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इटली समेत कई पश्चिमी देशों में धूम मचाने वाली गुम हो रही अबूझमाड़ की जादुई बांसुरी की आवाज

देश-विदेश में मशहूर अबूझमाड़ की जादुई बांसुरी की आवाज धीरे-धीरे गुम होती जा रही है। इसे बनाने के लिए खास किस्म के बांस का संकट होने के कारण शिल्पकार निराश हैं। दरअसल यह आम बांसुरी से अलग होती है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Mon, 18 Jan 2021 10:05 PM (IST)Updated: Mon, 18 Jan 2021 10:05 PM (IST)
इटली समेत कई पश्चिमी देशों में धूम मचाने वाली गुम हो रही अबूझमाड़ की जादुई बांसुरी की आवाज
वन काष्ठागार में नहीं मिल रहा खास किस्म का बांस, शिल्पकार निराश।

मोहम्मद इमरान खान, नारायणपुर। देश-विदेश में मशहूर अबूझमाड़ की जादुई बांसुरी की आवाज धीरे-धीरे गुम होती जा रही है। इसे बनाने के लिए खास किस्म के बांस का संकट होने के कारण शिल्पकार निराश हैं। दरअसल, यह आम बांसुरी से अलग होती है। इससे आवाज निकालने के लिए होंठों से लगाने के बजाय हवा में घुमाना होता है।

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बस्तरिया बांसुरी की मांग महानगरों से लेकर इटली समेत पश्चिमी देशों तक

बस्तरिया संस्कृति से जुड़ी इस बांसुरी का उपयोग ग्रामीण जानवरों के खेत-खलिहान की ओर पहुंचने का संकेत देने के लिए करते हैं। इसकी मांग इटली समेत कई पश्चिमी देशों तक है।

वन काष्ठागार में नहीं मिल रहा खास किस्म का बांस, शिल्पकार निराश

कोरोना संकट में बेरोजगारी का दंश झेलने वाले देवगांव और गढ़बेंगाल गांव में इसे बनाने वाले दर्जनों शिल्पी बांस नहीं मिलने से परेशान हैं। द ट्राइबल कोआपरेटिव मार्केटिंग डेवलपमेंट फेडरेशन आफ इंडिया (ट्राइफेड) से 10 हजार नग बांसुरी की मांग की गई है, लेकिन बांस नहीं होने से इसकी आपूर्ति नहीं हो पा रही है। वन काष्ठागार में पिछले चार साल से बांस नहीं आ रहा है। इस वजह से कारीगरों को बांस के लिए भटकना पड़ रहा है।

चार साल से डिपो में बांस की आपूर्ति नहीं

देवगांव के शिल्पी बुटलू राम ने बताया कि 35 साल से वे बांस शिल्प से जुड़े हैं। इससे उन्हें अच्छी आमदनी हो जाती थी। पिछले चार साल से डिपो में बांस की आपूर्ति नहीं होने से बांसुरी बनाने में मुश्किलें आ रही हैं। बांस डिपो में सरकारी दाम पर मिलने वाला बांस बाजार मूल्य से दोगुने दाम में मिल रहा है। इसके लिए भी गांव-गांव घूमना पड़ता है।

कारीगरों के पास काम नहीं

बुलटू राम ने बताया कि कोरोना संकट की वजह से एक साल से बांसुरी बनाने का काम बंद है। उन्होंने बताया कि बांस नहीं मिलने से बांसुरी बनाने में लगे 40 कलाकारों के सामने काम नहीं है। उन्होंने बताया कि इस बांसुरी को बस्तर आर्ट के रूप में घरों में रखना लोग पसंद करते हैं। दिल्ली, मुंबई समेत महानगरों में लगने वाली प्रदर्शनी में इसकी खासी मांग रहती है। बुटलू राम ने बताया कि बांस शिल्प परियोजना के अधिकारियों को बांस की किल्लत होने का हवाला देकर कई बार समस्या दूर करने की गुहार लगाई गई है, लेकिन जमीनी स्तर पर ठोस पहल नहीं की जा रही है। उनके मुताबिक एक कारीगर एक दिन में तीन बांसुरी तैयार कर लेता है। इससे 500 रुपये तक की कमाई हो जाती है।

कलेक्टर ने कहा- समस्याओं का निराकरण किया जाएगा

बांसुरी बनाने के लिए बांस की किल्लत होने की जानकारी मिली है। शिल्प परियोजना के अधिकारियों और हस्तशिल्प कला से जुड़े कारीगरों से मिलकर उनकी समस्याओं का निराकरण किया जाएगा। कारीगरों को नियमित बांस की आपूर्ति हो, इसके लिए प्रयास किए जाएंगे- धर्मेश साहू, कलेक्टर, नारायणपुर।

बस्तर की पहचान खोने नहीं देंगे

देश-विदेश में बस्तर काष्ठ कला की अलग ही पहचान है। बांस शिल्प के कारीगरों को बांस की आपूर्ति के लिए दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ेगा। कलेक्टर और डीएफओ को व्यवस्था बनाने को कहा जाएगा। बस्तर की पहचान खोने नहीं देंगे- चंदन कश्यप, अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प विकास बोर्ड।


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