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भारत में कोरोना के कम मामलों के पीछे कहीं बीसीजी का टीका तो नहीं, वैज्ञानिकों के आकलन से जगी उम्‍मीद

अमेरिकी शोधकर्ता मान रहे हैं कि भारत में कोरोना के कम मामले होने के पीछे बीसीजी टीके की अहम भूमिका है। वैज्ञानिकों का यह आकलन गेम चेंजर साबित हो सकता है...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Thu, 02 Apr 2020 12:23 AM (IST)Updated: Thu, 02 Apr 2020 12:32 AM (IST)
भारत में कोरोना के कम मामलों के पीछे कहीं बीसीजी का टीका तो नहीं, वैज्ञानिकों के आकलन से जगी उम्‍मीद
भारत में कोरोना के कम मामलों के पीछे कहीं बीसीजी का टीका तो नहीं, वैज्ञानिकों के आकलन से जगी उम्‍मीद

नई दिल्ली, पीटीआइ। दूसरे देशों की तुलना में भारत में कोरोना के कम मामले होने के पीछे क्या बीसीजी का टीका जिम्मेदार है। भले ही इसका कोई और कारण हो लेकिन अमेरिकी शोधकर्ता मान रहे हैं कि इसके पीछे बीसीजी टीके की अहम भूमिका है। अगर यह बात सिद्ध हो जाती है तो यह टीका कोरोना से लड़ाई में गेम चेंजर साबित हो सकता है। कोरोना का प्रकोप फैलने पर अमेरिका सहित दुनिया के कई देशों को आशंका थी कि विशाल आबादी वाले भारत में बड़े पैमाने पर मौतें होंगी। लेकिन अभी तक जो पैटर्न है इससे उनकी आशंका गलत साबित हो गई है।

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बीसीजी हो सकता है कारगर 

अमेरिकी वैज्ञानिकों का मानना है कि भारत में नवजात बच्चों को बैसिलस कैलमेट गुयरिन (बीसीजी) टीका देने की जो परंपरा है उसके कारण कोरोना का इतना प्रभाव नहीं हो रहा है। जबकि इटली, नीदरलैंड्स और अमेरिका जहां बच्चों को यह टीका नहीं दिया जाता वहां संक्रमितों व मरने वालों की संख्या बेतहाशा बढ़ती जा रही है। न्यूयार्क इंस्टीट्यूट आफ टेक्नालाजी बायोकेमिकल साइंसेज के असिस्टेंट प्रोफेसर गोंजालो ओताजू ने कहा कि इस संबंध में किये गये अध्ययन में हमने पाया कि कोविड-19 से निपटने में बीसीजी कारगर हो सकता है। इस अध्ययन की रिपोर्ट अभी प्रकाशित होनी है।

1948 में शुरू हुआ था टीके का चलन 

अध्ययन के मुताबिक बीसीजी भारत के राष्ट्रीय टीकाकरण अभियान का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह मवेशियों में टीबी रोग के लिए जिम्मेदार बैक्टीरिया माइकोबक्टीरियम बोविस के कमजोर स्वरूप से तैयार किया जाता है। यह मनुष्यों में टीबी के लिए जिम्मेदार बैक्टीरिया से भिन्न होता है। भारत में बीसीजी टीके का चलन 1948 में शुरू हुआ था। तब भारत में टीबी (ट्यूबर कोलोसिस) के मामले दुनिया में सबसे ज्यादा होते थे। इस संबंध में भारतीय विशेषज्ञों का कहना है कि हम लोग इस बात से आशांवित हैं लेकिन अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा।

सार्स में प्रभावी साबित हुई बीसीजी वैक्सीन 

लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी, पंजाब के एप्लाइड मेडिकल साइंसेज फैकल्टी की सीनियर डीन मोनिका गुलाटी ने बताया कि ऐसे मौकों पर छोटी सी बात भी उम्मीद बंधाती है। खास बात यह है कि सार्स के संक्रमण में बीसीजी वैक्सीन प्रभावी साबित हुई है। सार्स का वायरस भी मूलत: कोरोना परिवार का वायरस है। अमेरिका में कोरोना के अब तक 190,000 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं जबकि 4000 से अधिक की मौत हो चुकी है। जबकि इटली में105,000 सामने आये हैं और 12 हजार से अधिक मौतें हो चुकी हैं। इसी तरह नीदरलैंड्स में 12,000 से अधिक मामले आने के साथ एक हजार से अधिक मौतें हो चुकी हैं। 

बीसीजी के टीके से उम्मीद बंधी

गाजियाबाद के कोलंबिया एशिया हास्पिटल के इंटरनल मेडिसिन विभाग के दीपक वर्मा ने बताया कि कोविड-19 के लिए अभी तक कोई वैक्सीन उपलब्ध नहीं है। ऐसे में बीसीजी के टीके से उम्मीद बंधी है। हालांकि कोरोना वायरस पर इसके प्रभाव को परखने में समय लगेगा। हैदराबाद के सेंटर फार सेल्युलर एंड मालीक्युलर बायोलाजी (सीसीएमबी) के निदेशक राकेश मिश्रा ने बताया कि ये निष्कर्ष आकर्षित करने वाला है लेकिन इसके लिए और शोध की जरूरत है। यह कोई ऐसा तथ्य नहीं है कि इस पर निर्भर होकर हम लोग कोविड-19 के लिए कोई नीति बना लें।


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