विश्वविद्यालय ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन की समस्या सुलझाने के लिए रिसर्च करेगा
भारत सरकार ने विश्वविद्यालय के रसायन विभाग के प्रोफेसर डॉ. शम्स परवेज के प्रस्ताव को स्वीकार किया है।
रायपुर, नईदुनिया प्रतिनिधि। पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय अब ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन की जांच करेगा। भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) ने विश्वविद्यालय के रसायन विभाग के प्रोफेसर डॉ. शम्स परवेज के प्रोजेक्ट प्रस्ताव को स्वीकार किया है। वायुमंडलीय काला कार्बन और जलवायु परिवर्तन (एटमॉसफिरिक ब्लेक कार्बन एंड क्लाइमेट चेंज) पर देश स्तरीय रिसर्च विश्वविद्यालय के प्रोफेसर परवेज के नेतृत्व में होगा।
डॉ. परवेज के प्रस्ताव को 60 लाख स्र्पये की राशि मिलेगी। इसके अंतर्गत दो शोधार्थी भी होंगे। इसके तहत भारत के चार तरह प्रकृति वाले इलाकों को चयनित करके ग्लोबल वार्मिंग पर पड़ रहे प्रभाव को जांचा जाएगा। इनमें हिमालय जहां पर आए दिन बादल फटने की क्या है। इसी तरह दिल्ली में अक्सर प्रदूषण के कारण यहां होने वाली दिक्कतें व वायुमंडल में असर जांचेंगे। रसायन विभाग के प्रोफेसर डॉ. शम्स परवेज के मुताबिक मिनरल एंड कोल बेस्ड एरिया रायपुर होने के कारण यहां भी ग्लोबल वार्मिंग की जांच होगी और गोवा या विशाखापट्टनम में समुद्री तट के किनारे भी ग्लोबल वार्मिंग की जांच करेंगे।
मौसम की जानकारी आंकने के मिलेंगे यंत्र
स्पेक्टोफोटो मीटर, वेदर की जानकारी, वेदर मीटर करने के लिए भी उपकरण मिलेंगे। बताया जाता है कि पृथ्वी का औसत तापमान अभी लगभग 15 डिग्री सेल्सियस है, हालांकि भूगर्भीय प्रमाण बताते हैं कि पूर्व में ये बहुत अधिक या कम रहा है, लेकिन अब पिछले कुछ वर्षों में जलवायु में अचानक तेजी से परिवर्तन हो रहा है। गर्मियां लंबी होती जा रही हैं, और सर्दियां छोटी। पूरी दुनिया में ऐसा हो रहा है। यही है जलवायु परिवर्तन। दिन और रात के तापमान में भी बदलाव देखने को मिल रहा है। लिहाजा इस स्तर के रिसर्च के लिए रविवि के प्रोफेसर को प्रोजेक्ट मिलना बड़ी कामयाबी है।
रायपुर में इसलिए होगी जांच
रायपुर में ग्लोबल वार्मिंग की जांच होने की प्रमुख वजह यहां शहर से लगे औद्योगिक क्षेत्र का होना है। विशेषज्ञों के मुताबिक राजधानी से लगे उरला और सिलतरा में चलने वाले केमिकल और स्पंज आयरन उद्योगों ने न केवल वायु बल्कि, जल प्रदूषण को भी बढ़ाया है। उद्योगों की चिमनी से निकलने वाले आर्गेनिक व ब्लैक कार्बन के कारण वायु में प्रदूषण की मात्रा बढ़ती जा रही है। इसी कारण यहां ठंड की तासीर कम होती जा रही है। ठंड में भी गर्मी का एहसास होने लगा है। इसका असर इतना खतरनाक है कि आसपास के रिहायशी इलाकों के मकानों की दीवारें काली पड़ गई हैं।