नदी जल पर आम राय बनाने को जीएसटी काउंसिल जैसा तंत्र बना सकती है सरकार
प्रस्तावित रिवर बेसिन मैनेजमेंट बिल में इस तंत्र का ढांचा बनाया जाएगा। केंद्रीय जल संसाधन नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय ने इस मुद्दे पर विचार करेगा।
नई दिल्ली [हरिकिशन शर्मा]। सिंचाई और पेयजल की समस्या हल करने के लिए भाजपा ने अपने घोषणापत्र में वाजपेयी सरकार की नदी जोड़ो परियोजना को तेजी से आगे बढ़ाने का वादा किया है, लेकिन इस पर राज्यों में आम राय बनाने की बड़ी चुनौती है। इस चुनौती से निपटने के लिए सरकार जीएसटी काउंसिल जैसा तंत्र बना सकती है।
प्रस्तावित 'रिवर बेसिन मैनेजमेंट बिल' में इस तंत्र का ढांचा बनाया जाएगा। केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय ने इस मुद्दे पर विचार करने के लिए तीन जून को राज्यों की बैठक बुलाई है। सूत्रों ने कहा कि नदियों के जल को लेकर राज्यों में आम राय का अभाव एक बड़ी चुनौती है। इसे देखते हुए प्रस्तावित विधेयक में जीएसटी काउंसिल जैसा फ्रेमवर्क बनाया जा रहा है।
इसके तहत गंगा के साथ-साथ दर्जनभर अन्य नदियों के लिए 'रिवर बेसिन अथॉरिटी' बनाई जाएगी। जो भी 'रिवर बेसिन अथॉरिटी' बनाई जाएगी उसमें प्रत्येक की एक गवर्निंग काउंसिल होगी जिसमें उस नदी बेसिन में आने वाले राज्यों के मुख्यमंत्री बतौर सदस्य शामिल होंगे।
ये मुख्यमंत्री बारी-बारी से इस काउंसिल के अध्यक्ष का पदभार संभालेंगे। यह काउंसिल ही प्रमुख फैसले लेगी। नदी जल का इस्तेमाल किस तरह किया जाना है, उसकी योजना यह काउंसिल ही बनाएगी। सूत्रों ने कहा कि तीन जून को होने वाली बैठक में राज्यों से प्रस्तावित फ्रेमवर्क के बारे में चर्चा की जाएगी। उसके बाद राज्यों के सुझावों को विधेयक के मसौदे में समाहित कर कैबिनेट की मंजूरी के लिए भेज दिया जाएगा। सरकार इसे संसद के मानसून सत्र में पेश करने की कोशिश करेगी।
सूत्रों ने कहा कि इस विधेयक के कानून बनने पर जिन नदियों के लिए 'रिवर बेसिन अथॉरिटी' का गठन किया जाना है उनमें गंगा बेसिन, गोदावरी बेसिन, ब्रह्मपुत्र-बराक और पूर्वोत्तर की अन्य नदियों के बेसिन, ब्रह्माणी - वैतरणी बेसिन, कावेरी बेसिन, सिंधु बेसिन, कृष्णा बेसिन, महानदी बेसिन, माही बेसिन, नर्मदा बेसिन, पेन्नार बेसिन, स्वर्णरेखा बेसिन और तापी बेसिन प्रमुख हैं। बेसिन का मतलब एक ऐसे भौगोलिक क्षेत्र से है जिसमें एक मुख्य नदी और उसकी सहायक नदियां प्रवाहित होती हैं और ये नदी जाकर समुद्र में मिलती है।
देश में अलग - अलग नदियों के जल को लेकर विभिन्न राज्यों के बीच विवाद रहे हैं। यही वजह है कि लंबे अरसे से विवाद निस्तारण के लिए कारगर तंत्र की जरूरत महसूस की जा रही थी। द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने भी अपनी रिपोर्ट में 2008 में 'रिवर बेसिन ऑर्गेनाइजेशन' बनाने की सिफारिश की थी। प्रस्तावित कानून रिवर बोर्ड एक्ट 1956 का स्थान लेगा जो काफी पुराना हो चुका है।
सूत्रों का कहना है कि आम राय बनाने के लिए प्रस्तावित तंत्र से अंतरराज्यीय नदियों के जल प्रबंधन के मामले में आपसी विवाद की जगह पारस्परिक सहयोग का माहौल बनेगा। इसके तहत जल के एकीकृत प्रबंधन पर जोर दिया जाएगा।
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