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तो इसलिए आती है कोरोना जैसी महामारी, हर साल दो नए वायरस करते दुनिया को परेशान; वैज्ञानिकों ने दिए ये सुझाव

वायरस इंसानों में चमगादड़ या अन्य वन जीवों या फिर फॉर्म में रखे जाने वाले जानवर जैसे चिकन या सुअर से इंसानों में पहुंचे हैं। जंगली जीवों या जानवरों से इंसानों का संपर्क बढ़ने से इस तरह के वायरस पहुंचने का खतरा पहले से कहीं अधिक बढ़ा है।

By TilakrajEdited By: Published: Tue, 18 Jan 2022 03:44 PM (IST)Updated: Tue, 18 Jan 2022 03:44 PM (IST)
तो इसलिए आती है कोरोना जैसी महामारी, हर साल दो नए वायरस करते दुनिया को परेशान; वैज्ञानिकों ने दिए ये सुझाव
कोविड-19 के लिए चमगादड़ बना मुख्य वजह

नई दिल्ली, अनुराग मिश्र/विवेक तिवारी। पूरी दुनिया में कोविड-19 महामारी ने लाखों लोगों की जान ली है। इस महामारी ने जन की हानि के साथ दुनिया भर के देशों की इकोनॉमी को भी खासा नुकसान पहुंचाया है। मौजूदा समय में वैक्सीन के साथ-साथ तमाम कोशिशों के बावजूद भी इस बीमारी पर पूर्णत: अंकुश नहीं लगाया जा सका है। इस स्थिति को समझते हुए वैज्ञानिकों ने एक एक्शन प्लान तैयार किया है, ताकि भविष्य में इस तरह के वायरस पर रोक लगाई जा सके। वैज्ञानिकों ने अपने एक्शन प्लान शोध पत्र में कहा है कि अगर कोरोना-19 की वजह से हुए नुकसान के दो फीसद को जंगलों और वन्य जीवों को बचाने में लगा दें और अपनी इकोलॉजिकल डायवर्सिटी को पुख्ता कर लें, तो इस महामारी से होने वाली हानि को भविष्य में रोका जा सकता है।

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वैज्ञानिकों के मुताबिक, कोविड-19 महामारी से उबरने के बाद दुनिया का प्राथमिकता पहले बेरोजगारी, पुरानी बीमारियों, दिवालिया होने और सार्वजनिक संस्थानों की गंभीर वित्तीय कठिनाई से उबरने की होगी। लेकिन इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि अब नई बीमारियों के उभरने की दर बढ़ रही है और उनके आर्थिक प्रभाव भी बढ़ रहे हैं। महामारी के जोखिम को कम करने के लिए एक वैश्विक रणनीति को स्थगित करने से लागत में लगातार वृद्धि होगी।

इतने ट्रिलियन का हुआ नुकसान

रिपोर्ट के अनुसार, लोगों की जान लेने के अलावा इस एक वायरस ने 2020 में दुनिया की जीडीपी को करीब 5.6 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा का नुकसान पहुंचाया है। वैज्ञानिकों ने जो एक्शन प्लान तैयार किया है उसे लागू करने में एक साल में लगभग 22 से 31 बिलियन डॉलर का खर्च आएगा। वैज्ञानिकों ने जो एक्शन प्लान तैयार किया है उसमें पेड़ों को बचाने और नए पेड़ लगाने का भी सुझाव दिया है जिसके जरिए दुनिया को हर साल लगभग 4 बिलियन डॉलर के फायदे होंगे।

वैज्ञानिकों के मुताबिक, अब तक ये देखा गया है कि हर 100 या 200 साल में एक महामारी पूरी दुनिया को नुकसान पहुंचाती है। ऐसे में वैज्ञानिकों की ओर से तैयार किए गए एक्शन प्लान को लागू करने पर महामारी की संभावना अधो से कम हो सकती है। इस एक्शन प्लान का कुल खर्च कोरोना वायरस महामारी से होने वाले नुकसान की तुलना में मात्र दो फीसदी ही है।

प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर एंड्रयू डॉब्सन ने ई-मेल के माध्यम से बताया कि यदि भविष्य में इस तरह की महामारियों से बचने की सालाना लागत देखें, तो वह दुनिया के 10 सबसे अमीर देशों द्वारा सेना पर खर्च की जा रही धनराशि के केवल 1 से 2 फीसदी के बराबर है। ऐसे में यदि हम कोरोना महामारी को एक युद्ध की तरह देखें, तो यह निवेश बहुत साधारण है।

हर साल दो नए वायरस करते हैं दुनिया को परेशान

अब इस सदी की बात करें, तो अब तक हर साल लगभग दो नए वायरसों ने आम लोगों के जीवन की मुश्किल को बढ़ाया है। इसमें मर्स, एच1एन1, एचआईवी और कोरोना वायरस रोग (COVID-19) जैसे वायरस शामिल हैं। इस तरह के वायरस इंसानों में चमगादड़ या अन्य वन जीवों या फिर फॉर्म में रखे जाने वाले जानवर जैसे चिकन या सुअर से इंसानों में पहुंचे हैं। जंगली जीवों या जानवरों से इंसानों का संपर्क बढ़ने से इस तरह के वायरस पहुंचने का खतरा पहले से कहीं अधिक बढ़ा है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, इस तरह के वायरस के हमलों से बचाव के लिए तत्काल प्रभाव से हमें उष्णकटिबंधीय जंगलों की कटाई को रोकने और बढ़ते वन्यजीव व्यापार पर लगाम लगाने की जरूरत है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, किसी महामारी पर लगाम लगाने के लिए उठाए गए कदमों की कीमत किसी महामारी के नियंत्रण के लिए किए गए खर्च से हमेशा ही बेहद कम होगी।

यहां से आते हैं खतरनाक वायरस

ज्यादातर मामलों में देखा गया है कि इंसानों के लिए खतरनाक वायरस ज्यादातर उष्णकटिबंधीय वनों से ही आते हैं। इंसान अपनी लकड़ी की जरूरतों, खेती की जमीन और सड़के बनाने के लिए बड़े पैमाने पर इन जंगलों को काट रहा है। ऐसे में इंसान और उनके जानवरों का संपर्क जंगल में रहने वाले जीवों से बढ़ता है। वन जीवों के संपर्क में आने से ही इस तरह के खतरनाक वायरस के इंसानों तक पहुंचने की संभावना बढ़ जाती है। पिछले कुछ वर्षों में मवेशियों से भी कई वायरस जैसे एच5एन1, एच1एन1, निपाह वायरस और स्वाइन फ्लू इंसानों में फैले हैं, इसलिए इन पर भी ध्यान देना जरूरी है।

कोविड-19 के लिए चमगादड़ बना मुख्य वजह

निकोलस स्कूल ऑफ द इंवायरनमेंट के डोरिस ड्यूक प्रोफेसर ऑफ कंजरवेशन इकोलॉजी स्टुअर्ट पिम ने बताया कि जंगलों की कटाई कर सड़क निर्माण, खनन, शहरी केंद्रों और बस्तियों का विस्तार, पशुधन और फसल मोनोकल्चर ने वायरस फैलाने में वृद्धि की है। उदाहरण के लिए इबोला, निपाह, सार्स और कोविड-19 वायरस के फैलने के पीछे चमगादड़ मुख्य वजह रहे। फलों के पेड़ के करीब रहने वाले चमगादड़ ज्यादातर मानव बस्तियों के करीब रहते हैं। दरअसल, जंगलों के कटने से ये मानव बस्तियों के करीब रहने को मजबूर होते हैं। ये पश्चिम अफ्रीका, मलेशिया, बांग्लादेश और ऑस्ट्रेलिया में वायरस के संक्रमण के प्रमुख कारण रहे हैं।

चीन को बड़ा हाथ

वैज्ञानिकों के अनुसार, अब तक जो भी सुबूत मिले हैं उनके अनुसार, कोविड-19 महामारी के फैलने में चीन के फूड मार्केट का बहुत बड़ा हाथ है, क्योंकि यह वायरस भोजन के लिए व्यापार किए जाने वाले चमगादड़ की प्रजाति से ही फैला है। हालांकि, ये बात अभी तक साबित नहीं हो पाई है। विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन ने भी इस बात की पुष्टि नहीं की है। दुनियाभर में जंगली जीवों को भोजन से लेकर कई चीजों के लिए कानूनी और अवैध तरीके से खरीदा और बेचा जाता रहा है।

ये हैं समाधान

जंगलों को कटने से बचाएं

जंगलों के काटे जाने और वायरसों के संक्रमण बढ़ने के बीच सीधा संबंध है। ऐसे में वायरसों के संक्रमण से बचने के लिए जरूरी है कि जंगलों को कटने से बचाया जाए। वनों की कटाई में कमी का सबसे बड़ा उदाहरण ब्राजील है। यहां 2005 और 2012 के बीच जंगलों की कटाई में काफी कमी आई। अमेज़ॅन में वनों की कटाई में 70% की गिरावट आई है, फिर भी इस क्षेत्र की प्रमुख सोया फसल का उत्पादन बढ़ा है। लगभग एक बिलियन डॉलर की अंतरराष्ट्रीय फंडिंग के चलते जंगलों को कटने से बचाया जा रहा है। इसके लिए सेटेलाइट मॉनिटरिंग, लैंड यूज तय करने सहित कई तरह के कदम उठाए जा रहे हैं।

जंगली जीवों के कारोबार पर लगानी होगी लगाम

पूरी दुनिया में जंगली जों की मांग बढ़ी है। कुछ जगहों पर सांस्कृतिक कारणों से, कुछ जगहों पर लग्जरी के लिए तो कुछ जगहों पर प्रोटीन के बेहतर सोर्स के तौर पर वन्य जीवों का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसी तरह किसी वन्य जीव के जरिए ही कोरोना वायरस भी हमारे बीच पहुंचा है। ऐसे में पूरी दुनिया में चल रहे वन्य जीवों के अवैध कारोबार पर पूरी तरह से लगाम लगानी होगी। अमेरिका में भी बड़े पैमाने पर वन्य जीवों का आयात हर साल किया जाता है।

कुछ देशों में वन्य जीवों की फार्मिंग भी एक बड़ा कारोबार बन चुका है। चीन में प्रोटीन के बेहतर सोर्स और सांस्कृतिक कारणों से बड़े पैमाने पर हर साल वन्य जीवों का कारोबार होता है। चीन में लगभग 15 मिलियन लोगों को वन्य जीवों की फार्मिंग में रोजगार मिला हुआ है। ये इंडस्ट्री लगभग 20 बिलियन डॉलर की हो चुकी है। हालांकि, चीन में भी अब वन्य जीवों से फैलने वाली बीमारियों को ध्यान में रखते हुए अब वन्य जीवों के कारोबार पर लगाम लगाने की बात कही जा रही है।

ये कहते हैं एक्सपर्ट

इंफॉमेरिक्स रेटिंग्स के चीफ इकोनॉमिस्ट डा. मनोरंजन शर्मा का कहना है कि कोरोना से पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को हिला के रख दिया। पिछले साल देश की जीडीपी 7% से ज्यादा की गिरावट रही। इस साल जीडीपी 10 फीसदी तक की उम्मीद थी। लेकिन ओमिक्रोन वायरस के हमले के बाद कंपनियों में अपने अनुमान में कमी की है। अब 9 फीसदी की ग्रोथ की उम्मीद की जा रही है। देश में बड़े पैमाने पर लोगों के वैक्सीनेशन से हम दुनिया मे इस समय अन्य देशों से बेहतर हालात में हैं। अगर हालात जल्द सामान्य हो गए, तो एक बार फिर भारतीय अर्थव्यवस्था बेहतर हालात में होगी।


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