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प्राकृतिक खेती क्या है? यहां जानें, चार स्तंभों पर टिकी है जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग

किसी भी वृक्ष के समृद्ध होने के लिए आवश्यक है उसकी जड़ों का मजबूत होना। कृषि समाज के साथ भी यही है। हमें अपनी जड़ों से जुड़कर ही आगे बढ़ने की राह देखनी चाहिए। जीरो बजट नैचुरल फार्मिंग (जेडबीएनएफ) जड़ों से उसी जुड़ाव का माध्यम है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 20 Dec 2021 11:27 AM (IST)Updated: Mon, 20 Dec 2021 11:30 AM (IST)
प्राकृतिक खेती क्या है? यहां जानें, चार स्तंभों पर टिकी है जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग
खेतों में रासायनिक खाद का प्रयोग न हो।

नई दिल्‍ली, जेएनएन। भारतीय कृषि जोत छोटी होने से कृषि की लागत बढ़ जाती है। दरअसल खेत में श्रम और लागत गणित के सीधे सूत्र की तरह नहीं चलता है। एक हेक्टेयर खेत में जितनी लागत लग जाती है, उससे बमुश्किल दो-तीन गुना की कुल लागत में 10 हेक्टेयर में खेती संभव है। इससे समझा जा सकता है कि कम जोत वाले किसान के लिए अस्तित्व की लड़ाई कितनी जटिल है। इसी समस्या का समाधान मिलता है जीरो बजट प्राकृतिक खेती में। इसमें लागत कम होने से लाभ बढ़ जाता है।

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लाभ अनेक लागत में कमी: काउंसिल आन एनर्जी, एनवायरमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) द्वारा आंध्र प्रदेश में किए गए अध्ययन के मुताबिक, चावल की खेती में किसानों को रासायनिक खाद आदि पर औसतन 5,961 रुपये प्रति एकड़ खर्च करना पड़ता है। प्राकृतिक इनपुट की लागत मात्र 846 रुपये प्रति एकड़ आती है।

उर्वरक की बचत: सीईईडब्ल्यू की ही एक रिपोर्ट मुताबिक, चावल की प्राकृतिक खेती से प्रति एकड़ 74 किलोग्राम यूरिया कम प्रयोग होता है। निश्चित तौर पर यदि बड़े पैमाने पर प्राकृतिक खेती हो, तो उर्वरक सब्सिडी का बोझ कम करने में सहायता मिलेगी। केवल पूरे आंध्र प्रदेश में ही उर्वरकों का प्रयोग न हो तो 2,100 करोड़ रुपये सब्सिडी में बच सकते हैं।

जल संरक्षण: प्राकृतिक खेती से जमीन की जलधारण क्षमता बढ़ती है। खपत कम होती है। सेंटर फार स्टडी आफ साइंस, टेक्नोलाजी एंड पालिसी की रिपोर्ट के मुताबिक, प्राकृतिक खेती से 50-60 प्रतिशत कम पानी और बिजली की आवश्यकता होती है। यदि इस पद्धति को बढ़ावा दिया जाए तो भूजल समस्या से निपटना संभव है।

जड़ों से जुड़कर ही बढ़ना संभव: किसी भी वृक्ष के समृद्ध होने के लिए आवश्यक है उसकी जड़ों का मजबूत होना। कृषि समाज के साथ भी यही है। हमें अपनी जड़ों से जुड़कर ही आगे बढ़ने की राह देखनी चाहिए। जीरो बजट नैचुरल फार्मिंग (जेडबीएनएफ) जड़ों से उसी जुड़ाव का माध्यम है। इसमें पेस्टिसाइड्स और उर्वरकों के प्रयोग के बिना खेती को बढ़ावा दिया जाता है। इससे किसान पर किसी अतिरिक्त बाहरी लागत का दबाव नहीं पड़ता है। किसानों को ऐसी पद्धतियां सिखाई जाती हैं, जिनसे जमीन की उर्वरा क्षमता बनी रहती है और बिना रासायनिक खाद डाले ही अच्छी फसल मिलती है। इसमें प्रकृति के साथ साम्य बनाते हुए कृषि को प्रोत्साहित किया जाता है। इस समय परंपरागत कृषि विकास योजना के तहत भी केंद्र सरकार आर्गेनिक खेती को बढ़वा दे रही है।

उद्देश्य

  • जल संरक्षण हो सके
  • खेतों में पेड़ लगाए जाएं
  • जमीन कभी खाली न रहे
  • स्वदेशी बीजों का प्रयोग हो
  • मिट्टी में कार्बनिक तत्व बढ़ें
  • खेती में बाहरी लागत न लगे
  • पशुओं को खेती से जोड़ा जाए
  • रासायनिक खाद का प्रयोग न हो
  • एक से अधिक फसल उगाई जाए

चार स्तंभों पर टिकी है जेडबीएनएफ

बीजामृत: देसी गाय के गोबर व गोमूत्र के फामरूलेशन से बीज उपचारित होते हैं। इससे बीच रोगों से भी बचे रहते हैं।

जीवामृत: गाय के गोबर व गोमूत्र से तैयार किया जाता है। इसे मिट्टी में डालने से उर्वर क्षमता बढ़ती है और मिट्टी में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीव व केंचुए आदि सक्रिय होते हैं।

आच्छादन: खेत को फसली अवशेष या अन्य कार्बनिक कचरे से ढंक दिया जाता है। समय के साथ ये अवशेष सड़-गल जाते हैं और खेत की ऊपरी परत को ढंकने वाली एक तह बन जाती है। इससे जमीन की उर्वर क्षमता भी बढ़ती है और खर-पतवार भी कम निकलते हैं।

नमी: जीवमित्र और आच्छादन से मिट्टी की नमी बढ़ती है। इससे मिट्टी में पानी रोकने की क्षमता भी बढ़ जाती है। इससे अच्छी बारिश नहीं होने की स्थिति में भी बेहतर फसल पाना संभव होता है।


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