म्यांमार में सित्वे पोर्ट का संचालन करेगा भारत, पूर्वोत्तर राज्यों पर चीन के खतरे को कम करने में मिलेगी मदद
India and Myanmar Virtual Meeting गुरूवार को दोनो देशों के विदेश मंत्रालयों के बीच एक अहम बैठक हुई जिसमें द्वपिक्षीय रिश्तों की नए सिरे से समीक्षा की गई। यह हाल के दिनों में तीसरे पड़ोसी देश के साथ सहयोग बैठक थी।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। धीमी गति से ही सही लेकिन भारत ने पड़ोसी देशों में पैर फैला रहे ड्रैगन की साजिशों पर लगाम के लिए अपनी योजनाओं को अमली जामा पहनाना शुरु कर दिया है। इस क्रम में म्यांमार में स्थित सित्वे बंदरगाह का संचालन भारत अगले वर्ष की पहली तिमाही में शुरु कर देगा। यह किसी दूसरे देश में दूसरा बंदरगाह होगा जिसका संचालन भारत करेगा। पहला ईरान का चाबहार है। सित्वे पोर्ट की सबसे बड़ी अहमियत इसलिए है कि पूर्वोत्तर राज्यों को सामान आपूíत करने के लिए अब सिक्कम-पश्चिम बंगाल के गलियारे पर निर्भरता खत्म हो जाएगी। इसकी दूसरी अहमियत यह है कि भारत चीन के प्रभाव के बावजूद म्यांमार के साथ एक अलग कूटनीतिक व रणनीतिक संबंध बनाने में सफल रहा है।
गुरूवार को दोनो देशों के विदेश मंत्रालयों के बीच एक अहम बैठक हुई जिसमें द्वपिक्षीय रिश्तों की नए सिरे से समीक्षा की गई। यह हाल के दिनों में तीसरे पड़ोसी देश के साथ सहयोग बैठक थी। इसके पहले श्रीलंका के साथ शिखर बैठक व बांग्लादेश के साथ विदेश मंत्रियों के स्तर पर बैठक हुई है। म्यांमार के साथ विमर्श बैठक को संबोधित करते हुए विदेश सचिव हर्ष श्रृंगला ने पड़ोसी देश के लिए कई तरह की सहयोग योजनाओं का ऐलान किया।
भारत म्यांमार को करेगा 1.4 अरब डॉलर की मदद
श्रृंगला ने अपने भाषण में कहा कि, भारत अभी म्यांमार को 1.4 अरब डॉलर की मदद कर रहा है। कोविड महामारी के बावजूद हम अगले वर्ष की पहली तिमाही में सित्वे परियोजना का संचालन शुरु करने जा रहे हैं। इसके अलावा भारत-म्यांमार-थाईलैंड को जोड़ने वाली ट्राइलेटरल हाइवे पर निíमत होने वाली 69 पुलों के निर्माण के लिए जल्द ही निविदा आमंत्रित किया जाने वाला है।
श्रृंगला ने म्यांमार के विदेश मंत्रालय के स्थाई सचिव यू सो हान को संबोधित करते हुए आग्रह किया कि दोनो देशों के बीच जल्द से जल्द प्रतार्पण संधि को भी अंतिम रूप दिया जाना चाहिए। सित्वे पोर्ट का निर्माण भारत कालादान परियोजना के तहत कर रहा है। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य पूर्वोत्तर राज्यों की निर्भरता मौजूदा सिलीगुड़ी कारीडोर पर खत्म करने की है। यह कारीडोर महज 27 किलोमीटर चौड़ी है और माना जाता है कि चीन के साथ युद्ध की स्थिति में यह भारत के लिए एक कमजोर कड़ी साबित हो सकती है। इसे तोड़ कर चीन पूर्वोत्तर राज्यों को शेष भारत से अलग कर सकता है। इसके विकल्प के तौर पर कोलकाता पोर्ट से सित्वे पोर्ट को जोड़ने की योजना को अमल में लाया गया है।
सित्वे पोर्ट का इस्तेमाल करने से दूरी रह जाएगी आधी से भी कम
सित्वे पोर्ट से मिजोरम स्थित एनएच-54 की दूरी महज 140 किलोमीटर की है। असलियत में अभी कोलकाता पोर्ट से मिजोरम किसी वस्तु को पहुंचाने में 1880 किलोमीटर की दूरी तय करनी होती है जबकि सित्वे पोर्ट का इस्तेमाल करने से यह दूरी आधी से भी कम रह जाएगी। यह भी बताते चलें कि चीन को म्यांमार सरकार ने पहले ही क्याउकप्यू पोर्ट विकसित करने का ठेका दिया हुआ है। चीन पाकिस्तान के ग्वादर, श्रीलंका के हमबनतोता के बाद म्यांमार में क्याउकप्यू पोर्ट बना रहा है। उधर, भारत भी बांग्लादेश सरकार से भी बातचीत कर रहा है कि उसे मांगला पोर्ट को विकसित करने का अधिकार मिल जाए।