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जिसे कभी थी पहचान की तलाश, आज उसे मिला ‘द विंची’ का खिताब

मप्र के मंदसौर के वाजिद खान ने न केवल अपने भीतर छिपी उस प्रतिभा को पहचाना बल्कि तराशा भी और आज वह भारत के साथ पूरी दुनिया में नाम कमा चुके हैं।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Sun, 07 Jun 2020 12:23 PM (IST)Updated: Sun, 07 Jun 2020 12:23 PM (IST)
जिसे कभी थी पहचान की तलाश, आज उसे मिला ‘द विंची’ का खिताब
जिसे कभी थी पहचान की तलाश, आज उसे मिला ‘द विंची’ का खिताब

इंदौर [हर्षल सिंह राठौर]। ईश्वर हर इंसान को कोई न कोई खास काबिलियत जरूरत देता है, लेकिन जो उसे पहचान पाता है वही जीवन में सफलता के रास्ते पर आगे बढ़ पाता है। मप्र के मंदसौर के वाजिद खान ने न केवल अपने भीतर छिपी उस प्रतिभा को पहचाना, बल्कि तराशा भी और आज वह भारत के साथ पूरी दुनिया में नाम कमा चुके हैं। हाल ही में वह एक बार फिर सुर्खियों में तब आए, जब उन्हें फोर्ब्स पत्रिका के मुख पृष्ठ पर स्थान मिला और पत्रिका ने उन्हें संज्ञा दी आज का लियोनाडरे द विंची..

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कौन थे द विंची 

लियोनाडरे द विंची (1452-1519) इटली के महान चित्रकार, मूíतकार, वास्तुशिल्पी, संगीतज्ञ, कुशल यांत्रिक, इंजीनियर तथा वैज्ञानिक थे। कहते हैं लियोनाडरे को ईश्वरीय वरदान प्राप्त था। इनकी दृष्टि भी वस्तुओं को असाधारण रीति से ग्रहण करती थी। वे उन बातों को देख ग्रहण कर लेते थे, जिसकी आम लोग कल्पना भी नहीं कर पाते। 

रास्ते जितने मुश्किल मंजिल उतनी खूबसूरत  

कहते हैं कि रास्ते जितने मुश्किल होते हैं मंजिल उतनी ही खूबसूरत होती है, बशर्ते उन रास्तों पर ईमानदारी से चला जाए और मन में सपनों को सच करने की जिद हो। ऐसा ही एक सपना और जिद लिए एक बच्चा घर छोड़कर उस अनजान रास्ते की ओर चल देता है, जहां न तो उसे मंजिल का पता होता है और न ही रास्ते का। साथ होता है तो बस कला का और मन में कुछ कर दिखाने की ख्वाहिश। गांव से शहर, अपनों से अनजानों और सुकुन से चुभन तक का सफर तय करते कदम कब कामयाबी की इबारत लिखने लगे, यह खुद कलाकार को पता भी नहीं चला।

जिसे एक वक्त अपने गांव में भी तवज्जो नहीं मिली उसे आज फोर्ब्स इंडिया पत्रिका ने जून 2020 के अंक में आज का लियोनाडरे द विंची का खिताब दे दिया। यह कलाकार हैं वाजिद खान जो मूल रूप से मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले से सटे छोटे से गांव सोनगिरी के रहने वाले हैं। कई दशक से इस कलाकार ने इंदौर को अपनी कर्मभूमि बना रखा है और कला जगत में एक ऐसी संज्ञा हासिल की जो संभवत: इस पत्रिका द्वारा किसी और को आज तक नहीं दी गई।

मन में सपने और कुछ कर दिखाने की चाह  

मन में सपने और कुछ कर दिखाने की चाह रखने वाले वाजिद ने उन माध्यमों को अपनाकर कलाकृतियां गढ़ना शुरू की, जिन्हें अमूमन अनदेखा किया जाता है। कभी पैनी कीलों से अहिंसा का संदेश देने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की आकृति अंकित की तो कभी बेकार पड़े कलपुर्जो से संसद भवन की प्रतिकृति तैयार की। नंगे पैर, भूखे पेट और फटे हाल होकर भी जिसने सृजन और स्वप्न का साथ नहीं छोड़ा आज वही कलाकार देश-विदेश में अपनी कलाकृतियों के बल पर नाम कमा रहा है। जिसने स्कूली शिक्षा भी पूरी तरह से नहीं ली आज वही हुनरमंद देश के ख्यात आइआइएम में वक्ता के रूप में युवाओं को जागरूक करता भी नजर आता है।

औरों के लिए भी किया काम 

वाजिद खान के मन की बात बेशक शुरुआती दौर में उनके परिवार के सदस्य, गांव के लोग भी नहीं जान सके, लेकिन आज उनके द्वारा दिए गए कला के मंत्र कई जिंदगियों को खूबसूरत बना रहे हैं। वाजिद ने न केवल खुद के लिए कलाकृतियां रचीं, बल्कि अपने साथ औरों को लेकर भी काम किया।

कबाड़ के जुगाड़ से बेजोड़ कलाकृतियां बनाने वाले इस युवा ने सड़कों पर कचरा बीनकर जिंदगी चलाने वाले बच्चों को भी हुनर के रास्ते पर चलना और सिखाना शुरू किया और कभी टूटी हुई चम्मचों से तो कभी गाड़ियों के कलपुर्जो से, कभी सूखे पेड़ों पर चित्रकारी करने से तो कभी कई फीट ऊंची मूíतयां बनाने का प्रशिक्षण और रोजगार भी दिया। सोनगिरी गांव से ‘एकला चलो’ मंत्र को लिए शुरू हुई यात्र आज काफिले के रूप में आगे बढ़ रही है, जिसमें बच्चे-बड़े, महिला-पुरुष, साक्षर-अनपढ़ हर वर्ग के कलाकार शामिल हैं। 

जब ऑटो रिक्शा भी पेंट करना पड़ा 

मंदसौर से आठ किमी दूर महू-नीमच राजमार्ग पर छोटे से गांव सोनगिरी के रहने वाले वाजिद ने हमेशा लीक से हटकर कार्य करने का सपना देखा। उनके पास लोहे के पुराने सामान, चुंबक व अन्य वस्तुओं से हमेशा कुछ न कुछ जुगाड़ के नुस्खे रहते थे। हालांकि इस छोटी सी जगह पर उन्हें कोई गंभीरता से नहीं लेता था। फिर उन्होंने इंदौर जाकर कीलों से बनने वाली कलाकृतियां सीखना शुरू किया।

नाम के पीछे लगाया इंडिया  

इसके बाद इस कलाकार ने पलटकर नहीं देखा है। देश-विदेश में अपनी कलाकृतियों के जरिये नाम करने वाले इस कलाकार की कृतियां बेशक आज लाखों-करोड़ों की कीमत रखती हों पर एक वक्त वह भी था जब वाजिद को मुफलिसी ने चारों ओर से घेर रखा था। शुरुआती दिनों में ऑटो रिक्शा पर पेंटिंग करके भी रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा किया पर कभी हार नहीं मानी अब विदेश में भी मिल रही शोहरत। 

अब भारत के बाहर भी इनका नाम होने लगा है। साथ ही इनकी कला के कद्रदान भी विश्वभर में बढ़ते जा रहे हैं। इसलिए वाजिद खान ने अपने नाम में इंडिया जोड़ लिया है, ताकि विश्व में कहीं भी जाएं भारत का नाम प्रदर्शित होता रहे। 

कबाड़ के प्रेम से लोगों ने चोर समझ लिया 

कुछ साल पहले उन्होंने मुख्यत: बुलेट और अन्य कई लग्जरी कारों के पार्ट्स जोड़कर चंपा नामक घोड़ी की कलाकृति बनाई थी। घोड़ी के साथ एक जॉकी को भी जोशीले अंदाज में दिखाया गया। इसे बनाने में करीब आठ माह का समय लगा था।

वाजिद ने उस समय बताया था कि एक बार उनकी टीम में काम करने वाले एक सदस्य के पिता को लगा कि ये लोग गाड़ी चुराने का काम करते हैं। इस पर उन्होंने पुलिस को शिकायत कर दी। पुलिस ने उन्हें तभी छोड़ा जब उन्होंने पुरानी कीलों का बना आर्ट वर्क और सभी पार्ट्स के बिल बताए। वाजिद के मुताबिक यह अनुभव वे कभी नहीं भूल सकते। 


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