कैंसर से डरें नहीं! हौसलों को हार कर कभी जंग नहीं जीती जाती
कैंसर का ख्याल आते ही मन जो सबसे पहले जो भाव उत्पनन होते हैं उनमें नंबर वन है डर। इस बीमारी के ख्याल से ही मन में डर का आना भी स्वाभाविक है।
नई दिल्ली। कैंसर का ख्याल आते ही मन जो सबसे पहले जो भाव उत्पनन होते हैं उनमें नंबर वन है डर। इस बीमारी के ख्याल से ही मन में डर का आना भी स्वाभाविक है। विशेषज्ञों की राय में बदल रही खान पान की व्यवस्था और लोगों की दिनचर्या इसकी सबसे बड़ी वजहों में से एक हैं। यही वजह है कि जब जब इसको लेकर कोई भी कांफ्रेंस या गोष्ठी आयोजित होती है तो वहां पर विशेषज्ञ खुशहाल और स्वस्थ जीवन जीने की सलाह देते हैं। आपको याद होगा पिछले दिनों मीडिया में बॉलीवुड अभिनेता ने बताया था कि उन्हें ब्रेन ट्यूमर है। इसके ईलाज के लिए वह फिलहाल विदेश में हैं। यहां एक बात और बताने वाली है कि हौसलों को हार कर कभी कोई जंग नहीं जीती जाती चाहे वो कैंसर हो या दूसरी कोई बीमारी। हमारे सामने ऐसे कई उदाहरण हैं जिनमें से एक उदाहरण क्रिकेटर युवराज सिंह का और दूसरा बॉलीवुड अभिनेत्री मनीषा कोइराला का है।
बहरहाल हम बात कर रहे हैं कैंसर की तो बता दें कि सारकोमा कैंसर को लेकर जागरूकता लाने के लिए सचिन सारकोमा सोसायटी द्वारा युसूफ सराय के होटल सीएल हाउस में कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसमें डॉक्टरों की टीम ने लोगों को इस बीमारी, इसके उपचार और इससे बचाव की जानकारी दी। कार्यक्रम में काफी लोग शामिल हुए। इसके अलावा वहां पर डॉक्टरों की एक टीम भी मौजूद थी जिससे मरीजों ने सवाल पूछे। सारकोमा एक-दूसरे से जुड़े टिश्यूज (ऊतकों) में हो जाने वाले घातक ट्यूमरों को कहते हैं और इसका इलाज सिर्फ सर्जरी ही है। ये ट्यूमर अक्सर 10 सेमी से ज्यादा आकार के होते हैं और वे बड़ी नाड़ियां इनकी चपेट में आ जाती हैं, जो कि हाथ-पैरों तक रक्त पहुंचाती हैं। योग व स्वस्थ्य दिनचर्या से इस बीमारी से बचाव संभव है। इस मौके पर योग व चित्रकला सहित कई प्रतियोगिताएं आयोजित की गई। कार्यक्रम में आम आदमी पार्टी से विधायक सौरभ भारद्वाज सहित अन्य लोग मौजूद थे।
कैंसर की इस घातक किस्म यानी सारकोमा से पीड़ित मरीजों के हाथ-पैर कटने से बचाने के लिए एम्स के डाक्टरों ने नाड़ी संबंधी पुनर्निर्माण की प्रक्रिया अपनाते हुए लिंब सैल्वेज सर्जरी भी शुरू की है। डॉक्टरों के मुताबिक इस घातक बीमारी की चपेट में वे बड़ी नाड़ियां आ जाती हैं, जो कि हाथ-पैरों तक रक्त पहुंचाती हैं। इसके चलते उस अंग को सर्जरी के जरिए हटाना पड़ता है। सारकोमा अधिकतर हाथ-पैरों और गले वाले क्षेत्र को प्रभावित करता है। लेकिन लिंब सैल्वेज सर्जरी के जरिए अंग काटे बिना ही इन घातक ट्यूमरों का सुरक्षित ढंग से इलाज किया जा सकता है। इस इलाज के तहत प्रभावित रक्त नलिकाओं का पुनर्निर्माण किया जाता है और मरीज के अपने शरीर से ली गई नाड़ियां और इनसे जुड़े ग्राफ्ट (टुकड़े) लगा दिए जाते हैं।
यह प्रक्रिया मरीज की शारीरिक दिखावट और उसका आत्मविश्वास बनाए रखती है। जब ट्यूमर में हड्डियां भी प्रभावित होती हैं तो हम कृत्रिम धात्विक रॉड भी लगाते हैं। इन ग्राफ्ट के जरिए हाथ-पैर में रक्त का संचार बनाए रखा जाता है और इस तरह हाथ-पैर की सक्रियता बनाई रखी जा सकती है। तब व्यक्ति कम से कम पुनर्वास सहयोग के साथ भी अपने सामान्य जीवन में लौट सकता है।
आपको जानकर ताज्जुब होगा कि भारत में कैंसर और सारकोमा से पीडि़त कई मरीज हैं जिन्हें सही समय पर सही ईलाज तक नहीं मिल पाता है। इतना ही नहीं कुछ जगह तो ऐसी हैं जहां कैंसर बुरी तरह से अपनी जड़ें जमा चुका है। इनमें से एक शामली का हसनपुर लुहारी गांव भी है, जो कैंसर वाला गांव के नाम से प्रचलित हो चुका है। यहां पर कैंसर की सबसे बड़ी वजह प्रदूषित पानी है। यह हाल सिर्फ इसी गांव का नहीं है बल्कि देश के कई गांव इसी तरह की स्थिति से दो-चार हो रहे हैं।