कोरोना के नए वैरिएंट का नाम 'शी' न रखने पर सवालों के घेरे में डब्ल्यूएचओ, कयासों का दौर तेज
विश्व में इस समय कोरोना के नए वैरिएंट ओमीक्रोन की चर्चा है। कितना संक्रामक है यह वैरिएंट किन-किन देशों तक संक्रमण पहुंच चुका है इसके विरुद्ध वैक्सीन कितनी कारगर हो सकती है आदि तमाम प्रश्न हवा में तैर रहे हैं।
नई दिल्ली, जेएनएन। विश्व में इस समय कोरोना के नए वैरिएंट ओमीक्रोन की चर्चा है। कितना संक्रामक है यह वैरिएंट, किन-किन देशों तक संक्रमण पहुंच चुका है, इसके विरुद्ध वैक्सीन कितनी कारगर हो सकती है आदि तमाम प्रश्न हवा में तैर रहे हैं और इन्हीं के बीच एक रोचक सवाल पर भी चर्चा का बाजार गर्म है। यह सवाल है, नए वैरिएंट के नामकरण को लेकर। विश्व मीडिया के कुछ हिस्सों में चर्चा है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कोरोना वायरस के नए वैरिएंट का नामकरण अब तक की प्रचलित पद्धति से हटकर किया है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने परिपाटी छोड़कर 'नू' और 'शी' अक्षरों का नहीं किया चयन
खबरों के अनुसार, दक्षिण अफ्रीका में पाए गए नए कोरोना वैरिएंट का नाम रखने में डब्ल्यूएचओ ने 'शी' (अंग्रेजी वर्णमाला के एक्स और आइ से मिलकर बना अक्षर) का प्रयोग नहीं किया। डब्ल्यूएचओ के इस कदम को चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के नाम से मिलता जुलता नाम न देने की तरकीब के तौर पर देखा जा रहा है।
रही है नामकरण की एक व्यवस्था
कोरोना वायरस के नए प्रारूपों के नामकरण की एक व्यवस्था के तहत डब्ल्यूएचओ ग्रीक वर्णमाला के अक्षरों को क्रम से लेकर कोरोना के वैरिएंट का नामकरण करता रहा है जैसे, अल्फा, बीटा, गामा आदि। इसी क्रम में पिछला वैरिएंट डेल्टा था जो खासा खतरनाक साबित हुआ था। इस परिपाटी के अनुसार कोरोना के नए वैरिएंट का नामकरण ग्रीक वर्णमाला के अगले अक्षर 'नू' (एन और यू) पर होना चाहिए था, लेकिन डब्ल्यूएचओ ने न केवल 'नू' बल्कि इसके अगले अक्षर 'शी' (एक्स और आइ) को भी छोड़ दिया। बस यहीं से कयासों का दौर शुरू हो गया।
लोग समझे नू होगा नाम
जैसे ही कोरोना के नए वैरिएंट बी.1.1.529 के सामने आने की खबरें मिलीं तो चिकित्सा जगत के अधिकांश लोगों ने समझा कि डब्ल्यूएचओ इसका नाम नू रखेगा। क्रम के हिसाब से यही ग्रीक वर्णमाला का अगला उपलब्ध अक्षर था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। डब्ल्यूएचओ ने नू के बाद आने वाले शी को भी नहीं छुआ और शुक्रवार को हुई बैठक में नए वैरिएंट का नाम ओमीक्रोन रख दिया। नामकरण पर 'द टेलीग्राफ' के वरिष्ठ पत्रकार पाल नुकी के ट्वीट को अमेरिका के रिपब्लिकन सांसद टूड क्रूज ने भी रिट्वीट किया है। क्रूज ने लिखा, यदि डब्ल्यूएचओ चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से भयभीत है तो उस पर कैसे विश्वास किया जा सकता है कि भविष्य में इस प्रकार की आपदा के फैलने में उसकी भूमिका पर वह सवाल उठा पाएगा।
डब्ल्यूएचओ ने दी सफाई
इस संबंध में डब्ल्यूएचओ के एक प्रवक्ता ने न्यूयार्क पोस्ट को बताया कि नू अक्षर को न्यू से भ्रम होने की संभावना के कारण नहीं लिया गया। शी को एक प्रचलित उपनाम होने के कारण नहीं चुना गया क्योंकि हमारी नामकरण नीति में स्पष्ट है कि व्यक्तियों, स्थानों, पशुओं आदि के नाम लोगों द्वारा निशाना बनाए जाने की आशंका के कारण नहीं चुने जाएंगे। गौरतलब है कि कोरोना वायरस के फैलने को लेकर चीन पर विश्व के कई देश आरोप लगाते रहे हैं कि यह वहां के वुहान शहर की लैब में से निकला वायरस है।
विशेषज्ञों ने किए ट्वीट
हारवर्ड मेडिकल स्कूल के मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर और महामारी विशेषज्ञ मार्टिन कुलडोर्फ ने भी सवाल उठाया। उन्होंने ट्वीट में आशंका व्यक्त करते हुए लिखा कि वारयस के वैरिएंट को 'शी' स्ट्रेन बुलाए जाने की संभावना को समाप्त करने के लिए ही शायद डब्ल्यूएचओ ने बीच के अक्षर को छोड़ दिया। वाल स्ट्रीट जर्नल के टिप्पणीकार बेन जिमर ने ट्वीट में लिखा, 'भ्रम पैदा करने वाले नू और शी अक्षरों को छोड़कर सीधे ओमीक्रोन को चुनने के लिए डब्ल्यूएचओ को बधाई।'
अखबार का दावा-डब्ल्यूएचओ पर चीन का प्रभाव
'द डेली मेल' की खबर के अनुसार, चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग का डबल्यूएचओ में काफी प्रभाव माना जाता है। डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक टेड्रोस अधनोम घेब्रेयेसस पर पहले आरोप भी लगे हैं कि वह चीन के दबाव में काम करते हैं। बता दें, घेब्रेयेसस अफ्रीकी देश इथोपिया से आते हैं जहां चीन ने भारी निवेश कर रखा है। इसी साल की शुरुआत में द संडे टाइम्स की एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि चीन ने डब्ल्यूएचओ के निर्णयों, जांच प्रक्रिया और अधिकारियों की नियुक्ति को प्रभावित करने का प्रयास किया था। रिपोर्ट में कोरोना वायरस की उत्पत्ति की जांच को कुंद किए जाने के लिए एक गुपचुप डील की बात भी कही गई। बता दें, वायरस के वुहान की एक लैब से निकलने की थ्योरी को डब्ल्यूएचओ ने पुरजोर तरीके से नकार दिया था।