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केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद सिंह बोले, राम सेतु के शोध को ही दी गई है मंजूरी, नहीं होगी इसमें कोई छेड़छाड़

राम सेतु पर शोध के लिए एएसआइ के सामने दो आवेदन आए थे। इनमें से एक सीएसआइआर से जुड़े संस्थान एनआइओ का और दूसरा एक निजी शोधार्थी ने दिया था। ऐसे में एएसआइ ने समुद्री विज्ञान के शोध से जुड़ी सीएसआइआर के संस्थान एनआइओ को इसकी मंजूरी दी है।

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Published: Thu, 14 Jan 2021 08:19 PM (IST)Updated: Thu, 14 Jan 2021 08:19 PM (IST)
केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद सिंह बोले, राम सेतु के शोध को ही दी गई है मंजूरी, नहीं होगी इसमें कोई छेड़छाड़
केंद्रीय पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल और राम सेतु की फाइल फोटो

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। राम सेतु से जुड़े शोध को भारतीय पुरात्तव सर्वेक्षण (ASI) की मंजूरी पर केंद्रीय पर्यटन और संस्कृति मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल ने साफ किया है कि एएसआइ ने सीएसआइआर से जुड़ी संस्था नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशनोग्राफी (NIO) को सिर्फ शोध की मंजूरी दी है, ना कि किसी तरह की छेड़छाड़ की। वैसे भी राम सेतु के साथ किसी भी तरह की कोई छेड़छाड़ नहीं होगी।

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केंद्रीय मंत्री पटेल ने बताया कि राम सेतु पर शोध के लिए एएसआइ के सामने दो आवेदन आए थे। इनमें से एक सीएसआइआर से जुड़े संस्थान एनआइओ का और दूसरा एक निजी शोधार्थी ने दिया था। ऐसे में एएसआइ ने समुद्री विज्ञान के शोध से जुड़ी सीएसआइआर के संस्थान एनआइओ को इसकी मंजूरी दी है। गौरतलब है कि राम सेतु पर शोध को एएसआइ की मंजूरी पर भाजपा नेता विनय कटियार जैसे कुछ लोगों ने सवाल खड़े किए थे। इसके बाद पटेल ने यह स्पष्ट किया है।

उन्होंने कहा कि यह संस्थान और भी आधुनिक तरीके से राम सेतु की सटीक आयु का पता लगाएगी। फिलहाल अब तक किसी भी चीज की आयु का पता लगाने के लिए कार्बन डेटिंग ही एकमात्र तरकीब थी। जबकि इस नए शोध में रेडियो मैट्रिक और थर्मो तकनीक के जरिये इसकी आयु का पता लगा जाएगा। फिलहाल देश में समुद्र के भीतर शोध में एनआइओ की महारत है।

जानकारों की माने तो इस शोध से राम सेतु से जुड़ी सारी सटीक जानकारी सामने आएगी। यानी यह कब बना था। इसे बनाने के लिए पत्थरों की कैसे श्रृंखला बनाई गई थी। इसके साथ ही रामायण में हुए जिक्र के आधार पर राम सेतु के आसपास की उस समय मौजूद बस्तियों का भी पता लगाया जाएगा। इस शोध में ऐसे समुद्री जहाजों का उपयोग किया जाएगा, जो समुद्र के भीतर 30-40 फीट तक की गहराइयों में जाकर शोध कर सकेंगे।


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