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जब-जब इंसान अतिक्रमण करेगा, तब-तब प्रकृति दिखाएगी अपना विध्वंसक रूप

हम इस बात को भूल गए हैं कि प्रकृति ने हमें बनाया है हमनें प्रकृति को नहीं। जब जब इंसान इसकी दहलीज लांघने की कोशिश करता है तब तक उसको प्रकृति का रौद्र रूप देखना पड़ता है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 19 Apr 2020 11:21 AM (IST)Updated: Mon, 20 Apr 2020 06:56 AM (IST)
जब-जब इंसान अतिक्रमण करेगा, तब-तब प्रकृति दिखाएगी अपना विध्वंसक रूप
जब-जब इंसान अतिक्रमण करेगा, तब-तब प्रकृति दिखाएगी अपना विध्वंसक रूप

डॉ अल्का गुप्ता। मनुष्य और प्रकृति के बीच का संबंध युगों से है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। अथर्ववेद में एक प्रतिज्ञा का वर्णन है:

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हे धरती मां, जो कुछ भी तुमसे लूंगा, उतना ही तुझे वापस करूंगा।

तेरी जीवनी शक्ति, सहन शक्ति पर कभी नहीं आघात करूंगा।।

मनुष्य जब तक प्रकृति के साथ किए गए इस वादे को पूरा करता रहा, तब तक स्वस्थ, सुखी और संपन्न रहा, किंतु जैसे ही उसने इसका अतिक्रमण शुरू किया, प्रकृति ने अपना विध्वंसक एवं विघटनकारी रूप दिखाना प्रारंभ किया । प्रकृति को हम कभी तिरस्कृत करके आगे नहीं बढ़ सकते हैं। प्रकृति हमारा पालन पोषण करती है।अनंतकाल से यह हमारी सहचरी रही है। प्रकृति का मनुष्य जीवन में इतना महत्व होते हुए भी हम अपने लालच के कारण उसका संतुलन बिगाड़ रहे हैं। धरती पर जीवन का आरंभ और जीवन को चलाए रखने का काम प्रकृति की बड़ी पेचीदा प्रक्रिया है।

प्रकृति ने जो कुछ पैदा किया वह फिजूल नहीं है। हर जीव का अपना महत्व है। वनस्पति से लेकर जीवाणुओं, कीड़े-मकोड़ों और मानव तक की जीवन प्रक्रिया को चलाए रखने में अपना अपना योगदान रहा है। जीवन के लिए प्रकृति में शुद्ध हवा और शुद्ध पानी के साथ साथ अनेक प्रकार के जीव जंतु व वनस्पतियां में संतुलन का होना जरूरी है। पिछले दो दशकों में, सार्स, इबोला, नेपाह और अब पिछले कुछ महीनों में कोरोना वायरस ने वैश्विक अर्थव्यवस्था और समाज को हिलाकर रख दिया है। ऐसा लग रहा है कि मानों प्रकृति अपने रिमोट कंट्रोल से रीसेट बटन को दबाकर रिप्रोग्रामिंग कर रही है। दुनिया एकदम हिल उठी है। हजारों लोगों की जान चली गई। लाखों लोग बीमार पड़े हुए हैं। आधुनिक आर्थिकी से जुड़ी तमाम इंसानी गतिविधियां ठप हैं। यह प्रकृति के साथ छेड़छाड़ और अमानवीय व्यवहार का परिणाम है। कोविड-19 नामक महामारी ने पूरी दुनिया को यह संदेश दिया कि हमें अपनी जीवनशैली और सोच को बदलना होगा अन्यथा भविष्य में और भी बड़े लॉकडाउन के साथ रहने का अभ्यास करना होगा।

कोरोनो वायरस महामारी ने स्पष्ट कर दिया है कि विकास और समृद्धि को नए सिरे से परिभाषित करने का उपयुक्त समय है, जो पारिस्थितिक संतुलन के संदर्भ में मापी जा सके न कि बढ़ती भौतिकवादी जीवनशैली के रूप में। सदियों से जंगली जानवरों में वायरस के द्वारा मानव महामारी फैलती रही हैं। कई जानवर वायरस पैदा करने वाली बीमारी के लिए मेजबान के रूप में कार्य करते हैंजो वन्यजीवों से मनुष्यों तक पहुंच सकते हैं। वायरस से होने वाली ज्यादातर बीमारियां वन्य जीवों से ही आती हैं। हमें जंगली वन्य जीवों से वायरस रोगों की रोकथाम के लिए खाद्य शृंखला की वैज्ञानिकता और आवश्यकता को नए सिरे से समझना होगा क्योंकि एक स्वस्थ और मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र ही हमें बीमारियों से बचा सकता है। पृथ्वी हमें बार-बार चेतावनी दे रही है। हम बीमार हैं क्योंकि हमने अपनी मातृ प्रकृति को बीमार कर दिया है। हमें प्रकृति का सम्मान करना होगा। कोरोना काल में सारी दुनिया एक साथ खड़ी होकर वसुधैव कुटुंबकम की भावना के साथ इस महामारी का सामना कर रही है, यही भावना और इच्छाशक्ति हमें अपने पर्यावरण को बचाने के लिए भी दिखानी होगी। इस दौर का दुनिया का ये लॉकडाउन प्रकृति के लिए वरदान साबित हुआ है।

(विशेषज्ञ और सलाहकार, विश्व स्वास्थ्य संगठन, बैंकॉक, थाईलैंड)

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