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सर्दियों में ग्‍लेशियर टूटने की घटना सामान्‍य नहीं, जानें- फिर क्‍या हो सकती है इसके पीछे की बड़ी वजह

उत्‍तराखंड में ग्‍लेशियर के टूटने से भारी तबाही हुई है। वैज्ञानिक अब इसके पीछे की वजह जानने में लगे हैं। वैज्ञानिकों की राय में सर्दियों में ग्‍लेशियर के टूटने की घटना साधारण नहीं है। वहीं पर्यावरणविद की राय में ये क्‍लाइमेट चेंज का असर है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Mon, 08 Feb 2021 09:18 AM (IST)Updated: Tue, 09 Feb 2021 07:01 AM (IST)
सर्दियों में ग्‍लेशियर टूटने की घटना सामान्‍य नहीं, जानें- फिर क्‍या हो सकती है इसके पीछे की बड़ी वजह
हिमालय का तापमान बढ़ने से ग्‍लेशियर खिसक रहे हैं।

नई दिल्‍ली (न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स)। उत्‍तराखंड के चमोडी जिले में ग्‍लेशियर के टूटने से जो तबाही का मंजर सामने आया है उस पर पूरी दुनिया की निगाह लगातार बनी हुई है। पूरी दुनिया में इस घटना के बाद वैज्ञानिक इसके तलाश जानने में भी जुटे हैं। न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स ने वैज्ञानिकों के हवाले से लिखा है कि सर्दियों में ग्‍लेशियर टूटने की घटना की एक बड़ी वजह क्‍लाइमेट चेंज हो सकती है। उनकी निगाह में बढ़ते तापमान की वजह से हिमालय पर जमी बर्फ पिघल रही है। इस वजह से वहां पर मौजूद ग्‍लेशियर खतरनाक हो सकते हैं। एक ताजा शोध से ये भी पता चला है कि ग्लेशियर, जो लाखों लोगों को पानी की आपूर्ति करते हैं, ज्यादातर सदी के अंत तक खत्‍म हो सकते हैं। आपको बता दें कि इस हादसे की वजह से वहां पर बन रहा ऋषि गंगा प्रोजेक्‍ट लगभग पूरी तरह से तबाह हो गया है।

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पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने इस हादसे के बाद किए एक ट्वीट में कहा कि यहां पर बन रहे सभी प्रोजेक्‍ट्स के लिए ये खतरे की घंटी है। हिमालय का क्षेत्र काफी संवेदनशील होता है, यहां पर इस तरह के प्रोजेक्‍ट नहीं बनने चाहिए। उन्‍होंने ये भी लिखा है कि इसके लिए उन्‍होंने आगाह भी किया था। पर्यावरणविद अनिल जोशी के मुताबिक जो बांध इस हादसे में बह गया वो नंदादेवी ग्‍लेशियर से कुछ ही मील की दूरी पर था। उनका कहना है कि ये क्‍लाइमेट चेंज की वजह से हो सकता है।

तापमान बढ़ने की वजह से ग्‍लेशियर अपनी जगह से खिसक गया और इतनी बड़ी तबाही देखने को मिली। जोशी का भी मानना है कि ग्‍लेशियर के करीब कभी भी इस तरह के निर्माणकार्य नहीं होने चाहिए। ग्‍लेशियर के टूटने से पानी किसी तूफान की तरह नीचे आया और उसके सामने जो आया बह गया। जोशी की ये बात वैज्ञानिकों की उस राय को ही पुख्‍ता करती है जिसमें कहा जा रहा है कि सर्दियों में इस तरह से ग्‍लेशियर के टूटने की घटना सामान्‍य नहीं है। 

न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स ने चश्‍मदीदों के हवाले से लिखा है कि उन्‍होंने इसको अपनी तरफ आते देखा था। इसकी आवाज इतनी तेज थी कि काफी दूर से सुनी जा सकती थी। कुछ लोगों ने दूसरों को चिल्‍लाकर इससे बचकर भाग निकलने को भी कहा था। संयुक्‍त राष्‍ट्र के अंतर्गत काम करने वाले इंटरगर्वेमेंटल पैनल ऑन क्‍लाइमेट चेंज की ताजा रिपोर्ट भी इस बारे में काफी खास है। इसमें कहा गया है कि दुनिया के कई हिस्‍सों में बर्फबारी के दौरान हिम्‍स्‍खलन की घटनाओं में तेजी आई है। हिंदुकुश हिमालय के क्षेत्र में बढ़ते तापमान की वजह से बर्फबारी के समय में भी बदलाव देखने को मिला है। जहां तक हिमालय की बात है तो आपको बता दें कि इस क्षेत्र में करीब 5 हजार से अधिक ग्‍लेशियर हैं। बढ़ते तापमान की वजह से इनको खतरनाक माना गया है।


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