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भाजपा के लिए तिरुअनंतपुरम नगर निगम चुनाव आखिर क्‍यों बना है इतना खास, जानें- वजह

ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव के बाद अब भाजपा ने तिरुअनंतपुरम के स्‍थानीय चुनाव में पूरी ताकत लगा दी है। यहां पर इस तरह से चुनाव में उतरने के पीछे मकसद वही है जो हैदराबाद में भी था।

By Kamal VermaEdited By: Published: Wed, 09 Dec 2020 08:24 AM (IST)Updated: Wed, 09 Dec 2020 08:24 AM (IST)
भाजपा के लिए तिरुअनंतपुरम नगर निगम चुनाव आखिर क्‍यों बना है इतना खास, जानें- वजह
ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव के बाद अब भाजपा की तिरुअनंतपुरम के स्‍थानीय चुनाव पर है निगाह

नई दिल्‍‍‍‍ली (जेएनएन)। तेलंगाना के ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव में चार से 48 सीटों पर पहुंची भाजपा ने अब केरल के निकाय चुनावों में पूरी ताकत झोंक दी है। तिरुअनंतपुरम नगर निगम पर उसकी खास नजर है, जहां पिछले निकाय चुनाव में उसे 34 सीटें मिली थीं। स्थानीय निकाय चुनाव भाजपा के लिए लिटमस टेस्ट होगा, क्योंकि अगले ही साल वहां विधानसभा चुनाव हैं। इसमें जीत मिली तो पार्टी के लिए दक्षिण विजय आसान होगी।

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तिरुअनंतपुरम नगर निगम बेहद अहम 

भाजपा के लिए तिरुअनंतपुरम नगर निगम चुनाव कई मायने में अहम है। यह नगर निगम आबादी व क्षेत्र के लिहाज से पूरे प्रदेश में सबसे बड़ा है। इसके 100 वार्ड जिले के चार विधानसभा क्षेत्रों में फैले हुए हैं। पिछले 15 वर्षों से इस पर माकपा नीत एलडीएफ का कब्जा है। वाम लोकतांत्रिक मोर्चा यानी एलडीएफ, संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा यानी यूडीएफ व राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी राजग गठबंधन के बीच कांटे की टक्कर ने इस चुनाव को दिलचस्प बना दिया है। भाजपा हर हाल में इस बार स्पष्ट बहुमत के साथ मेयर पद पर कब्जा करना चाहती है। इसके जरिये वह आगामी विधानसभा चुनाव में तिरुअनंतपुरम की चारों विधानसभा सीटों पर अपने प्रत्याशियों की जीत सुनिश्चित करने के साथसाथ राज्य की राजधानी में ही एलडीएफ की जड़ें कमजोर करने की भी इच्छा रखती है। हालांकि, पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को सिर्फ एक सीट से ही संतोष करना पड़ा था।

स्थानीय निकाय पर जोर क्यों

भाजपा को सबसे बड़ा झटका तब लगा जब वट्टीयूरकवू विधानसभा उपचुनाव में मिजोरम के राज्यपाल पद से इस्तीफा देकर ताल ठोंक रहे के. राजशेखरन हार गए। इसके बाद पार्टी ने तिरुअनंतपुरम नगर निगम चुनाव को पूरे दमखम से लड़ने की योजना बनाई, ताकि आगामी विधानसभा चुनाव से पहले कार्यकर्ताओं का मनोबल ऊंचा रहे। बताते हैं कि अप्रत्यक्ष रूप से संघ के पदाधिकारी स्थानीय चुनाव में भाजपा नेताओं का मार्गदर्शन कर रहे हैं। 100 वार्डों के टिकट वितरण को लेकर भले ही कुछ बागियों ने आवाज उठाई हो, लेकिन कोई बड़ा असंतोष सामने नहीं आया है।

प्रत्याशी चयन में पूरी सतर्कता

प्रदेश के सभी स्थानीय निकायों के प्रत्याशियों के चयन में भाजपा पूरी सतर्कता बरती है। तिरुअनंतपुरम में तो कुछ ज्यादा एहतियात बरता गया। नगर निकाय के लिए मंगलवार को मतदान हुआ। भाजपा ने पूजापुर वार्ड के लिए अपने जिलाध्यक्ष वीवी राजेश को मैदान में उतार दिया है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के. सुदर्शन से गत दिनों मीडिया ने पूछा था कि क्या राजेश पहले नेडुमंगड विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ चुके हैं और मजबूत प्रत्याशी हैं इसलिए उन्हें वार्ड चुनाव में उतारा गया। इस पर सुदर्शन ने कहा था कि आप सोच सकते हैं कि भाजपा नगर निगम में कितने अनुभवी लोगों को भेजना चाहती है। भाजपा ने प्रत्याशियों के चयन में उन निकायों में भी इतनी ही गंभीरता बरती है, जहां उसका जनाधार कमजोर रहा है। पार्टी को विश्वास है कि लोग उसकी नीतियों के साथ-साथ प्रत्याशी की छवि पर भी मतदान करेंगे।

केरल कांग्रेस (थॉमस) का समर्थन

केरल कांग्रेस (पीसी थॉमस गुट) के बारे में अक्टूबर के दौरान अफवाहें उड़ी थीं कि वह राजग से नाता तोड़कर यूडीएफ से जुड़ना चाहती है। लेकिन, तीन दिनों पहले पार्टी के प्रदेश महासचिव पीजे बाबू ने मीडिया के सामने स्थानीय चुनाव में न सिर्फ भाजपा प्रत्याशियों के समर्थन की घोषणा की, बल्कि यह भी साफ किया कि राजग से निकलने की बात महज अफवाह थी।

तिरुअनंतपुरम हमेशा रहा है मुफीद

राज्य की राजधानी तिरुअनंतपुरम भाजपा के लिए हमेशा से मुफीद रही है। यहां हिंदू मतदाताओं की संख्या बड़ी है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस का प्रभाव भी ठीकठाक है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव इसका प्रमाण है, जहां भाजपा के दिग्गज नेता ओ राजगोपाल ने कांग्रेस प्रत्याशी शशि थरूर से चारों विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त हासिल की थी, लेकिन तटीय क्षेत्र में शशि थरूर ने पटखनी दी और बाजी मार गए। हालांकि, लोकसभा चुनावमें चारों विधानसभा क्षेत्रों में राजगोपाल को मिली बढ़त का लाभ पार्टी को आगे नहीं मिला। इसकी वजह थीं- गुटबाजी, कमजोर प्रत्याशी का चयन व क्रॉस वोटिंग।


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