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US-India Relation: भारत को लेकर बाइडन ने देखा था ये सपना, अब हो सकता है पूरा

अमेरिका की विदेश मामलों की कमेटी का चेयरमैन रहते हुए उन्होंने भारत के साथ संबंधों को लेकर एक विशेष रणनीति भी बनाई थी। वर्ष 2006 में उन्होंने यहां तक कहा था कि उनका सपना है कि वर्ष 2020 तक भारत और अमेरिका सबसे गहरे मित्र बन जाएं।

By Tilak RajEdited By: Published: Tue, 17 Nov 2020 10:59 AM (IST)Updated: Tue, 17 Nov 2020 10:59 AM (IST)
US-India Relation: भारत को लेकर बाइडन ने देखा था ये सपना, अब हो सकता है पूरा
आतंकवाद पर भी बाइडन का रवैया काफी सख्त माना जाता है, जो कि भारत के लिए अच्छी बात

रंजना मिश्र, जेएनएन। तीन दिन बाद यानी 20 नवंबर को अपना 78वां जन्मदिन मनाने जा रहे जोसेफ रॉबिनेट बाइडन जूनियर यानी जो बाइडन का अमेरिकी राष्ट्रपति बनने का सपना आखिर पूरा हो गया है। करीब पांच दशकों से अमेरिकी राजनीति में सक्रिय रहे बाइडन का सफर खासा संघर्षों भरा रहा है। इसी कारण उन्हें ‘मिडिल क्लास जो’ भी कहा जाता है। वह पिछले 33 वर्षों से अमेरिका का राष्ट्रपति बनने की कोशिश कर रहे थे। वर्ष 1987 में दावेदारी के दौरान किसी दूसरे नेता के भाषण की नकल करने के आरोप में उन्हें अपने कदम पीछे खींचने पड़े। वर्ष 2007 में वह पुन: इस होड़ में शामिल हुए, परंतु बाद में अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली।

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भारत को लेकर बाइडन का सपना

साल 2007 में बाइडन को बराक ओबामा ने अपना नायब बना लिया और वह अमेरिका के 47वें उपराष्ट्रपति बने। अब उनके राष्ट्रपति बनने पर भारत के साथ संबंधों को लेकर तमाम अटकलें लगाई जा रही हैं। इन अटकलों को ज्यादा तूल देना इस आधार पर उचित नहीं होगा, क्योंकि बाइडन भारत के साथ मजबूत संबंधों के पक्षधर रहे हैं। अमेरिका की विदेश मामलों की कमेटी का चेयरमैन रहते हुए उन्होंने भारत के साथ संबंधों को लेकर एक विशेष रणनीति भी बनाई थी। वर्ष 2006 में उन्होंने यहां तक कहा था कि उनका सपना है कि वर्ष 2020 तक भारत और अमेरिका सबसे गहरे मित्र बन जाएं।

भारत-अमेरिका परमाणु करार में भी बाइडन की रही बड़ी भूमिका

भारत से घनिष्‍ठ संबंधों की बात बाइडन ने तब कही थी, जब वह अमेरिका के उपराष्ट्रपति भी नहीं बने थे। वर्ष 2008 में भारत और अमेरिका के बीच हुए परमाणु करार में भी बाइडन की बड़ी भूमिका थी। इसके लिए उन्होंने न सिर्फ ओबामा को तैयार किया था, जो उस समय सीनेटर ही थे, बल्कि कई अन्य सांसदों को भी राजी किया था। बाइडन और ओबामा प्रशासन के दौरान अमेरिका ने पहली बार भारत को अपना बड़ा रक्षा साझेदार माना और इसी वजह से भारत को रक्षा के क्षेत्र में नई और अत्याधुनिक तकनीक मिलने की राह आसान हुई। पहली बार अमेरिका ने नाटो के बाहर किसी गैर नाटो देश को यह दर्जा दिया था।

भारत को अमेरिका का रणनीतिक सहयोगी बनाने में अहम भूमिका

बाइडन के उपराष्ट्रपति पद पर रहने के दौरान ही भारत और अमेरिका के बीच ‘लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरैंडम ऑफ एग्रीमेंट’ हुआ था, जिसके बाद अमेरिका और भारत एक-दूसरे के रणनीतिक सहयोगी बन गए थे। इस समझौते के बाद भारत और अमेरिका को एक सप्लाई सर्विसिंग और स्पेयर पार्ट्स के लिए एक-दूसरे के मिलिट्री बेस इस्तेमाल करने की इजाजत मिल गई थी, जो एक महत्वपूर्ण पड़ाव था।

आतंकवाद पर बाइडन का सख्‍त रवैया

आतंकवाद पर भी बाइडन का रवैया काफी सख्त माना जाता है, जो कि भारत के लिए अच्छी बात है, लेकिन चीन के मुद्दे पर बाइउन का रुख अभी साफ नहीं है। इमिग्रेशन और एच-1 वीजा के मुद्दे पर भी बाइडेन संभवत: नर्म रुख अपना सकते हैं। इसलिए भारत को उनसे अधिक चिंतित होने की आवश्यकता नहीं।

यह भी देखें: PM Modi ने Joe Biden को फोन पर दी बधाई, COVID 19, Climate Change पर हुई चर्चा


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