जीपीएस 'नाविक' की मदद से देश सहित सीमा से बाहर दो सौ किमी तक रखी जाएगी नजर
जीपीएस नाविक का इस्तेमाल हालांकि अभी इसरो सहित सेना और आपदा प्रबंधन से जुड़े लोग ही कर सकेंगे, लेकिन इससे जुडी डिवाइस (रिसीवर) के बाजार में लांच होते ही इस सुविधा का लाभ आम लोग भी कर सकेंगे।
अरविंद पांडेय, नई दिल्ली। करीब 18 साल पहले कारगिल युद्ध के दौरान ऊंची चोटियों पर बैठे दुश्मनों की सटीक जानकारी लेने के लिए सेना को जीपीएस (ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम) की जरूरत पड़ी, तब उसने इसके लिए अमेरिका से मदद मांगी, लेकिन उसने इसे देने से न सिर्फ इंकार कर दिया, बल्कि अपने सिस्टम को ही उस क्षेत्र में बंद कर दिया था।
हालांकि इस युद्ध में भारत की ही जीत हुई, लेकिन देश ने तभी ठान लिया था, कि वह अपना खुद का जीपीएस तैयार करेगा। मेहनत रंग लाई। देश जल्द ही अपने खुद के विकसित किए गए यानी देशी जीपीएस 'नाविक' (नेवीगेशन विथ इंडियन कांस्टेलेशन) का इस्तेमाल करेगा। माना जा रहा है कि यह प्रणाली अगले महीने तक काम करना शुरू कर देगी।
इसका इस्तेमाल हालांकि अभी इसरो सहित सेना और आपदा प्रबंधन से जुड़े लोग ही कर सकेंगे, लेकिन इससे जुडी डिवाइस (रिसीवर) के बाजार में लांच होते ही इस सुविधा का लाभ आम लोग भी कर सकेंगे। इसे लेकर इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) तेजी से काम कर रहा है। नाविक की मदद से देश सहित सीमा से बाहर भी करीब दो सौ किमी तक नजर रखी जा सकेगी।
मौजूदा समय में अपना खुद का जीपीएस अभी अमेरिका, रूस और चीन जैसे देशों के पास ही है। हालांकि भारत के मुकाबले अमेरिका का जीपीएस ज्यादा शक्तिशाली है, क्योंकि इसकी पहुंच में पूरा विश्व है, जबकि भारतीय जीपीएस नाविक सिर्फ भारत और पड़ोसी देशों तक ही सीमित रहेगा। दावा है कि यह अमेरिकी जीपीएस के मुकाबले ज्यादा सटीक और नजदीक तक नजर रखेगा।
नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी( एनपीएल) के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ आशीष अग्रवाल के मुताबिक नाविक का जीपीएस इसलिए सटीक होगा, क्योंकि इसके लिए एनपीएल की ओर से ज्यादा सटीक समय उपलब्ध कराया जा रहा है। जिसमें नैनो सेकेंड से भी कम का अंतर है। इस योजना के तहत एनपीएल ने इसरो के लिए खास एटामिक घड़ी भी तैयार की है, जिसे नाविक से जोड़ा गया है।
यह घड़ी एनपीएल के वैज्ञानिकों की देखरेख में ही काम करती है। डॉ अग्रवाल के मुताबिक एनपीएल की ओर से दिया जाने वाला यह समय इस पूरी योजना का सबसे अहम बिंदू है, क्योंकि जीपीएस का पूरा कामकाज समय पर ही आधारित है। इसरो इसके लिए एनपीएल को आर्थिक मदद भी देता है।
सटीक समय के चलते लटका था काम
नाविक पर काम कर रहे वैज्ञानिकों के मुताबिक यह प्रोजेक्ट वैसे तो काफी समय पहले ही पूरा हो जाना था। लेकिन प्रोजेक्ट की शुरूआती देरी के बाद पिछले दो सालों से प्रोजेक्ट सटीक समय को लेकर ही अटका रहा है। इस बीच एनपीएस ने जैसे ही सटीक समय देने का काम पूरा किया, इस प्रोजेक्ट में तेजी आयी। बता दें कि इसी साल एनपीएल ने एटामिक घडि़यां तैयार की है। जिनकी मदद से नैनो सेकेंड से भी कम अंतर का सटीक समय दिया जा रहा है।