जानें- रूस की वैक्सीन Sputnik V पर क्यों उठा रहे कई देश सवाल और क्या है फेज-3 ट्रायल
रूस की वैक्सीन Sputnik V पर कई देश सवाल उठा रहे हैं। इनका कहना है कि इसका फेज 3 का ट्रायल नहीं हुआ है लिहाजा ये सुरक्षित नहीं है। ऐसे में इस ट्रायल के बारे में जानना जरूरी है।
नई दिल्ली (ऑनलाइन डेस्क)। कोरोना वायरस के खात्मे को बनाई गई रूस की वैक्सीन पर अभी कई देश सवाल खड़े करते दिखाई दे रहे हैं। इसका विरोध करने वालों में अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी और कनाडा शामिल हैं। ये सभी देश मेडिकल कारणों का हवाला देकर कह रहे हैं कि इस वैक्सीन का फेज 3 ट्रायल पूरा नहीं हुआ है। ऐसे में इसका उपयोग नुकसानदेह साबित हो सकता है। इनका ये भी कहना है कि कोरोना वायरस अब तक दुनिया भर में करीब आठ लाख लोगों की जान ले चुका है। दुनिया के कई देश इस महामारी की दवा खोजने में लगे हैं और कुछ देशों में इसका ट्रायल भी चल रहा है। इसकी वजह यही है कि ट्रायल के चरण पूरा होने के बाद जो वैक्सीन सामने आए वो सबसे भरोसेमंद हो और लोगों की जान बचा सके, न कि मुश्किलों में डाल सके। इस वैक्सीन को लेकर उठ रहे सवालों के बीच हम सभी के लिए ये जानना बेहद जरूरी हो जाता है कि आखिर फेज 3 का ट्रायल क्या, क्यों और कैसे किया जाता है।
दरअसल, किसी भी दवा या वैक्सीन को बाजार में उतारने के लिए उसका चरणबद्ध तरीके से ट्रायल किया जाता है। ये ट्रायल प्री क्लीनिकल और क्लीनिकल होता है। इसमें शुरुआत में ट्रायल के दौरान चूहों या दूसरे जानवरों का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन ट्रायल के दौरान इसका परीक्षण इंसानों पर किया जाता है। इसलिए ही किसी भी दवा या वैक्सीन के रजिस्ट्रेशन के लिए फेज-3 ट्रायल सबसे अहम माना जाता है। इस चरण में फेज वन और टू के नतीजों और दवा के पॉजीटिव और नेगेटिव इफेक्ट को विस्तार से टेस्ट किया जाता है। फेज-3 ट्रायल जितने ज्यादा लोगों पर और जितनी लंबी अवधि के लिए होता है इसके नतीजे भी उतने ही सटीक होते हैं। आमतौर पर इस फेज में दवा या वैक्सीन के ट्रायल को 1000 से 3000 लोगों पर किया जाता है। इस टेस्ट में हिस्सा लेने वाले लोग अलग-अलग उम्र, आदतों और मेडिकल हिस्ट्री वाले होते हैं। इसमें शामिल सभी प्रतिभागियों को नियमित चेकअप करके दवा दी जाती है। दवा के बाद फिर हर दिन टेस्ट किए जाते हैं और फिर दवा दी जाती है।
यदि फेज-3 ट्रायल में दवा या वैक्सीन पास हो जाती है तो उसके ट्रायल का चौथा फेज शुरू होता है। इसमें दवा को हजारों लोगों पर टेस्ट किया जाता है और उससे मिले आंकड़ों का व्यापकतौर पर विश्लेषण किया जाता है। इस दौरान इससे होने वाले साइड इफेक्ट और डॉक्टर से परामर्श की भी बात सामने आती है। आपको बता दें कि हर दवा के अंदर जो एक पर्जी होती है जिसपर इसकी जानकारी दी जाती है वो जानकारी भी इसी फेज के दौरान सामने आने के बाद लिखी जाती है। प्रीक्लिनिकल ट्रायल से लेकर फेज-4 तक मिलने वाले नतीजों के बाद ही किसी भी दवा/वैक्सीन या इंजेक्शन को बाजार में उतारने की अनुमति मिल पाती है।
यही वजह है कि रूस की दवा के साथ में जिस तरह के सवाल कई देश उठा रहे हैं उनको नजरअंदाज करना किसी भी देश के लिए आसान नहीं है। आपको बता दें कि रूस ने कोरोना महामारी से बचाव को जो दवा बनाई है उसका नाम उसने Sputnik V दिया है। इसका नाम दुनिया के पहले रूसी उपग्रह पर रखा गया है। इस दवा को मास्को की गामल्या इंस्टिट्यूट ने देश के रक्षा मंत्रालय के सहयोग से तैयार किया है।
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