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मजबूरी ने अम्मा को बनाया 'सुपर वुमेन', फिटनेस में देती सबको चैलेंज

72 साल की उम्र में अम्मा कलेक्ट्रेट परिसर तक साइकिल से आती हैं। अम्मा 90 से 100 शब्द प्रति मिनट टाइप कर लेती हैं।

By Arti YadavEdited By: Published: Fri, 15 Jun 2018 10:08 AM (IST)Updated: Fri, 15 Jun 2018 10:30 AM (IST)
मजबूरी ने अम्मा को बनाया 'सुपर वुमेन', फिटनेस में देती सबको चैलेंज
मजबूरी ने अम्मा को बनाया 'सुपर वुमेन', फिटनेस में देती सबको चैलेंज

सीहोर (अखिलेश गुप्ता)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर क्रिकेटर विराट कोहली तक योग-कसरत से फिटनेस मंत्र देने के साथ फिटनेस चैलेंज दे रहे हैं। इन सबके बीच सीहोर (मध्य प्रदेश) की बुजुर्ग अम्मा उर्फ लक्ष्मीबाई की फिटनेस चर्चा का विषय बनी हुई है। 72 साल की उम्र में अम्मा कलेक्ट्रेट परिसर तक साइकिल से आती हैं। लोग 62 साल की उम्र में रिटायर हो जाते हैं, जबकि अम्मा ने 10 साल पहले टाइपिंग का काम शुरू किया। उम्र के साथ अम्मा की टाइपिंग स्पीड बढ़ती गई। अब वह 90 से 100 शब्द प्रति मिनट टाइप कर लेती हैं।

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मानसिक फिटनेस इतनी जबरदस्त है कि आवेदक केवल आवेदन का विषय, नाम-पता बताता है और अम्मा मिनटों में आवेदन टाइप करके दे देती हैं। अम्मा खुद की फिटनेस का राज जीवनयापन की मजबूरी बताती हैं। क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग भी अम्मा की फिटनेस के कायल हैं। सहवाग ने यूट्यूब पर उनका तेज गति से टाइपिंग का वीडियो देखा तो ट्वीट कर न सिर्फ उन्हें सुपर वुमेन बताया, बल्कि युवाओं को उनसे प्रेरणा लेने की नसीहत भी दी।

जितना काम, उतना बेटी का भविष्य सुरक्षित
अम्मा कहती हैं कि रुपये कमाने के लिए टाइपिंग करना जरूरी था। जितने ज्यादा कागज टाइप होते हैं, उतने ज्यादा रुपये मिलते हैं। अपनी मानसिक कमजोर बेटी के लिए कुछ रुपये जोड़कर रखना चाहती हूं। मुझे नहीं पता कि मेरे बाद बेटी का क्या होगा? फिर भी चाहती हूं उसके लिए कुछ रुपया जोड़ कर रख दूं, जो मेरे बाद उसके काम आएं।

अम्मा के संघर्ष की दास्तां
इंदौर की रहने वाली लक्ष्मीबाई पति से अलग होने के बाद सीहोर के गंज में किराए के मकान में बेटी के साथ बस गई। कुछ दिन तो परिचितों ने सहायता की, लेकिन फिर कोई काम नहीं मिलने से जीवन-यापन और बेटी के इलाज का संघर्ष शुरू हो गया। 2008 में उन्होंने तत्कालीन कलेक्टर राघवेंद्र कुमार सिंह और एडीएम भावना वालिम्बे से रोजगार दिलाने की गुहार लगाई। अम्मा ने टाइपिंग मशीन और जगह उपलब्ध मांगी तो राघवेंद्र कुमार सिंह ने उन्हें टाइपिंग मशीन और कलेक्ट्रेट परिसर में बैठने की जगह उपलब्ध करा दी।

अम्मा का कहना है कि 10 साल पहले 10 रुपये में आवेदन टाइप करती थी और आज भी दस ही रुपये लेती हूं, जो भी 100-150 रुपये दिनभर में मिलते हैं, वह बेटी के इलाज और भरण-पोषण में खर्च हो जाते हैं। वर्तमान में वृद्धाश्रम में रह रही हूं। अब मैं क्रिकेटर सहवाग, शासन और दानदाताओं से मांग करती हूं कि मेरी बेटी के इलाज और रहने के लिए आवास की सुविधा करा दी जाए तो बचा-खुचा जीवन संवर जाए। 


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