SC की इस पहल के बाद हिंदुओं को भी मिल सकता है अल्पसंख्यक का दर्जा, जाने कैसे
भारत में आखिर कौन अल्पसंख्यक है, इसको लेकर काफी समय से बहस चल रही है। लेकिन जवाब अब तक नहीं मिला। मगर अब सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद इसका जवाब मिलने की उम्मीद है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। अल्पसंख्यक की परिभाषा को लेकर छिड़ी बहस ने अब कोर्ट की राह पकड़ ली है। इसको लेकर काफी समय से सवाल उठता रहा है। नेताओं से लेकर दूसरे लोग भी अल्पसंख्यक की मौजूदा परिभाषा पर सवाल उठाते रहे हैं। यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट ने इसको लेकर राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अल्पसंख्यक की परिभाषा और पहचान तय करने की मांग वाले ज्ञापन पर तीन महीने में फैसला ले। कोर्ट ने सोमवार को यह आदेश भाजपा नेता व वकील अश्वनी कुमार उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई के दौरान दिए। उपाध्याय ने याचिका दाखिल कर सुप्रीम कोर्ट से अल्पसंख्यक की परिभाषा और पहचान तय करने की मांग की थी। दरअसल, इसकी परिभाषा को लेकर 2017 में अल्पसंख्यक आयोग ज्ञापन सौंपकर जवाब मांगा गया था, लेकिन आयोग ने इसपर कोई जवाब नहीं दिया। अब सुप्रीम कोर्ट ने इसको ही लेकर जवाब देने का आदेश दिया है।
ये है मांग
- नेशनल कमीशन फार माइनॉरिटी एक्ट की धारा 2(सी) रद की जाए, यह मनमानी और अतार्किक है।
- केंद्र की 23 अक्टूबर 1993 की वह अधिसूचना रद की जाए जिसमें पांच समुदायों मुसलमान, ईसाई, बौद्ध, सिख और पारसी को अल्पसंख्यक घोषित किया गया है।
- अल्पसंख्यक की परिभाषा और अल्पसंख्यकों की पहचान के लिए दिशानिर्देश तय हों, ताकि यह सुनिश्चित हो कि सिर्फ उन्हीं अल्पसंख्यकों को संविधान के अनुच्छेद 29-30 में अधिकार और संरक्षण मिलेगा जो वास्तव में धार्मिक और भाषाई, सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक रूप से प्रभावशाली न हों और जो संख्या में बहुत कम हों।
कौन कहां अल्पसंख्यक
2011 के जनसंख्या आकड़ों के मुताबिक आठ राज्यों लक्षद्वीप, मिजोरम, नगालैंड, मेघालय, जम्मू कश्मीर, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और पंजाब में हिंदू अल्संख्यक हैं, लेकिन उनके अल्पसंख्यक के अधिकार बहुसंख्यकों को मिल रहे हैं। इसी तरह लक्षद्वीप, जम्मू-कश्मीर में मुसलमान बहुसंख्यक हैं, जबकि असम, पश्चिम बंगाल, केरल, उत्तर प्रदेश तथा बिहार में में भी उनकी ठीक संख्या है, लेकिन वे वहां अल्पसंख्यक दर्जे का लाभ ले रहे हैं मिजोरम, मेघालय, नगालैंड में ईसाई बहुसंख्यक हैं, जबकि अरुणाचल प्रदेश, गोवा, केरल, मणिपुर, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल मे भी ईसाइयों की संख्या अच्छी है। इसके बावजूद वे अल्पसंख्यक माने जाते हैं। पंजाब में सिख बहुसंख्यक हैं और दिल्ली, चंडीगढ़ और हरियाणा में भी सिखों की अच्छी संख्या है।
अल्पसख्ंयकों को लेकर ऐतिहासिक तथ्य
बहरहाल जहां तक इस शब्द की परिभाषा की बात है तो संविधान सभा के सदस्य और बिहार के वरिष्ठ नेता तजम्मुल हुसैन ने एक बार जोर देकर कहा था कि हम अल्पसंख्यक नहीं हैं। इतना ही नहीं उन्होंने यहां तक कहा था कि इस शब्द को डिक्शनरी से हटा देना चाहिए। अब हिन्दुस्तान में कोई अल्पसंख्यक वर्ग नहीं रह गया है। उनके इस भाषण की जबरदस्त तारीफ हुई थी। संविधान सभा की कार्यवाही में यह बात भी कोष्ठक में दर्ज है।
यहां भी नहीं अल्पसंख्यक की परिभाषा
आपको यहां पर ये भी बता दें कि संविधान के अनुच्छेद 366 में 30 उपखंड हैं जिनमें पेंशन, रेल, सर्वोच्च न्यायालय जैसे जगजाहिर शब्दों की परिभाषा को शामिल किया गया है। लेकिन इसमें अल्पसंख्यक की परिभाषा को शामिल नहीं किया गया है। यहां पर एक तथ्य और दिलचस्प है कि संविधान निर्माताओं को अल्पसंख्यक आयोग के गठन की जरूरत नहीं महसूस हुई थी। कानून में अल्पसंख्यक की परिभाषा पर यदि नजर डालेंगे तो अल्पसंख्यक वह समुदाय है जिसे केंद्र सरकार अधिसूचित करे। किसी जाति समूह को अनुसूचित जाति या जनजाति घोषित करने की विधि (अनु. 341 व 342) का काम संसद ही करती है।
धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक
जहां तक अल्पसंख्यक की बात है तो इनमें भाषाई और धर्म के आधार पर अल्पसंख्यक भी शामिल हैं। भाषाई अल्पसंख्यक लोगो का वह समूह है जिनकी मातृभाषा उस राज्य की मुख्य या प्रमुख भाषा से भिन्न हो। किसी भी समूह को भाषाई अल्पसंख्यक घोषित करने का अधिकार राज्य को है। भाषाई अल्पसंख्यक का दर्जा राज्य उनके सामाजिक एवं आर्थिक विकास हेतु देता है जो उस राज्य के संविधान द्वारा अपेक्षित होती है। अलग -अलग देशों में भाषाई अल्पसंख्यकों के अधिकार एवं सुरक्षा के लिए संस्था की व्यवस्था होती है। जहां तक भारत की बात है तो यहां भाषाई अल्पसंख्यकों के विकास के लिए संविधान द्वारा विशेष अधिकारी नियुक्त किये जाने का प्रावधान है। भारतीय संविधान द्वारा 1957 में विशेष अधिकारी हेतु कार्यालय की स्थापना की गई जिसे आयुक्त नाम दिया गया। इसमें आयुक्त की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है। आयुक्त का कार्य एवं उद्देश्य भाषाई अल्पसंख्यकों के सुरक्षा एवं विकास संबंधी कार्यो का अनुसंधान और इन कार्यो का राष्ट्रपति को प्रतिवेदन करना है। उसका लक्ष्य भाषायी अल्पसंख्यको को समाज के साथ समान अवसर प्रदान कर राष्ट्र की गतिशीलता में उनकी सहभागिता पुष्ट करना है। वहीं किसी देश, प्रान्त या क्षेत्र की जनसंख्या में जिस धर्म के मानने वालों की संख्या कम होती है उस धर्म को अल्पसंख्यक धर्म तथा उसके अनुयाइयों को धार्मिक अल्पसंख्यक कहा जाता है।
अल्पसंख्यक आयोग पर एक नजर
अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना 12 जनवरी 1978 को हुई थी। इस आयोग के गठन का आधार अल्पसंख्यकों से भेदभाव, उनकी सुरक्षा, देश की धर्मनिरपेक्ष परंपरा को बनाए रखने और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देना था। इसके अंतर्गत आयोग सरकार द्वारा अल्पसंख्यकों के लिए लागू की जाने वाली योजनाओं और नीतियों को प्रभावी तरीके से लागू करने पर भी नजर रखता है। वर्ष 1984 में कुछ समय के लिए अल्पसंख्यक आयोग को गृह मंत्रालय से अलग कर दिया गया था और कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत नए रूप में इसको गठित किया गया।
- आयोग के कार्यों पर एक नजर
- अल्पसंख्यकों की उन्नति तथा विकास का मूल्यांकन करना।
- संविधान में मौजूद और संसद और राज्यों की विधानसभाओं या परिषदों द्वारा अधिनियमित कानूनों के अनुसार अल्पसंख्यकों के संरक्षण से संबधित कार्यों की निगरानी करना।
- केंद्रीय सरकार या राज्य सरकारों द्वारा अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिए संरक्षण के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए अनुषंसा करना।
- अल्पसंख्यकों को अधिकारों तथा संरक्षण से वंचित करने से संबधित विषेश शिकायतों को देखना तथा ऐसे मामलों की संबधित अधिकारियों के सामने प्रस्तुत करना।
- अल्पसंख्यकों के विरूद्ध किसी भी प्रकार के भेदभाव से उत्पन्न समस्याओं के कारणों का अध्ययन और इनके समाधान के लिए उपायों की अनुषंसा करना।
- अल्पसंख्यकों के सामाजिक आर्थिक तथा शिक्षा से संबधित विषयों का अध्ययन, अनुसंधान तथा विष्लेशण की व्यवस्था करना।
- अल्पसंख्यकों से संबधित ऐसे किसी भी उचित कदम का सुझाव देना जिसे केंद्रीय सरकार या राज्य सरकारों के द्वारा उठाया जाना है।
- अल्पसंख्यकों से संबधित किसी भी मामले विषेशतौर पर उनके सामने होने वाली कठिनाइयों पर केंद्रीय सरकार हेतु नियतकालिक या विशेष रिपोर्ट तैयार करना।
- कोई भी अन्य विषय जिसे केंद्रीय सरकार के सामने प्रस्तुत किया जा सकता है, रिपोर्ट तैयार करना।
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