भारत की UNSC के स्थायी सदस्य की दावेदारी से क्यों बेचैन हुआ चीन, जानें- India की दावेदारी के पीछे बड़े तर्क
भारत UNSC का स्थायी सदस्य बनने के लिए प्रयासरत है। भारत ने इसके लिए जो दावे पेश किए हैं उसमें भी काफी दम है लेकिन उसकी इस राह में चीन सबसे बड़ी बाधा है। चीन हर बार अपने वीटो पावर का इस्तेमाल करके रोड़ा उत्पन्न कर रहा है।
नई दिल्ली, स्पेशल डेस्क। देश की आजादी के बाद ऐसा पहली बार हुआ, जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का भारत अध्यक्ष बना। एक अगस्त को भारत के पास सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता मिली। वह पूरे अगस्त महीने तक सुरक्षा परिषद का अध्यक्ष रहेगा। इसके साथ एक बार फिर से भारत की सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की दावेदारी ने जोर पकड़ा है। हालांकि, भारत सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनने के लिए काफी वर्षों से प्रयासरत है। भारत ने इसके लिए जो दावे पेश किए हैं, उसमें भी काफी दम है, लेकिन उसकी इस राह में चीन सबसे बड़ी बाधा है। चीन हर बार अपने वीटो पावर का इस्तेमाल कर भारत को स्थायी सदस्य बनने से रोक देता है। हालांकि, चीन के अलावा फ्रांस, अमेरिका, रूस और ब्रिटेन भारत को सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाने पर अपनी सहमति जता चुके हैं।
सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की दावेदारी की वजह
- प्रो. हर्ष पंत का कहना है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के लिए एक मजबूत दावेदारी है। उन्होंने कहा कि जनसंख्या के लिहाज से दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय राजनीति के लिहाज से भारत अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण सामरिक रूप से बेहद उपयोगी है। यह प्रमुख भूमिका में है।
- भारत एक लोकतांत्रिक देश है। यह हमेशा से एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था का पक्षधर और पक्षपोषक रहा है। भारत की स्पष्ट मान्यता है कि सुरक्षा परिषद का लोकतांत्रिक स्वरूप होना जरूरी है। भारत का मानना है कि बदलते परिदृष्य में सुरक्षा परिषद के ढांचे में बदलाव जरूरी है। सुरक्षा यह समय की मांग है कि सुरक्षा परिषद को और अधिक लोकतांत्रिक होना चाहिए।
दक्षिण एशिया में प्रभुत्व को लेकर बेचैन हुआ चीन
- उन्होंने कहा कि चीन और भारत के मध्य सीमा विवाद एक बड़ा मुद्दा है। प्रो. पंत ने कहा कि चीन को यह भय सता रहा है कि यदि भारत सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनता है तो यह बीजिंग के समक्ष एक बड़ी चुनौती होगी। इस बदलाव का असर दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया की क्षेत्रीय राजनीति पर पड़ेगा। इससे यहां के सामरिक समीकरण बदल सकते है।
- उन्होंने कहा कि भारत के स्थायी सदस्य होने पर यही समस्या पाकिस्तान के समक्ष भी उत्पन्न होगी। पाकिस्तान, भारत का पड़ोसी राष्ट्र है। दोनों देशों के बीच आतंकवाद और सीमा विवाद बड़े मुद्दे हैं। इसके अलावा अगर भारत सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनता है तो इसका असर चीन और पाकिस्तान की दोस्ती पर भी पड़ेगा।
सुरक्षा परिषद का मकसद
संयुक्त राष्ट्र के छह प्रमुख अंगों में सुरक्षा परिषद एक महत्वपूर्ण संस्था है। सुरक्षा परिषद का प्रमुख काम दुनियाभर में शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देकर देशों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों को प्रोत्साहित करना है। इस संगठन को दो विश्व युद्धों की भीषण त्रासदी ने इसे और भी प्रासंगिक बनाया। इस युद्ध में कई देश पूरी तरह से बर्बाद हो गए। पूरे दुनिया में अस्थिरता, अशांति और भय का महौल था। ऐसे वातावरण में एक ऐसी संस्था की मांग उठने लगी थी, जो देशों के बीच शांति और सुरक्षा बढ़ाने की दिशा में काम करे। इसी के बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थापना हुई।
सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य
अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और चीन पांच स्थायी सदस्य हैं। सुरक्षा परिषद में कुल 15 सदस्य देश हैं, जिन्हें स्थायी और अस्थायी सदस्यता प्रदान की गई है। स्थायी सदस्यों के पास वीटो पावर होता है। स्थायी सदस्य इसका इस्तेमाल कर किसी भी प्रस्ताव को पास होने से रोक सकते हैं। इनके अलावा सुरक्षा परिषद में 10 अस्थायी सदस्य होते हैं। इन अस्थायी सदस्यों का चयन क्षेत्रीय आधार पर किया जाता है। अफ्रीका और एशियाई देशों से पांच पूर्वी यूरोपीय देशों से एक लेटिन अमेरिकी और कैरिबियाई देशों से दो और पश्चिमी यूरोपीय और अन्य दो देशों का चयन किया जाता है।
कैसे बनते हैं स्थायी सदस्य
सुरक्षा परिषद में अस्थायी सदस्य बनने के लिए वोटिंग होती है। किसी सदस्य देश को तभी सदस्य बनाया जाता है जब सुंयुक्त राष्ट्र के दो तिहाई देश उस देश के पक्ष में मतदान करते हैं। भारत इस साल जनवरी में सुरक्षा परिषद का अस्थाई सदस्य बना है। पिछले वर्ष जून में वोटिंग में भारत को 192 में 184 मत मिले थे। भारत 31 दिसंबर, 2022 तक सुरक्षा परिषद का सदस्य बना रहेगा। अस्थायी सदस्यों का कार्यकाल दो वर्ष का होता है। हर साल 5 नए सदस्यों के लिए चुनाव होता है।