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सेकुलर जमात के लोग क्यों कह रहे हैं, 'मैं देशभक्त तो हूं पर राष्ट्रवाद नहीं'

बालाकोट एयर सर्जिकल स्ट्राइक के बाद अपने देश के कुछ चुनिंदा लोगों ने सेना के पराक्रम पर कई सवाल खड़े कर दिए थे। ये वही लोग है जिन्हें खुद को राष्ट्रवादी कहने पर शर्म आती है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Sat, 06 Apr 2019 10:46 AM (IST)Updated: Sat, 06 Apr 2019 10:50 AM (IST)
सेकुलर जमात के लोग क्यों कह रहे हैं, 'मैं देशभक्त तो हूं पर राष्ट्रवाद नहीं'
सेकुलर जमात के लोग क्यों कह रहे हैं, 'मैं देशभक्त तो हूं पर राष्ट्रवाद नहीं'

हरेन्द्र प्रताप। सेकुलर जमात के लोग ‘राष्ट्रवाद’ की एक नकरात्मक छवि सामने रखते हुए कह रहे हैं कि ‘मै देशभक्त तो हूं पर राष्ट्रवादी नहीं’। जिस प्रकार से इस देश में ‘हिन्दुत्व’ को ‘उदार हिंदू और संकीर्र्ण हिंदू’ में विभाजित किया जाता रहा, उसी प्रकार अब ‘देशभक्ति और राष्ट्र की एकता अखंडता और सुरक्षा की बात करने वालों को ‘राष्ट्रवादी’ कह कर ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ की हमारी मोक्षदायिनी मातृभमि के प्रति प्रेम और समपर्ण को खंडित करने का षड्यंत्र चल रहा है।

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राष्ट्रवाद को नकरात्मक रूप में पेश करने के पीछे ऐसे लोगों, ऐसे दलों के तर्क का जो आधार है वह जर्मनी है। जर्मनी का राष्ट्रवाद हिंसा,असहिष्णुता और विस्तारवाद का पर्याय हो गया था। अत:भारत के सेकुलरवादी भारत के राष्ट्रवाद को जर्मनी के चश्मे से देख रहे हैं। पश्चिम में राष्ट्र की उत्पति के बारे में जो कुछ भी ज्ञात है, उनमें एक महत्वपूर्ण कहानी यह है कि 1648 में फ्रांस के राजा ने रोमन साम्राज्य के विस्तारवाद के समय अपने पंथ, अपनी, भाषा और अपने लोगों के जीवनशैली के संरक्षण के लिए विशेष भूभाग के लोगों को संगठित कर रोमन साम्राज्य के साथ एक समझौता किया, इसे (वेस्टफेविया संधि) कहा जाता है।

फ्रांस का वह भूभाग ही फ्रांस राष्ट्र कहलाया। धीरे धीरे इसी प्रकार पश्चिम में राष्ट्र की पश्चिमी परिभाषा का विकास हुआ। राष्ट्र रक्षा के नाम पर संगठित शक्ति तथा उसकी अंधराष्ट्रभक्ति का लाभ उठाकर कई शासकों ने अपने शासन क्षेत्र के विस्तार हेतु अन्य भूभाग के लोगों पर पर नाना प्रकार के अत्याचार शुरु कर दिए। यानी राष्ट्र आक्रमण का पर्यायवाची शब्द बन गया। पश्चिम के राष्ट्र और राष्ट्रवाद के चश्मे से भारत को देखना ठीक नहीं होगा।

भारत के राष्ट्र का आधार उसकी संस्कृति है और भारतीय संस्कृति कभी भी साम्राज्यवादी और विस्तारवादी नहीं रही है। भारतीय संस्कृति के वाहक भारत के संत और ऋषि रहे हैं। भारत ने कभी भी दळ्निया के किसी भी देश पर आक्रमण नहीं किया है। वर्तमान विवाद के तह में जाने पर जो सच निकलकर सामने आता है, उस सच का स्वागत करने के बदले सेकुलर जमात के लोग इसलिए घबराए हुए हैं क्योकि उन्हें अपनी दुकान बंद होने का खतरा उनके सर पर मंडरा रहा है। श्री राम जन्मभूमि पर शिलान्यास होगा-शिलान्यास हुआ, कार सेवा होगी-कार सेवा हुई, ढांचा हटाओ- ढांचा हटा..., जी हां, भारत की छवि बदलने लगी। पहली बार जून 2016 में भारतीय सेना ने म्यमार में जाकर पूर्वोत्तर में सक्रिय आतंकवादियों पर सर्जिकल स्ट्राइक किया। भारतीय सेना ने एक बार पुन: इस वर्ष फरवरी- मार्च में म्यांमार में आंतकवदियों के खिलाफ बड़ा ऑपरेशन चलाया।

सवाल यह है कि भारत के सेकळ्लर जमात के लोग म्यांमार में भारतीय सेना द्वारा चलाए गए ऑपरेशन से न तो घबराते हैं और न ही उसका उन्हें काई सुबूत चाहिए। राष्ट्रवादी खतरा उन्हे केवल पाकिस्तान में छिपे आतंकवादियों के खिलाफ भारतीय सेना की कार्रवाई में ही दिखाई पड़ता है और उसी के सुबूत के लिए वे हाय तौबा मचा रहे हैं। एक तरफ तो वे गला फाड़कर चिलाते हैं कि आतंकवाद का कोई मजहब नही होता पर पाकिस्तान द्वारा संचालित आतंकवाद के खिलाफ, चाहे पाकिस्तान में हो या भारत में, सेना द्वारा की गई कार्रवाई में उनको भारत में ‘राष्ट्रवाद’ के उभरने का खतरा दिखाई पड़ता है।

जहां तक राष्ट्रवाद शब्द का सवाल है, भारत के लोगों को इस शब्द को छोड़कर दूसरे शब्द के उपयोग करने में किसी प्रकार के संकोच की आवश्यकता नहीं है। राष्ट्रवादी के बदले राष्ट्रप्रेमी, राष्ट्रप्रहरी शब्द का भी उपयोग कर सकते हैं। पश्चिम में विकसित वाद शब्द का दायरा सीमित और संकीर्ण है तथा कोई भी वाद-विवाद से परे नही है। अत: राष्ट्रवाद शब्द के उपयोग की कोई आवश्यकता नही है।

20 फरवरी 1940 को अखिल भारतीय अधिवेशन में स्वयं गांधी जी ने कहा था कि ‘मेरी हार्दिक इच्छा है कि गांधीवाद शब्द का प्रचलन न हो। पं. दीनदयाल उपाघ्याय किसी भी वाद के पक्षधर नही थें मानववाद शब्द का प्रयोग भी उन्होंने आज के पाश्चात्य अर्थ में कभी नही किया। पश्चिम का मानववाद प्राय: स्वयंकेंद्रित और ईश्वरविरोधी है। परंतु पंडितजी को पश्चिम प्रभावित बुद्धजीवियों के आकलन स्तर के साथ समझौता करना था। इसीलिए एकात्म मानववाद शब्द उन्होंने दिया।

(पूर्व सदस्य, बिहार विधान परिषद)


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