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आखिरकार क्या रिश्ता है मिजोरम के 'मिजो' का म्यांमार के 'चिन' समुदाय से

मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरामथागा ने बताया कि मिजोरम की सीमा से लगे म्यांमार में चिन समुदायों का निवास है जो जातीय रूप से हमारे मिजो भाई है। भारत की आजादी के पहले से हमारे निकट संपर्क रहे हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 24 Mar 2021 02:35 PM (IST)Updated: Wed, 24 Mar 2021 02:41 PM (IST)
आखिरकार क्या रिश्ता है मिजोरम के 'मिजो' का म्यांमार के 'चिन' समुदाय से
17वीं शताब्दी में कबीलों के बीच हुए संघर्षो में जातियां तीन देशों भारत, बांग्लादेश और म्यांमार में जाकर बस गई।

गृह मंत्रलय ने सीमावर्ती राज्यों मिजोरम, नगालैंड, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश की सरकारों को लिखा था कि म्यांमार के लोगों को वापस लौटाने के लिए कहें। इस पर मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरामथागा ने सिर्फ पत्र लिखकर असमर्थता जताई बल्कि म्यांमार के विदेश मंत्री निर्वासित जिन मार आंग के साथ एक आभासी बैठक भी कर ली। आखिरकार क्या रिश्ता है मिजोरम के मिजो का म्यांमार के चिन समुदाय से। दोनों देशों के समुदायों और उनके रिश्तों पर नेशनल डेस्क की रिपोर्ट..

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चिन हिल्स में रहने वाले जनजाति फैल गए तीन देशों में: चिन हिल्स या इंडो-चिन पर्वत माला उत्तर-पश्चिमी म्यांमार में एक पहाड़ी क्षेत्र है। 2100-3000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह पहाड़ी घने जंगलों से आच्छादित था। यहां मुख्य रूप से चिन, कुकी, मिजो जाति के लोग रहते थे। इनकी कई उपजातियां भी हैं, जो चिन, कूकी, मिजो, जोमी, पैतेई, हमार जैसे कबीले में बंटे हुए थे। 17वीं शताब्दी में कबीलों के बीच हुए संघर्षो में जातियां तीन देशों भारत, बांग्लादेश और म्यांमार में जाकर बस गई। वहां उन्होंने अपने-अपने उपनिवेशों की स्थापना की। यही वजह है कि इनकी जड़ें आपस में जुड़ी हुई हैं। जब ब्रिटिश शासन पूवरेत्तर की ओर बढ़ा, तो मिजोरम को बहिष्कृत क्षेत्र के रूप में माना गया और ब्रिटिश प्रशासन के बाहर रह गया, जो केवल अनुसूचित जिला अधिनियम द्वारा शासित था।

असम का हिस्सा था मिजोरम: वर्ष 1972 में केंद्र शासित प्रदेश बनने से पहले तक मिजोरम असम का एक जिला था। वर्ष 1891 में ब्रिटिश कब्जे में जाने के बाद कुछ वर्षो तक उत्तर का लुशाई पर्वतीय क्षेत्र असम के और आधा दक्षिणी भाग बंगाल के अधीन रहा। वर्ष 1898 में दोनों को मिलाकर एक जिला बना दिया गया, जिसका नाम पड़ा—लुशाई हिल्स जिला और यह असम के मुख्य आयुक्त के प्रशासन में आ गया। वर्ष 1972 में पूवरेत्तर क्षेत्र पुनर्गठन अधिनियम लागू होने पर केंद्र शासित प्रदेश बन गया। भारत सरकार और मिजो नेशनल फ्रंट के बीच वर्ष 1986 में हुए ऐतिहासिक समझौते के बाद 20 फरवरी, 1987 को इसे पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया। पूर्व और दक्षिण में म्यांमार और पश्चिम में बांग्लादेश के बीच स्थित होने के कारण सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण राज्य है।

ऐसे दी जा सकती है शरण: शरणार्थियों के लिए कोई राष्ट्रीय कानून नहीं है। वर्ष 2011 में, केंद्र ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में शरणार्थियों के होने का दावा करने वाले विदेशी नागरिकों से निपटने के लिए एक मानक प्रक्रिया शुरू की। जाति, धर्म, लिंग, राष्ट्रीयता, जातीय पहचान, किसी विशेष सामाजिक समूह की सदस्यता या राजनीतिक राय के आधार पर उत्पीड़न की आशंकाओं के आधार पर राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों को शरण देने की सिफारिश का अधिकार है।

तब मिजो परिवार म्यांमार में जाकर बस गए थे: 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में, चंपई जिले के मिजोस और अन्य जगहों से म्यांमार चले गए, जिन्होंने काले-कबा घाटी में गांवों की स्थापना की। माना जाता है कि कई लोग आकर्षक रोजगार के लिए म्यांमार की सेना में शामिल हुए हैं। वर्ष 1966 और 1986 में कई मिजो परिवार भी म्यांमार चले गए। जब मिजो नेशनल फ्रंट ने अलगाववाद से बचने के लिए भारत से अलगाव की मांग की तब भी कई मिजो म्यांमार में जाकर बस गए। वर्ष 1988 में, म्यांमार में लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कार्रवाई के कारण चिन शरणार्थियों को भारत में चंपई जिले में भेजा गया था और तब से उन्हें मिजो समाज में एकीकृत किया गया है।

मिजो शब्द की उत्पत्ति के बारे में पता नहीं: मिजो शब्द की उत्पत्ति के बारे में ठीक से ज्ञात नहीं है। इसकी अपनी लिपि नहीं है। 19वीं शताब्दी में यहां ब्रिटिश मिशनरियों का प्रभाव फैल गया और इस समय तो अधिकांश ने ईसाई धर्म अपना लिया।

भारत और म्यांमार में चिन लोगों के बीच सांस्कृतिक बंधन: मिजोरम और चिन स्टेट के बीच सिर्फ 510 किलोमीटर की दूरी है। इंडो-चिन एक ही समुदाय व धर्म को मानते हैं। इनकी संस्कृति और लोकगीत भी एक हैं।

मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरामथागा ने बताया कि मिजोरम की सीमा से लगे म्यांमार में चिन समुदायों का निवास है, जो जातीय रूप से हमारे मिजो भाई है। भारत की आजादी के पहले से हमारे निकट संपर्क रहे हैं। यही वजह है कि आपदा के समय में हम उदासीन और असहयोगात्मक रवैया नहीं रख सकते हैं।


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