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चीन ने 2017 में किया था भारतीय सैटेलाइट पर हमला, जानें कैसे हो सकता है ये संभव, कितना है घातक

चीन ने 2017 में भारतीय सैटेलाइट पर हमला किया था। अमेरिका की एक रिपोर्ट में इसका जिक्र किया गया है। इतना ही नहीं चीन ने एक बार नासा की जेट प्रप्‍लशन लैब को भी हैक कर लिया था।

By Kamal VermaEdited By: Published: Wed, 23 Sep 2020 01:19 PM (IST)Updated: Thu, 24 Sep 2020 07:13 AM (IST)
चीन ने 2017 में किया था भारतीय सैटेलाइट पर हमला, जानें कैसे हो सकता है ये संभव, कितना है घातक
अंतरिक्ष में मंडराती भारतीय सेटेलाइट्स पर ड्रैगन का साया

नई दिल्‍ली (ऑनलाइन डेस्‍क)। चीन लगातार भारत को नुकसान पहुंचाने की कोशिशें करता आ रहा है। इसके तहत वह भारतीय सैटेलाइट को भी नुकसान पहुंचाकर भारत को खतरे में डालने की कोशिश कर चुका है। अमेरिका के चीन एयरोस्‍पेस स्‍टडीज इंस्टीट्यूट (CASI) की रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2017 में चीन ने भारतीय कम्‍युनिकेशन सैटेलाइट पर हमला किया था। इसमें ये भी कहा गया है कि वर्ष 2007 के बाद से चीन ने इस तरह की कोशिश करता रहा है।

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दरअसल, दुनिया की बड़ी ताकतें वर्तमान में स्‍पेस वार की तरफ बढ़ती हुई दिखाई दे रही हैं। यही वजह है कि अंतरिक्ष में घूमती सैटेलाइट पर हमले की आशंका हर समय बनी रहती है। दुनिया के हर देश के लिए इनकी सुरक्षा सबसे बड़ी प्राथमिकता होती है। ऐसा इसलिए भी है क्‍योंकि हम पूरी तरह से इन पर निर्भर हैं। हमारे फोन पर बात करने से लेकर रेल गाड़ियों की आवाजाही और हवाई जहाजों की उड़ानें सब कुछ इनके ही माध्‍यम से हो पाती हैं। अमेरिका की इस रिपोर्ट में वर्ष 2017 में भारतीय सैटेलाइट पर हुए कंप्‍यूटर नेटवर्क अटैक का विस्‍तार से जिक्र किया गया है।

ये रिपोर्ट 142 पन्‍नों की है। इस रिपोर्ट में यहां तक कहा गया है कि वर्ष 2012 में जेट प्रपल्‍शन लेबोरेटरी (JPL) के सिस्‍टम को भी हैक कर लिया गया था। हालांकि, जानकारों का मानना है कि इस तरह के हमले को लेकर चिंता करना तो वाजिब है, लेकिन, यदि हमारा सिस्‍टम इस अटैक के बाद भी सही काम कर रहा है तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि उसने हमला किया या नहीं। दरअसल, सैटेलाइट पर हमले को इलेक्‍ट्रॉनिक अटैक के जरिए अंजाम दिया जाता है। इसके तहत यदि सैटेलाइट को हाई पावर दे दी जाए तो उसके बर्न आउट होने के चांसेज बढ़ जाते हैं।

इस तरह के हमले के लिए मिसाइल का इस्‍तेमाल नहीं किया जाता है। ऐसा इसलिए है, क्‍योंकि मिसाइल को रडार पकड़ सकता है और उसकी पूर्व सूचना आसानी से हासिल हो सकती है। लेकिन सैटेलाइट पर हुए इलेक्‍ट्रॉनिक अटैक का पता तभी चलता है जब संचार व्‍यवस्‍था में दिक्‍कत आती है। यही वजह है कि मौजूदा समय में इलेक्‍ट्रॉनिक अटैक सबसे अधिक खतरनाक है। इस तरह के हमलों में सैटेलाइट के हार्डवेयर को नुकसान पहुंचता है।

आपको बता दें कि एक समझौते के तहत अंतरिक्ष को किसी तरह के युद्ध से बाहर रखा गया है। इस समझौते के तहत कोई भी देश दूसरे देश की सैटेलाइट को किसी भी तरह का नुकसान नहीं पहुंचा सकता है। इसके बाद भी इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि ऐसा होता है। अमेरिका की ताजा रिपोर्ट इसका जीता-जागता सुबूत है। इलेक्‍ट्रॉनिक अटैक में सैटेलाइट में लगे ट्रांसपॉन्‍डर्स को निशाना बनाया जाता है। इनका काम सिग्‍नल को एक जगह से दूसरी जगह भेजने का होता है। इनको एक निश्चित पावर के साथ सिग्‍नल अपलिंक किया जाता है, जिसको वो दूसरी जगह भेज देता है। लेकिन यदि इस दौरान ट्रांसपॉन्‍डर्स को जरूरत से ज्‍यादा पावर दे दी जाए तो ये बर्न आउट हो जाएगा। इसका नतीजा ये होगा कि हम जो भी सिग्‍नल सैटेलाइट को भेजेंगे, वो उसको आगे नहीं भेज सकेगी और इस तरह से आपसी कम्‍युनिकेशन बंद हो जाएगा।

हालांकि, ट्रांसपॉन्‍डर्स को बनाते समय इस तरह के इलेक्‍ट्रॉनिक अटैक और इससे बचाव को ध्‍यान में रखा जाता है। इसके बावजूद भी अत्‍यधिक पावर से इनके नुकसान पहुंचाया जा सकता है। सैटेलाइट पर हमला करना इस लिहाज से भी आसान होता है, क्‍योंकि इसके हार्डवेयर और उसके कम्‍युनिकेशन नेटवर्क के तरीके के बारे में पूरी दुनिया बखूबी जानती है। आपको यहां पर ये भी बता दें कि किसी सैटेलाइट में उसके उपयोग को देखते हुए ही ट्रांसपॉन्‍डर्स की संख्‍या तय की जाती है। किसी भी सैटेलाइट का ये एक प्रमुख अंग होता है। खराब होने या किसी के द्वारा इसको नष्‍ट किए जाने से इसको रिपेयर करने भी कोई संभावना नहीं होती है।

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