसको आगे बढ़ाने का काम फिर राज कूपर ने किया। इसके बाद यही काम ऋषि कपूर ने भी किया। आपको बता दें कि राज कपूर की कई फिल्मों में उनके बचपन का किरदार ऋषि कपूर ने ही निभाया था। ऋषि कपूर की ही कोशिशों की बदौलत पाकिस्तान की सरकार ने कपूर खानदान की पुश्तैनी हवेली जो खैबर पख्तूनख्वा के पेशावर में है उसको एक संग्रहालय बनाने का फैसला लिया था। इस हवेली से आज भी न सिर्फ कपूर खानदान, बल्कि पाकिस्तान की भी कई यादें जुड़ी हैं। यहां पर उनके पिता राज कपूर का बचपन बीता था। यहीं पर उनके दादा पृथ्वीराज कपूर ने बचपन से लेकर अपनी जवानी तक के दिन बिताए थे। 1930 में पृथ्वीराज कपूर इस हवेली को छोड़कर अपने भविष्य को उज्ज्वल बनाने के लिए मौजूदा भारत आ गए थे। आपको बता दें कि ऋषि कपूर के परदादा और उनके भी पिता दीवान हुआ करते थे। पेशावर का ये पंजाबी हिंदू परिवार पाकिस्तान की शान हुआ करता था।
पेशावर की इसी हवेली के जर्जर होने की खबर जब जब मीडिया के जरिए ऋषि कपूर को मिली तब तब उनकी बेचैनी भी खुलकर सामने आई थी। वर्ष 2016 में जब पाकिस्तान के तत्कालीन गृहमंत्री शहरयार खान अफरीदी भारत में जयपुर अपने निजी दौरे पर आए तो ऋषि कपूर ने उन्हें फोनकर अपनी पुश्तैनी हवेली को एक संग्रहालय बनाने की अपील की थाी। इस पर नवंबर 2018 में सकारात्मक फैसला लेते हुए पाकिस्तान की सरकार ने इसको संग्रहालय बनाने पर अपनी सहमति दी। आपको बता दें कि पेशावर के किस्सा ख्वानी बाजार की इस हवेली को पहले भी पाकिस्तान की सरकार ने राष्ट्रीय विरासत के तौर पर घोषित किया हुआ था। इमरान खान की सरकार बनने के बाद देश के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने भारतीय पत्रकारों को इस बात की जानकारी दी कि इस हवेली को जल्द ही संग्रहालय में तब्दील कर दिया जाएगा।
इस हवेली को पृथ्वीराज कपूर के पिता दीवान बिशेश्वरनाथ कपूर ने 1918-1922 में बनवाया था। देश के विभाजन के बाद 1968 में इस हवेली को एक ज्वैलर हाजी खुशाल रसूल ने नीलामी में खरीदा था। ऋषि कपूर का इस हवेली से कितना गहरा नाता था इसका अंदाजा आप इस बात से भी लगा सकते हैं कि जब 1990 में वो इसको देखने पेशावर गए थे तब वहां से वो इसकी मिट्टी अपने साथ लेकर आए थे। ऋषि कपूर बेहद जमीन से जुड़े हुए इंसान थे। उन्हें कभी न तो सफल एक्टर होने का गुमान हुआ न ही एक ऐसा परिवार का सदस्य होने का गुमान रहा जिसकी आन-बान और शान कभी फीकी नहीं पड़ी। आज जब वो हमारे बीच नहीं हैं तो मालूम होता है कि इतिहास का एक चैप्टर पूरी तरह से क्लोज हो चुका है।