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जब अपनों ने नकारा तो किन्नरों ने ऐसे बुन ली रिश्तों की डोर, ये हैं इनके नियम और कायदे

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के गंजपारा स्थित देशबंधु स्कूल में संपन्न हुए महामंगला मुखी किन्नर सम्मेलन में किन्नरों ने नए रिश्तों की रचना की।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 22 Jan 2019 01:41 PM (IST)Updated: Tue, 22 Jan 2019 01:45 PM (IST)
जब अपनों ने नकारा तो किन्नरों ने ऐसे बुन ली रिश्तों की डोर, ये हैं इनके नियम और कायदे
जब अपनों ने नकारा तो किन्नरों ने ऐसे बुन ली रिश्तों की डोर, ये हैं इनके नियम और कायदे

रायपुर, नईदुनिया प्रतिनिधि। परिवार इंसान की ताकत होता है। दुख हो या सुख, तीज हो या त्योहार, एक-दूसरे का साथ ही हमें आगे ले जाता है। वहीं एक समुदाय है, जिसे परिवार के सदस्यों ने ही नकार दिया। न तो इस समुदाय के लोगों ने रिश्ते जाने, न ही अपनापन। बात हो रही है किन्नर समुदाय की। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के गंजपारा स्थित देशबंधु स्कूल में संपन्न हुए महामंगला मुखी किन्नर सम्मेलन में किन्नरों ने नए रिश्तों की रचना की। देश भर के 29 राज्यों से आए किन्न्रों ने एक-दूसरे को मां, बहन, सास, बहू के रिश्ते में पिरोया। समुदाय के छोटे बच्चों को गोद लेकर उन्हें माता-पिता का प्यार भी दिया। मौके पर मौजूद गद्दीदार किन्न्र यादी समुदाय का प्रमुख भुल्लो नायक ने रिश्तों को जीवन भर निभाने की रस्म अदा की।

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13 साल की मुस्कान को नगीना ने लिया गोद
सम्मेलन के दौरान रायपुर की नगीना किन्न्र ने 13 साल की मुस्कान को गोद लिया। अब वह उसके पालन-पोषण और पढ़ाई लिखाई का जिम्मा उठा रही है। नगीना ने कहा कि वह मुस्कान को माता और पिता दोनों की तरह अच्छी परवरिश देना चाहती हैं। वे चाहती हैं कि मुस्कान पढ़-लिख कर आगे बढ़े और अपने पैरों पर खड़ी हो जाए।

'बरसी' का पर्याय है महामंगला मुखी किन्नर सम्मेलन
लगातार रायपुर में हो रहे महामंगला मुखी किन्नर सम्मेलन को लोग देखते आ रहे हैं, लेकिन बहुत ही कम को इसके बारे में पता है। महामंगला मुखी किन्नर सम्मेलन गुरु-शिष्य परंपरा का अद्भुत उदाहरण है। अन्य समुदाय में जिस तरह बड़े-बुजुर्ग की मृत्यु के बाद बरसी मनाई जाती है, उसी तरह किन्नर समुदाय भी साल में गुजरे लोगों की याद में महामंगला मुखी किन्नर सम्मेलन मनाता है। बालाघाट से आई रूपा नायक ने बताया कि इस सम्मेलन में देश भर से किन्नर जुटते हैं और नए रिश्तों के साथ परंपरा आगे बढ़ती है।

खुद के खर्च पर करते हैं सम्मेलन
देश भर से आए करीब 10 हजार किन्नरों के रहने, खाने और तमाम तरह की व्यवस्था का खर्च किन्नर समुदाय खुद उठाता है। रायपुर किन्नर समुदाय की गीता बाई ने बताया कि अन्य समुदाय के लोग सहायता कर देते हैं। इसमें कोई तेल 10-20 टीन देता है। कोई पूरा टेंट लगा देता है। इससे हमारा सम्मेलन भी हो जाता है और परंपरा भी आगे बढ़ जाती है।

पहुंचते हैं आशीर्वाद लेने
मौके पर बहुत से लोग किन्नरों का आशीर्वाद लेने पहुंचे। किसी ने संतान न होने की व्यथा सुनाई तो किसी ने पारिवारिक कलह दूर करने की बात की। किन्नरों ने भी आम जनों को आशीर्वाद देकर भगवान से सभी के दुख दूर करने की दुआ मांगी।

गुरु-शिष्य की परंपरा ही सर्वमान्य
नगीना हाजी ने बताया कि किन्नरों के समुदाय में जो प्रमुख गुरु होता है, समुदाय की संपूर्ण जिम्मेदारी उसी के कंधों पर होती है। समुदाय के पूरे साल के खर्च से लेकर अन्य सभी चीजें की व्यवस्था उसे ही करना होता है। वहीं किन्नर समुदाय बहुचरा देवी को कुलदेवी के रूप में पूजता है, जो मां भगवती का अवतार है।


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