#MeToo: जानिए, जुर्म साबित होने पर क्या है सजा का प्रावधान, उम्रकैद से लेकर...
अगर कोई महिला का पीछा करता है या बिना उसकी मर्जी के संपर्क की कोशिश करता है, तो इसे छेड़छाड़ माना जाएगा।
नई दिल्ली [ जागरण स्पेशल ]। MeToo से समाज में महिलाओं को ऐसा हौसला मिला कि वह सभी तमाम सीमाओं और दहलीज को लांघ कर अपने साथ हुए उत्पीड़न को खुलकर सामने रख रही हैं। अब तो इस मुहिम ने एक सामाजिक आंदोलन का रूप अख्तियार कर लिया है। इसके तहत देश के कई हिस्सों से पीड़ित महिलाएं अपनी-अपनी आपबीती सुना रही हैं। इसमें छेड़छाड़ के साथ उत्पड़ीन के वाकये भी सामने आए हैं। कार्यस्थल पर सेक्शुअल उत्पीड़न रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट की विशाखा गाइडलाइंस के साथ यहां यह देखना भी अहम होगा कि छेड़छाड़ के मामले में हमारे देश का कानून क्या कहता है। इसके लिए सजा का क्या प्रावधान है।
छेड़छाड़ से जुड़ा कानून और दंड
- धारा 354 : महिलाओं के साथ छेड़छाड़ से जुड़ा है। इस धारा में कई सब सेक्शन हैं। 354 ए के तहत अगर कोई सेक्शुअल फेवर मांगता है तो वह छेड़छाड़ के दायरे में आएगा। दोषी पाए जाने पर अधिकतम तीन साल तक की सजा का प्रावधान है।
- सेक्शुअल कमेंट : किसी महिला पर सेक्शुअल टिप्पणी अपराध है। दोषी पाए जाने पर एक वर्ष की सजा हो सकती है। यानी एक वर्ष की कैद हो सकती है।
- 354 बी : किसी महिला के साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाने पर, उसके वस्त्र उतरवाने के लिए बाध्य किया जाता है तो यह अपराध है। इसके लिए दोषी पाए जाने पर उसे तीन से सात साल तक की सजा हो सकती है।
- 354 सी : किसी महिला की प्राइवेट क्रियाकलाप की तस्वीर लेना है और उसे शेयर करना संगीन अपराध है। दोषी पाए जाने पर एक साल से तीन साल तक सजा का प्रावधान है।
- 354 डी : अगर कोई महिला का पीछा करता है या बिना उसकी मर्जी के संपर्क की कोशिश करता है, तो इसे छेड़छाड़ माना जाएगा। दोषी पाए जाने पर उसे तीन साल तक की सजा मिलेगी।
- धारा 473 : इसके तहत प्रावधान है कि अदालत चाहे तो शिकायत की समय-सीमा को समाप्त कर सकता है। इसके लिए पीड़िता को अदालत के समक्ष साक्ष्य पेश करना होगा।
- अगर अदालत इस बात से संतुष्ट हो जाती है कि शिकायत में हुई देरी के लिए ठोस कारण माैजूद है तो वह समयसीमा को खत्म कर सकता है।
उम्रकैद से जेल तक
2013 में बने कानून के तहत दुष्कर्म मामले में सजा उम्रकैद तक और छेड़छाड़ के कई मामलों में सात साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है। इसके पूर्व के कानून में छेड़छाड़ में अधिकतम दो साल कैद की सजा का प्रावधान था। ऐसे में जिस वक्त वाकया हुआ होगा, उस वक्त के कानून के हिसाब से ही पुलिस मामला दर्ज कर सकती है।
झूठा आरोप तो मानहानि का खतरा
आरोप लगाने वाले के लिए भी कड़ी नजर रखी जाती है। यदि आरोप झूठ साबित हुआ हो तो धारा 182 के तहत झूठी शिकायत करने वालों के खिलाफ भी केस दर्ज हो सकता है। ऐसे में अदालत उसे बाइज्जत बरी करने के साथ वह प्रतिष्ठा के हनन के लिए मानहानि के साथ-साथ मानहानि का कसे भी दर्ज करा सकता है। क्षतिपूर्ति का दावा भी कर सकता है।
संज्ञेय और असंज्ञेय अपराध
यहां गौर करने वाली बात यह है कि तीन साल से ज्यादा सजा के प्रावधान वाले मामलों में पीड़ित के बयान के आधार पर पुलिस केस दर्ज कर सकती है। इसके अलावा जो मामले असंज्ञेय अपराध की श्रेणी के हों उसमें पीड़िता अदालत में शिकायत कर सकती है। ऐसे में अदालत सबूतों के आधार पर आरोपी को समन जारी करती है और फिर केस दर्ज किया जाता है।
यह भी जानें
- 16 दिसंबर की सामुहिक दुष्कर्म की घटना के बाद इस मामले में गठित वर्मा आयोग की सिफारिश पर एंटी-रेप लॉ बनाया गया था। इसके तहत जो कानूनी प्रावधान किए गए हैं, उनमें दुष्कर्म की परिभाषा में बदलाव किया गया है।
- आईपीसी की धारा-375 के तहत प्राइवेट पार्ट से छेड़छाड़ और ओरल सेक्स दोनों को ही दुष्कर्म माना गया है।
- अगर कोई शख्स किसी महिला के प्राइवेट पार्ट में अपने शरीर का कोई अंग या फिर कोई दूसरा चीज डालता है तो वह दुष्कर्म होगा।
- बलात्कार के वैसे मामले, जिनमें पीड़िता की मौत हो जाए या कोमा में चली जाए तो फांसी की सजा दी जा सकती है। रेप के मामले में कम से कम सात साल और ज्यादा से ज्यादा उम्रकैद का प्रावधान किया गया है।