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गुरुओं-विचारकों के उद्बोधन के प्रमुख अंश, जो सकारात्‍मकता बढ़ाने में हो सकते हैं सहायक..

कोविड रिस्पांस टीम (सीआरटी) दिल्ली ने पहल करके हम जीतेंगे पाजिटिविटी अनलिमिटेड के तहत पांच दिवसीय आनलाइन व्याख्यानमाला (11 से 15 मई) का आयोजन किया जिसमें देश के जाने-माने आध्यात्मिक गुरुओं विचारकों और प्रभावशाली शख्सियतों ने अपने प्रेरक विचार सामने रखे।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 20 May 2021 02:42 PM (IST)Updated: Thu, 20 May 2021 03:39 PM (IST)
गुरुओं-विचारकों के उद्बोधन के प्रमुख अंश, जो सकारात्‍मकता बढ़ाने में हो सकते हैं सहायक..
आध्यात्मिक गुरुओं, विचारकों और प्रभावशाली शख्सियतों ने अपने प्रेरक विचार सामने रखे।

नई दिल्‍ली, यशा माथुर/अंशु सिंह। कोविड की दूसरी लहर ने देशवासियों को हर तरह से जो गहरी पीड़ा दी है, उससे उपजी निराशा से बाहर निकालने और उनका मनोबल बढ़ाने की जरूरत लगातार महसूस की जा रही है। ऐसे में कोविड रिस्पांस टीम (सीआरटी), दिल्ली ने पहल करके 'हम जीतेंगे : पाजिटिविटी अनलिमिटेड' के तहत पांच दिवसीय आनलाइन व्याख्यानमाला (11 से 15 मई) का आयोजन किया, जिसमें देश के जाने-माने आध्यात्मिक गुरुओं, विचारकों और प्रभावशाली शख्सियतों ने अपने प्रेरक विचार सामने रखे। इस बार पढ़ें इन गुरुओं-विचारकों के उद्बोधन के प्रमुख अंश, जो सकारात्‍मकता बढ़ाने में सहायक हो सकते हैं...

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यह समय है एक साथ मिलकर खड़े होने का: आध्‍यात्‍मिक गुरु व ईशा फाउंडेशन के संस्‍थापक सद्गुरु जग्गी वासुदेव जी ने बताया कि हमने अपनी जिंदगी में काफी आराम देखा है लेकिन अब जीवनशैली बदलने का समय है। हम जीवन से ज्‍यादा जीवनशैली के प्रति समर्पित हैं। हमें इस प्राथमिकता को बदलना है। मेरे लिए जीवन महत्‍वपूर्ण है जीवनशैली नहीं। दो साल पहले अमेरिका में हर जगह जा रहा था, सर्वश्रेष्‍ठ स्‍थानों पर ठहर रहा था लेकिन अब मैं एक ट्रक में घूम रहा हूं। खुद ही इसे चलाता हूं और इसी में सोता हूं। मेरी जीवनशैली बिल्‍कुल बदली हुई है। हम खुद को बदलें नहीं और दूसरों पर अंगुली उठाएं तो हम केवल समस्‍या ही बढ़ाएंगे, समाधान का हिस्‍सा नहीं बनेंगे। घबराहट, हताशा, भय, क्रोध इनमें से कोई भी चीज हमारी मदद करने वाली नहीं है। यह एक-दूसरे पर अंगुली उठाने का समय नहीं है बल्कि एक साथ मिलकर खड़े होने का समय है। एक राष्ट्र के रूप में ही नहीं, बल्कि पूरे मानव समाज के रूप में। हमारे देश की 130 करोड़ से अधिक जनता में कितनी टेस्टिंग हुई या कितने लोग संक्रमित हुए, यह जानना आसान नहीं है। हमें इस वास्‍तविकता को समझना चाहिए कि हमारे पास इतनी बड़ी जनसंख्‍या को स्‍वास्‍थ्‍य की मूलभूत सुविधाएं देने का आधारभूत ढांचा भी नहीं है।

ऐसे में क्‍या हम खुद जिम्‍मेदारी से काम नहीं कर सकते? अपने शारीरिक और मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य के लिए अपने ऊपर तीस मिनट खर्च नहीं कर सकते? हम ईशाक्रिया और साष्‍टांग जैसे प्रयत्‍न कर सकते हैं। इस समय हमें अपनी रोगप्रतिरोधक क्षमता और फेफड़ों का सामर्थ्‍य बढ़ाने की आवश्‍यकता है। इस समय मैं देख रहा हूं कि अमेरिका में सब कुछ सामान्‍य हो रहा है लेकिन अदृश्‍य वायरस को किसी एक देश की सरहद में रोकना संभव नहीं हो पाया है और वह कब कहां आ जाए कोई नहीं बता सकता। मैं कहता हूं कि यह युद्ध जैसी स्थिति है, बाहरी अदृश्‍य दुश्‍मन ने हम पर हमला बोला है। हम भयंकर आपदा से जूझ रहे हैं ऐसे में हमें एकता और अनुशासन ही बचा सकता है। अनजाने वायरस के खिलाफ युद्ध जारी है। इस समय हमारे लिए जीवित और स्‍वस्‍थ रहना जरूरी है। हम जिम्‍मेदारी से काम करें यह जरूरी है। अगर सिर्फ शहरी जनसंख्‍या ही यह समझ ले कि अपने परिवार के असंक्रमित दो-चार लोगों के अलावा हम चौदह दिन तक किसी के भी संपर्क में नहीं आएं तो कोरोना अपने आप मर जाएगा। यह आवश्यक है कि हम जो भी काम कर रहे हैं, उन्हें करना जारी रखें। सारी गतिविधियां एकदम बंद करने से राष्ट्र या दुनिया को इस चुनौती का समाधान नहीं मिलेगा बल्कि प्रतिकूल असर पड़ेगा। हम बिना लोगों के नजदीक जाए व संक्रमित हुए अपने काम को जारी रखें। यह समय अपनी सांस्कृतिक जड़ों की ओर लौटने का है जो मानव के स्वस्थ होने पर बल देती हैं।

मनोबल को मजबूत रख* *धैर्य को जगाना है: आध्‍यात्‍मिक गुरु गोबिंद आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर ने बताया कि आज जब देश सदी के महान संकट से जूझ रहा है तो हमें अपना मनोबल बढ़ाए रखना है। जब चारों तरफ हम दुख, दर्द और बीमारी देख रहे हैं, अपने प्रियजनों के इस संसार से चले जाने की खबरें सुन रहे हैं तो हमारा मनोबल टूटना स्‍वाभाविक है। ऐसे में अपने मनोबल को मजबूत रखने के लिए हम क्‍या करें, यह प्रश्‍न महत्‍वपूर्ण है। सबसे पहले तो आप यह जान लीजिए कि हर व्‍यक्ति के भीतर जो हिम्‍मत है, धैर्य है, बस उसे जगाना है। मानसिक रूप से, सामाजिक रूप से हम सबके ऊपर एक जिम्मेदारी है। उस जिम्मेदारी को निभाने के लिए हम अपने शौर्य, जोश को जगाएंगे तो उदासीपन अपने आप हट जाएगा। जब हम धीरज रखते हैं तो दूसरों को भी हिम्‍मत दे सकते हैं। हम सब के भीतर करुणा है। करुणा की कब आवश्यकता है? जब व्यक्ति उदास है, दुखी है, दर्द से पीड़ित है, ऐसे में अपने भीतर करुणा जगाएं।

करुणा जगाने का मतलब यह है कि हम सेवा कार्य में लग जाएं। खुद से जो हो सकता है, हम दूसरों की वह सेवा करें। आपने सुना होगा कि किसी नर्स के परिवार में मृत्‍यु होने के बाद भी सेवाभाव से वह अपनी जिम्‍मेदारी पूरी करती रही। अस्‍पताल में ही रुकी रही। यह समय सेवाभाव जगाने का है। सेवा में लग जाएं तो भी हमारा मनोबल बढ़ जाता है। इसके अलावा, हम अपना होश संभाले। इससे हम भावुकता में नहीं बहेंगे और बाद में अफसोस नहीं करेंगे। जब हम दुखी होते हैं, मानसिक रूप से कमजोर हो जाते हैं और होश खो बैठते हैं। इससे बचने के लिए प्राणायाम, ध्‍यान और मंत्रों का उच्‍चारण करना चाहिए। इससे एक अद्भुत, अनोखा आत्‍मबल हमें प्राप्‍त होता है। यह मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी परीक्षा है। कम से कम इस वक्त हम सबको ईश्वर भक्ति को अपने भीतर जगाना है। यह जान कर हमको आगे बढ़ना है कि ईश्वर हैअ और वह हमको बल देंगे और दे रहे हैं। हम बार-बार कहते हैं, ‘निर्बल के बलराम’, इस धारणा की परीक्षा है अभी। जिस वायरस को हमने देखा भी नहीं है उससे लड़ रहे हैं। अपनी कमजोरी, अशक्‍तता व असहायता को महसूस कर रहे हैं। इस समय हमें ईश्‍वर को याद करना है, उन पर विश्‍वास करना है तभी हम मानसिक तनाव से मुक्‍त होंगे। योग का उद्देश्‍य दुख को रोकना है और अगर दुख आ ही गया है तो उससे बाहर निकलने का है। योग, प्राणायाम, ध्‍यान को जीवन में अपनाना है। सही भोजन करना है। भोजन में आयुर्वेद का प्रयोग करें। हल्‍दी का दूध अमृत है। कोविड के बाद भी हमें योग और आयुर्वेद की शरण में जाना पड़ेगा। आत्‍मबल को बढ़ाना पड़ेगा। नकारात्मक मानसिकता और नकारात्मक बातों से बचना चाहिए। नकारात्मक बातों को जितना हो सके, उतना।

कम करना चाहिए और जो वातावरण बोझिल लगता है, उसको हल्का करने के लिए हर व्यक्ति को कोशिश करनी चाहिए। यह निश्चित है कि हम इस संकट से अवश्‍य बाहर आएंगे और विजेता बनकर आएंगे। जब भी किसी ताकत ने हमको दबाने की चेष्टा की, हम और बलवान होकर उससे निखरते आए हैं। इस बात को हम याद रखें। अभी अपने भीतर हिम्मत जुटाएं। करुणा की अभिव्यक्ति का यही समय है। अपने भीतर की करुणा को व्यक्त करें, ईश्वर के प्रति विश्वास को जगाएं, योग-साधना और आयुर्वेद पर ध्यान दें, अपने स्वास्थ्य का भी ध्यान दें। औरों के भले के लिए जो भी कर सकते हैं, वह करने के लिए तत्पर हो जाएं। इससे हम नकारात्मकता की स्थिति से बच सकते हैं।

कुछ बात है कि हस्‍ती मिटती नहीं हमारी: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने बताया कि यह बहुत कठिन समय है। कई परिवारों में भरण-पोषण करने वाले ही चले गये हैं। उनके सम्‍मुख अपने प्रियजन को खोने के दुख के साथ भविष्‍य की चिंताएं भी हैं। उन्‍हें सांत्‍वना देने का समय है लेकिन खुद को संभालना भी जरूरी है। यह कठिन परिस्थितियां हैं, इन्‍हें स्‍वीकार कर हमें खुद को सकारात्‍मक रखना है। कोरोना निगेटिव रहना और मन को पाजिटिव रखना है। मुख्‍य बात मन की है, अगर मन

हार गया तो हमारी स्थिति सांप के सामने छछूंदर जैसी होगी। हम असहाय होकर बचाव का कोई उपाय ही नहीं कर सकेंगे। इस वक्‍त जितना दुख है उतनी ही आशा भी है। जब विपत्ति आती है तो हमारी प्रवृत्ति क्‍या होनी चाहिए? हम जानते हैं कि जीवन-मरण का चक्र चलता रहता है और व्‍यक्ति पुराने शरीर को छोड़कर नया शरीर धारण करता है। इसलिए चारों तरफ चल रही नकारात्‍मक बातें हमें निराश नहीं कर सकतीं। चर्चिल ने अपने देश को ‘हमें जीतना है’ की मन:स्थिति पर खड़ा किया और वे जीते भी। उनके सामने जो संकट था उसे उन्‍होंने चुनौती माना। हमें भी संकल्‍प के साथ इस महामारी को चुनौती मानकर प्रयत्‍न करते रहना है। धैर्यवान व्‍यक्ति प्रयास जारी रखते हैं। हमें भी ऐसा ही करना है। किसी का दोष देखने से बचते हुए एक टीम के रूप में काम करना है।

प्राणायाम, ओंकार, दीर्घाश्‍वासन द्वारा रोग प्रतिकार क्षमता बढ़ानी है। हमारे यहां सूर्यनमस्‍कार जैसे व्‍यायाम हैं जो प्राणों की तेजस्विता बढ़ाते हैं। सजग रहेंगे तो बचाव हो सकता है। सक्रिय रहें। शरीर की ताकत बढ़ाने वाले सात्विक आहार लें। इन सब की जानकारी इंटरनेट मीडिया पर है। लेकिन जानकारी के पीछे के वैज्ञानिक तर्क की परीक्षा करें और फिर उसके अनुरूप कार्य करें। हमारी तरफ से बिना आधार वाली कोई बात समाज में नहीं जानी चाहिए। आयुर्वेद के प्रयोग में कोई दिक्‍कत नहीं है लेकिन सावधानी से ही इसे उपचार और आहार में प्रयोग करना उचित है। इस समय खाली मत रहिए, कुछ नया सीखिए। बच्‍चे के साथ संवाद कायम कीजिए, परिवार के साथ समय बिताइए। मास्‍क अनिवार्य है। आपस में पर्याप्‍त अंतर आवश्‍यक है। स्‍वच्‍छता का पालन करना है। ये सब बातें हमें मालूम हैं लेकिन जैसे ही सावधानी हटती है, दुर्घटना घटती है। जो लोग कोरोना के डर से किसी को रोग बताते नहीं हैं, उपचार नहीं लेते हैं वे भी मुश्किल पैदा करते हैं और जो कोरोना के दौरान अनावश्‍यक रूप से

अस्‍पताल में भर्ती हो जाते हैं और जरूरतमंदों का रास्‍ता रोक देते हैं वे भी गलत करते हैं। बच्‍चों की शिक्षा छूट रही है। उनके पिछड़ने की चिंता हम करें। जिनका रोजगार चला गया उनकी चिंता करें। यश-अपयश को पचाकर लगातार आगे बढ़ने की हिम्मत रखनी होगी हमें।

भारत एक प्राचीन राष्ट्र है। इस पर पूर्व में कई विपत्तियां आईं। लेकिन हर बार हमने उन पर विजय प्राप्त की है, इस बार भी हम विजय प्राप्त करेंगे। इसके लिए हमें अपने शरीर से कोरोना को बाहर रखना है। मन को सकारात्मक रखना है। इन कठिन परिस्थितियों में निराशा की नहीं बल्कि इससे लड़कर जीतने का संकल्प लेने की जरूरत है। ऐसी बाधाओं को लांघ कर मानवता पहले भी आगे बढ़ी है और अब भी आगे बढ़ती रहेगी। पहली लहर के बाद हम गफलत में आ गए और अब तीसरी लहर आने की बात हो रही है। इससे अर्थव्यवस्था, रोजगार, शिक्षा आदि पर गहरा प्रभाव पड़ा है। आने वाले दिनों में अर्थव्यवस्था पर और असर पड़ सकता है, इसलिए इसकी तैयारी हमें अभी से करनी होगी। भविष्य की इन चुनौतियों की चर्चा से घबराना नहीं है बल्कि यह चर्चा इसलिए जरूरी है ताकि हम आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए समय रहते तैयारी कर सकें। हमें जीतना है, यह संकल्‍प है हमारा। ‘कुछ बात है कि हस्‍ती मिटती नहीं हमारी’, ऐसा हमारा देश है। इतने साल में मिटा नहीं तो महामारी से भी हम जीतेंगे। दोषों को दूर करेंगे तो यही परिस्थिति हमें प्रशिक्षित करेंगी।

सदाचार व संकल्‍प से करें आपदा का सामनाशंकराचार्य विजयेंद्र सरस्वती जी ने बताया कि धैर्य व आत्मविश्वास हो तो कैसा भी संकट हो हम उससे बाहर आ सकते हैं। आज विश्व में महामारी की वजह से जो अति संकट की स्थिति है उसका मुकाबला हम सदाचार और संकल्‍प से ही कर सकते हैं। इसके लिए हमें व्यक्तिगत विश्वास बनाए रखने की तो आवश्यकता है ही, साथ ही विश्‍वास का सामूहिक वातावरण बनाने की भी आवश्यकता है। जब श्रीराम जी का रावण से युद्ध चल रहा था तब सीता जी का आत्‍मविश्‍वास बढ़ाने की जरूरत थी। ऐसे में हनुमान जी ने अशोक वाटिका में जाकर सूर्यवंश की स्‍तुति की और सीता जी के मन में आत्‍मविश्‍वास जगाया, अन्‍यथा सीता मां शरीर त्‍यागने का विचार मन में ला चुकी थीं। वाल्मीकि रामायण में हनुमान जी कहते हैं दुख होता है, संकट होता है, फिर भी अपना जो मनोधैर्य है, मन में जो हिम्मत है उसे छोड़ना नहीं, प्रयत्न करते रहना है। संकट कैसा भी हो, हम विश्वास के साथ मेहनत करेंगे तो उसका फल मिलेगा और हम सफल होंगे।

भारत में एक साल पहले भी यह कष्ट आया था। उस समय समाज की मेहनत से, सहयोग से, सबकी सहानुभूति से इस संकट का निवारण हुआ था। एक साल पहले के संकट में अनेक भाषाओं, अनेक प्रांतों के लोगों ने एक साथ मिलकर काम किया, उसका परिणाम भी अच्छा व अनुकूल मिला। श्रीभगवद्गीता में कृष्‍ण ने अर्जुन को उपदेश दिया था कि आपके हृदय के संकल्‍प में जो दुर्बलता है उसे छोड़ो और धैर्य के साथ आगे बढ़ो। अभी जो संकट आया है उससे मुक्ति, निवारण व विनाश के लिए दो प्रकार की कोशिश जरूरी है, एक तो प्रार्थना, मंत्र, स्तुति और सदाचार नियम के पालन के द्वारा और दूसरे, आधुनिक चिकित्सा पद्धति के प्रयोग के द्वारा। आज देश की संस्‍थाओं के साथ वसुधैव कुटुंबकम के सिद्धांत पर विदेश द्वारा भी स्‍वस्‍थ भारत के लिए मदद की जा रही है। यही धर्म का संदेश है। हम सदाचार और संकल्‍प के साथ विपत्ति का सामना करें और विश्‍वशांति का प्रयास करें।

संकल्प के साथ प्रार्थना करें: कन्‍याकुमारी विवेकानंद केंद्र उपाध्‍यक्ष पद्मश्री निवेदिता भिड़े ने बताया किइस चुनौतीपूर्ण समय में सकारात्मकता बनाए रखने के लिए अपने परिजनों तथा आस-पास वालों के साथ रचनात्मक गतिविधियों में सक्रियता से भागीदारी सुनिश्चित करें। इसके अलावा, अपने-आस कोरोना से प्रभावित परिवारों की सेवा करें। अगर यह भी नहीं कर सकते तो कम से कम संकल्प के साथ प्रार्थना करें। इससे भी वातावरण में सकारात्मक तरंगों का निर्माण होता है और माहौल में सकारात्मकता आती है। वर्तमान चुनौती का सामना हम सफलतापूर्वक करेंगे।

मतभेद दूर कर निकालना होगा समस्‍या का समाधान: जाने-माने उद्योगपति, अजीम प्रेमजी पूर्व चेयरमैन विप्रो ने बताया कि हमें प्रत्येक मोर्चे पर तीव्रतम गति से कार्य करना होगा। ये कार्य विज्ञान के दृष्टिकोण से भी उपयोगी होने चाहिए। संकट का जिस प्रकार से फैलाव है, विस्तार हो रहा है, उसकी गहराई में जाकर समस्या का समाधान निकालना होगा। सच का सामना करना और उसे स्वीकार करना होगा। विज्ञान एवं सच्चाई ही वह आधार है, जिससे इस संकट से लड़ा जा सकता है और यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि भविष्य में इसका दोहराव न हो। इस समय पूरे देश को एकजुट होकर रहना होगा। अपने मतभेदों को त्यागकर आपसी समझ विकसित करनी होगी, जो कि वर्तमान परिस्थिति से निपटने के लिए बेहद आवश्यक है। हमें मिलजुलकर सख्त एवं बड़े कदम उठाने होंगे। क्योंकि जितने मतभेद होंगे, जितना विरोध होगा, उतना ही हमें संघर्ष करना पड़ेगा। दूसरी ओर, वक्त की मांग यह है कि हम समाज के हाशिये पर रहने वाले लोगों की मदद करें। वहां की स्थिति और भी भयावह है। गांवों में महामारी के साथ-साथ आर्थिक संकट भी है, जो जिंदगियों को तबाह कर रहा है। हमें उन्हें प्राथमिकता में रखना होगा। जैसे हालात हैं, उसमें समाज एवं अर्थव्यवस्था को पुनर्गठित करने की जरूरत है। प्रत्येक नागरिक की यह जिम्मेदारी है कि वह एकजुट होकर दूसरों की सहायता करे।

विचलित नहीं होते सूरमा: साध्वी ऋतंभरा ने बताया कि विचित्र एवं विपरीत परिस्थितियां बनी हुई हैं इन दिनों। लेकिन इन्हीं परिस्थितियों में समाज के धैर्य की परीक्षा भी होती है। यह वह समय है जब हमें अपनी आंतरिक शक्ति को जाग्रत करना है। यह समय तपस्या एवं तप करने का है। तप से ही मनुष्य कुंदन की तरह चमकने लगता है। ऐसी मान्यता है कि विपत्ति जब आती है, तो कायरों को ही दहलाती है। सूरमा विचलित नहीं होते हैं। एक पल भी धीरज नहीं खोते हैं। विघ्नों में राह बनाते हैं। कांटों को गले लगाते हैं। मुख से कभी उफ नहीं करते हैं। कैसी भी परिस्थिति हो, उसका सामना करते हैं। कहते भी हैं कि जब मानव जोर लगाता है, तो पत्थर भी पानी बन जाता है। मनुष्य के साहस के सामने, उसकी दृढ़ इच्छाशक्ति के सामने बड़े-बड़े पर्वत तक टिक नहीं पाते हैं। जिस प्रकार नदी का प्रवाह जब वेग में होता है, तो वह चट्टानों को भी रेत में परिवर्तित कर देती है। इसलिए विकट परिस्थिति में असहाय होने से समाधान नहीं निकलेगा। अपनी आंतरिक शक्ति से उससे लड़ना होगा। महाभारत की एक कथा है, कुरुक्षेत्र के मैदान में श्रीहरि कृष्ण एक टिटिहरी (पंछी) के करुण क्रंदन को सुन रहे थे। वह पंछी उनके रथ का चक्कर लगा रहा था। चीत्कार रहा था। श्रीकृष्ण की दृष्टि उस पर पड़ी। उसने मौन में ही अपनी प्रार्थना कर ली, हे प्रभु ये जो कुरुक्षेत्र का मैदान है, यहां योद्धाओं की तलवारें एक-दूसरे से टकराएंगी, फिर मेरी तो छोटी-सी दुनिया है। दुनिया में कुछ भी हो जाए, मुझे कुछ फर्क नहीं पड़ता है। पर अपने बच्चों के साथ कुछ हो जाए, तो सारी दुनिया बदल जाती है। तो मेरे इन अंडों का क्या होगा, जो इस मैदान में हैं।

श्रीकृष्ण उसे देखकर मुस्कुराए और कुरुक्षेत्र मैदान की व्यवस्थाओं को देखने में लग गए। उन्होंने अर्जुन से कहा, देख रहे हो सामने खड़े हाथी को। उसके घंटे की जंजीर पर बाण चलाओ। अर्जुन ने वैसा ही किया और घंटा जंजीर से अलग होकर धरा पर गिर गया। इसके बाद 18 दिन उस मैदान पर महायुद्ध चलता रहा। महाकाल वहां मंडराता रहा। मृत्य़ु तांडव होता रहा। 18 दिनों के पश्चात् शवों से पटी थी वह धरती। तभी श्रीकृष्ण निरीक्षण करते-करते एक स्थान पर पहुंचे, जहां हाथी का घंटा गिरा था। उन्होंने अर्जुन से कहा कि इस घंटे को हटा दो। जैसे ही अर्जुन ने घंटा उठाया, नीचे टिटहरी के चार बच्चे जीवित, मृत्यु के उस महासागर में जीवन के गीत गाते हुए प्रकट हुए। श्रीकृष्ण ने टिटिहरी को भरोसा रखने को कहा था अर्थात् समाधान होता है, जब मनुष्य को स्वयं पर भरोसा होता है। अपने आराध्य एवं ईष्ट पर विश्वास होता है। जीवित रहने का संकल्प ही हमें भी इस महामारी से बचाएगा। नकारात्मक सोच से कुछ हासिल नहीं होगा। उससे तो नया सोचने एवं करने का सामर्थ्य ही समाप्त हो जाता है। भारत जैसा आध्यात्मिक देश जो संसार का मार्गदर्शन करता है, उसका अपने आपमें बिखरना अच्छा नहीं है। हम एक विषाणु से पराजित नहीं हो सकते हैं। दुख है, लेकिन विवेक से ही काम लेना होगा।

कला ने सिखाई है जीवन जीने की कला: शास्‍त्रीय नृत्यांगना पद्मविभूषण सोनल मानसिंह ने बताया कि यह युद्ध एक आसुरी एवं मायावी शक्ति के साथ है। जिनके बारे में हमने महाभारत, रामायण, भागवत आदि में सुना था, लगता है कि आज वही प्रत्यक्ष हो रहा है। बारी-बारी से मन में तरंग उठते हैं, गुस्सा आता है, ईश्वर से प्रश्न करते हैं कि ऐसा क्यों हो रहा है? मेरे साथ ही क्यों हो रहा है? मैंने अकेले रहकर कोरोना को परास्त किया है। कोई मानव नहीं था मेरे पास। निसहाय, निराशा, हताशा थी। शरीर जवाब दे रहा था। ऐसा लगता था कि सांस नहीं निकल रही। वैसे में मेरी अपनी कला ने मुझे मझधार में जाने से बचाया। इसके अलावा, एक पराशक्ति थी, जगदंबा, दैवी मां थीं, जिन्होंने रक्षा की। मैं मानती हूं कि सभी के मन हृदय में कुछ न कुछ छिपा है। चाहे कोई गीत, कोई श्लोक, दोहा, किसी फिल्म का गाना, कोई नाटक...। कठिन समय में वह आपका संकटमोचक बन सकता है। मैंने अगर खुद को मजबूत नहीं किया होता, तो शायद निराशा के समुद्र में डूब रही होती। तब अचानक किसी ने मेरा हाथ पकड़कर मुझे बाहर खींचा। यह कलाएं थीं, जो सभी के अंदर हैं। इसलिए हताश एवं निराश न हों। जो आपके पास है, उसे साझा करें, सुंदर बातें करें, प्रकृति से बातें करें। जो मन करे, वह करें। किसी का ध्यान करें, क्योंकि पराशक्ति है। इसके अलावा, सकारात्मक रहकर मन को नियंत्रित रखें। ईश्वर का शुक्रिया करें, प्रार्थना करें। मन को समझाएं कि मेरा काम अभी बचा है, इसलिए मुझे जीवित रहना है। असीम आशा, असीम सकारात्मकता का वायुमंडल सृजित करें। मंगल कामनाओं की बाढ़ आने दें। मुझे जीवन जीने की कला, मेरी कला ने सिखायी है। हम सभी में एक चिराग है, उसे अनुभव करें। मुझे यकीन है कि हम जीतेंगे और जरूर जीतेंगे।

जगाएं मन की जिजीविषा: जैन मुनिश्री प्रमाण सागरजी ने बताया कि वर्तमान समय में जो परिस्थितियां हैं, उसमें मन को मजबूत बनाने की आवश्यकता है। घबराएं नहीं। बीमारी आई है, तो चली भी जाएगी। अगर हमारा मन मजबूत होगा, तो हम उसे चुटकियों में हरा सकते हैं। जो संक्रमित हैं या अस्पताल में हैं, वे यह संकल्प लें कि बीमारी अल्पकालिक है, मैं चिकित्सा ले रहा हूं और ठीक हो रहा हूं। इसके लिए अपने भीतर आध्यात्मिक दृष्टि उत्पन्न करनी होगी कि ये बीमारी तो तन की है, मन की नहीं। तन की बीमारी तो ठीक हो जाएगी, मन की बीमारी का कोई इलाज नहीं। इसलिए इस मन पर हावी न होने दें। चिकित्सकों के भी ऐसे अनुभव रहे हैं कि जो मरीज अस्पताल में ऊंचे मनोबल के साथ आता है, बेशक उसका फेफड़ा 40 फीसद ही कार्य कर रहा होता है, वह अपने इस मजबूत मनोबल से ठीक होकर वापस लौट जाता है। कहने का आशय है कि अपने अंदर की जिजीविषा को जगाएं। यह सच याद रखें कि जब तक आयु है, कोई किसी को हिला नहीं सकता। और जब जाना होगा, तो कोई किसी को जिला नहीं सकता। ऐसे में निर्विकल्प रहना ही श्रेष्ठकर होगा। मृत्यु तो परम सत्य है। एक न एक दिन आनी ही है। उसका स्वागत उमंग से करें, भय एवं उद्वेग से नहीं। मन में उल्लास एवं ऊर्जा को जगाने के लिए योग, प्राणायाम की सहायता ले सकते हैं। धैर्य रखें। सावधानी बरतें, सतर्क रहें। यह आपकी जिम्मेदारी है। लेकिन भय के भूत को मन पर सवार न होने दें। इस धरती पर पहली बार महामारी नहीं आई है। पहले भी आई थी। लेकिन तब भी मानवता जीवित थी। आज भी जीवित है। पीड़ितों के लिए ढाल बनकर खड़े हो जाएं। सेवा करें। मानवता के ऊपर आए संकट को मिलकर दूर करें। मन को विचार दें कि मैं स्वस्थ हूं और मेरी आत्मा शुद्ध। क्योंकि जो अपने जीवन से हार गया, वह लौटकर नहीं आता।

तन और मन की शुद्धि है जरूरी: पीठाधीश्‍वर श्री पंचायती अखाड़ा-निर्मल के संत ज्ञानदेव सिंह ने बताया कि गुरुओं, ऋषियों, मुनियों, तपस्वियों, ज्ञानियों की भूमि है भारत। हमारे देश पर जब-जब संकट एवं आपदा आई, इन्होंने समस्या का निस्तारण किया। जो भी वस्तु संसार में आती है, वह सदा स्थिर नहीं रहती है। जो आया है, वह जाएगा। बीमारी आई है, तो जाएगी भी। इसलिए घबराएं नहीं। आवश्यकता है तन एवं मन की शुद्धि की। संक्रमण तब ही होता है जब शरीर अशुद्ध होता है। उसमें वातावरण में फैली नकारात्मकता से लड़ने की शक्ति नहीं रहती। मन कमजोर हो जाता है, जिससे मानसिक बल भी गड़बड़ हो जाता है। इसलिए शरीर को स्वस्थ रखें। शुद्ध आहार लें। परमेश्वर का चिंतन करें। प्राकृतिक नियमों को अपनाएं, जो हमारे पूर्वज करते थे। प्राणायाम करें। निराश न हों। कहा जाता है कि मन जीते, जगत जीत। आत्मा तो वैसे ही अजर, अमर एवं शाश्वत है। ऐसे में परमपिता परमात्मा को पहचानें और उनका स्मरण करें। उन पर विश्वास रखें।


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