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US Election 2020: चीन को लेकर नरम नहीं होगा जो बाइडन का रवैया, भारत से रिश्‍ते की डोर होगी मजबूत

चीन आर्थिक ताकत बन चुका है और अपनी नौ सेना को वह अमेरिका के मुकाबले बना चुका है। ऐसे में ट्रंप प्रशासन ने जो भारत के साथ द्विपक्षीय रिश्तों को मजबूती दी है उस पर और ध्यान दिया जाएगा।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Thu, 05 Nov 2020 10:04 PM (IST)Updated: Fri, 06 Nov 2020 12:41 PM (IST)
US Election 2020: चीन को लेकर नरम नहीं होगा जो बाइडन का रवैया, भारत से रिश्‍ते की डोर होगी मजबूत
शी चिनफिंग, पीएम मोदी और जो बाइडन की फाइल फोटो।

जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। अब जबकि अमेरिका में सत्ता परिवर्तन की राह बनती नजर आ रही है तब यह सवाल उठना लाजिमी है कि इस बदलाव के बाद भारत व अमेरिकी रिश्तों में जो गर्माहट ट्रंप प्रशासन के कार्यकाल में आई थी वह जारी रहेगी या नहीं? भारत सरकार ने भले ही इस चुनाव से पहले ट्रंप प्रशासन को लेकर ज्यादा गर्माहट दिखाई हो लेकिन विदेश मंत्रालय का आकलन है कि रिश्तों की डोर पहले के मुकाबले और मजबूत होगी।  

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भारत की वजह से नहीं अपने हितों की वजह से चीन के खिलाफ अमेरिकी तैयारी : एंबेसडर विष्णु प्रकाश

देश के पूर्व कूटनीतिक जानकारों की सुनें तो वह मानते हैं कि जो बाइडन प्रशासन ट्रंप के कार्यकाल में भारत के साथ रिश्तों को लेकर लिए गए फैसले से कोई छेड़छाड़ नहीं करेगा। वजह यह है कि अमेरिका ने पूरी तरह से अपने हितों को देखते हुए भारत के साथ रिश्तों को नई दिशा दी है। हां, जानकारों की राय में डेमोक्रेट पार्टी ने पाकिस्तान और मानवाधिकार को लेकर पूर्व में जो रूख दिखाया है, वह भारत के लिए थोड़ी चिंता की बात हो सकती है। लेकिन इन मुद्दों पर हमेशा बातचीत का मौका होगा और भारत अपने पक्ष में रुख कर सकता है।

जहां तक कारोबारी क्षेत्र में रिश्तों की बात है तो यहां ट्रंप प्रशासन से ज्यादा बेहतरी की उम्मीद की जा सकती है। वजह यह है कि डेमोक्रेट पार्टी कारोबार में अनावश्यक अड़चन पैदा करने से बचने की रणनीति अपनाती है। यही नही डेमोक्रेट पार्टी के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में भारत-अमेरिकी द्विपक्षीय कारोबार को 500 अरब डॉलर करने की रणनीति फिर से परवान चढ़ाई जा सकती है।

चीन और हिंद-प्रशांत क्षेत्र रहेगी धुरी

जानकारों का कहना है कि वर्ष 2000 में पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के भारत आने के बाद से ही रिश्तों में जो प्रगाढ़ता आनी शुरू हुई है, उसकी रफ्तार आगे बढ़ेगी। इसमें चीन का विरोध और हिंद प्रशांत क्षेत्र में सैन्य व रणनीतिक सहयोग केंद्र में होगा। कई देशों में राजदूत रह चुके व विदेश मामलों के विशेषज्ञ एंबेस्डर विष्णु प्रकाश का कहना है कि, बाइडन के पास राजनीतिक करने का चार दशक से पुराना अनुभव है। वह शासन में रह चुके हैं। वह भारत कई बार आ चुके हैं और हाल ही में उन्होंने यह भी कहा है कि वह भारत को ज्यादा बेहतर समझते हैं। साथ ही अमेरिका को इस बात का एहसास है कि चीन की बढ़ती शक्ति उसकी सबसे बड़ी प्रतिद्वंदी है। अमेरिका अभी सिर्फ सैन्य ताकत है। 

चीन आर्थिक ताकत बन चुका है और अपनी नौ सेना को वह अमेरिका के मुकाबले बना चुका है। ऐसे में ट्रंप प्रशासन ने जो भारत के साथ द्विपक्षीय रिश्तों को मजबूती दी है उस पर और ध्यान दिया जाएगा। यह अमेरिका के हित में है। यह भी नहीं भूलना चाहिए कि भारत व अमेरिका के बीच रिश्ते दो नेताओं की वजह से नहीं बल्कि इन दोनो देशों के आपसी हितों की वजह से बेहतर हो रहे हैं। पाक व मानवाधिकार पर बाइडन की नीति पर चिंता :पूर्व में जो बाइडन ने नागरिकता संसोधन कानून (सीएए) को लेकर अपनी आपत्ति जता चुके हैं जबकि उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवार कमला हैरिस ने कश्मीर में मानवाधिकार हनन के मुद्दे को हवा दी है। 

पाकिस्तान व मानवाधिकार पर डेमोक्रेट का रवैया चिंताजनक, लेकिन रिश्तों का रखा जाएगा लिहाज 

जानकारों की मानें तो डेमोक्रेट पार्टी पारंपरिक तौर पर मानवाधिकार, धार्मिक आजादी जैसे मुद्दे को ज्यादा महत्व देती है और इसको लेकर भारत को ज्यादा सतर्क रहना होगा। पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल का कहना है कि, ''उक्त मुद्दे भारतीय नीति नियामकों के लिए थोड़ी चिंता की बात हो सकती है लेकिन इसे बैलेंस करना कोई मुश्किल काम नहीं होगा। वैसे भी दोनो देशों के बीच अभी कई मुद्दों पर आम सहमति बनाने को लेकर बातचीत हो रही है।'' एंबेस्डर विष्णु प्रकाश मानते हैं कि पाकिस्तान को लेकर ज्यादा चिंतित होने की जरुरत नहीं है। वर्ष 2000 में पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने भारत दौरे के बाद से द्विपक्षीय रिश्तों में पाकिस्तान को अलग- थलग करने की प्रक्रिया लगातार जारी है। ओबामा सरकार के दौरान पाकिस्तान पर आतंकवाद के मुद्दे पर कड़ाई करने की प्रक्रिया शुरू हुई थी, जो अभी तक जारी है।


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