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हिंदी आंदोलन के समय जान जाते बची: नादर

कोयंबटूर। देश की नामी आइटी कंपनी एचसीएल के संस्थापक और चेयरमैन शिव नादर ने कहा है कि चार दशक पहले छात्र जीवन में हिंदी विरोधी आंदोलन के दौरान उनकी जान जाते-जाते बची थी।

By Edited By: Published: Thu, 19 Jul 2012 07:44 PM (IST)Updated: Thu, 19 Jul 2012 09:27 PM (IST)
हिंदी आंदोलन के समय जान जाते बची: नादर

कोयंबटूर। देश की नामी आइटी कंपनी एचसीएल के संस्थापक और चेयरमैन शिव नादर ने कहा है कि चार दशक पहले छात्र जीवन में हिंदी विरोधी आंदोलन के दौरान उनकी जान जाते-जाते बची थी।

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पीएसजी कॉलेज में एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा, 'हिंदी विरोधी आंदोलन के दौरान तमिलनाडु में हालात काफी बदले हुए थे। 25 जनवरी, 1965 को जब आंदोलन चरम पर था तब पोस्ट आफिस के निकट पुलिस ने लाठीचार्ज किया था। जिससे बहुत से छात्र परेशान हो उठे थे। अगले दिन अफवाह फैली की मदुरई मेडिकल कॉलेज के दो छात्रों को गोली मार दी गई है। उसके बाद लगभग सभी कॉलेजों के पांच हजार छात्रों ने जिलाधिकारी कार्यालय के सामने प्रदर्शन किया और इस मुद्दे को उठाया था। इसमें मैं भी शामिल था। तब अधिकारियों ने कहा कि हिंसा में शामिल लोगों को देखते ही गोली मारने के आदेश हैं। जैसे ही छात्रों ने वहां से हटना शुरू किया किसी ने कहा कि दो तीन बसों में आग लगाते हैं, लेकिन मैंने यह खतरनाक काम करने से इन्कार कर दिया।

उन्होंने कहा कि उस समय राह चलते यह डर समाया रहता था कि बंदूक लिए कोई आदमी हमें गोली न मार दे। नादर ने इसी कॉलेज से स्नातक किया था। उन्होंने कहा, 'पीएसजी में अपने छात्र जीवन के दौरान मैंने तीन प्रधानमंत्रियों को बदलते और दो युद्ध होते देखा था। इससे हमें साहस, नेतृत्व और आशावादी दृष्टिकोण सीखने का मौका मिला।' उनके मुताबिक केंद्र पर दबाव बनने के बाद हिंदी को अनिवार्य बनाने का फैसला वापस ले लिया गया।

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