क्या हिंदी और प्रांतीय भाषाओं का कोष गरीब है जो विदेशी शब्द उधार लेने पड़ें: आचार्य विद्यासागर
दिगंबर जैन संत आचार्य विद्यासागर ने बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर हिंदी और प्रांतीय भाषाओं में अंग्रेजी शब्दों के बढ़ते उपयोग पर चिंंता जताई है। क्या हिंदी भाषा का कोष इतना गरीब है कि विदेशी शब्द उधार लेने पड़ें।
इंदौर, राज्य ब्यूरो। दिगंबर जैन संत आचार्य विद्यासागर ने बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर हिंदी और प्रांतीय भाषाओं में अंग्रेजी शब्दों के बढ़ते उपयोग पर चिंंता जताई है। पत्र में उन्होंने लिखा कि क्या हिंदी व प्रांतीय भाषा का कोष इतना गरीब है कि विदेशी शब्द उधार लेने पड़ें।
अंग्रेजी भाषा के शब्दों का चलन कम नहीं हो रहा
वर्तमान केंद्रीय सरकार द्वारा प्रस्तावित नई शिक्षा नीति 2020 को समर्थन के पीछे एक ही भाव अवचेतन में था कि इसमें हिंदी और अन्य प्रांतीय भाषाओं के माध्यम से शिक्षण देने की बात कही थी। इसी परिप्रेक्ष्य में हिंदी और अन्य मातृभाषाओं के माध्यम से शिक्षण एवं इनके सार्वजनिक उपयोग में आवश्यक सावधानी बरतने का सुझाव दिया था, लेकिन दुर्भाग्य से देश में सामान्य अथवा विशिष्ट वर्ग के लोगों के सार्वजनिक संवाद में अंग्रेजी भाषा के शब्दों का चलन कम नहीं हो रहा है।
नई शिक्षा नीति के प्रवर्तन के बावजूद अंग्रेजी शब्दों का प्रचलन बढ़ रहा
चिंता का विषय है कि नई शिक्षा नीति के प्रवर्तन के बावजूद अंग्रेजी शब्दों का प्रचलन बढ़ रहा है। आचार्य विद्यासागर ने पत्र में लिखा है कि यह चूक, लापरवाही या गलती आगे चलकर भारी पड़ने वाली है। आखिर क्या कारण है कि हिंगलिश का जादू हमारे मस्तिष्क से नहीं उतर रहा है?
जब तक हम नई पीढ़ी को अंग्रेजी शब्द पढ़ाते रहेंगे, तब तक समस्या खत्म नहीं होगी
जब तक हम नई पीढ़ी को अंग्रेजी शब्दों का उपयोग कर पढ़ाते रहेंगे, यह समस्या खत्म नहीं होगी। क्या फ्रांस, जर्मनी, जापान, चीन, इजराइल की जनता और उनके नेता अपने संवाद में इस प्रकार की खिचड़ी का प्रयोग करते हैं? अगर नहीं करते तो हम लोग ऐसा क्यों कर रहे हैं? सामान्य तौर पर अंग्रेजी शब्दों का उपयोग अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है। इसके दीर्घकालिक गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे, भाषाई स्तर और सांस्कृतिक स्तर पर भी। मुझे आशा है कि प्रबुद्धजन उपरोक्त विचार को स्वस्थ चेतावनी और सलाह के रूप में लेंगे। प्रतिक्रिया नहीं समझेंगे।