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बच्चों के लिए देश को मिला पहला टीका, जायडस कैडिला की तीन डोज वाली वैक्सीन को मंजूरी

सरकार की ओर से गठित सब्जेक्‍ट एक्‍सपर्ट कमेटी (Subject Expert Committee SEC) ने जायडस कैडिला की तीन डोज वाली कोरोना रोधी वैक्सीन के आपात इस्‍तेमाल को मंजूरी देने के लिए सिफारिश की है। जानें इस वैक्‍सीन की खूबियां...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Fri, 20 Aug 2021 05:55 PM (IST)Updated: Fri, 20 Aug 2021 11:28 PM (IST)
बच्चों के लिए देश को मिला पहला टीका, जायडस कैडिला की तीन डोज वाली वैक्सीन को मंजूरी
सरकार ने जायडस कैडिला की वैक्सीन के आपात इस्‍तेमाल को मंजूरी दी है। Photo credit : PTI

नई दिल्‍ली, एजेंसियां। देश को बच्चों के लिए पहली कोरोना रोधी वैक्सीन मिल गई है। भारत के दवा महानियंत्रक (डीसीजीआइ) ने जायडस कैडिला की तीन डोज वाली कोरोना रोधी जायकोव-डी वैक्सीन के इमरजेंसी इस्तेमाल को मंजूरी दे दी है। यह 12 साल के बच्चों से लेकर बड़ों को भी लगाई जाएगी। भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) ने शुक्रवार को कहा कि इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी मिलने के साथ ही यह पहली वैक्सीन होगी जो 12-18 वर्ष आयु के बच्चों एवं किशोरों को लगाई जाएगी।

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पीएम मोदी ने बड़ी उपलब्धि बताया

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जायकोव-डी वैक्सीन के इमरजेंसी इस्तेमाल को मंजूरी दिए जाने को महत्‍वपूर्ण उपलब्धि बताया है। पीएम मोदी ने कहा कि भारत कोरोना से लड़ाई पूरी बहादुरी से लड़ रहा है। दुनिया की पहली डीएनए आधारित जायडस कैडिला की वैक्सीन भारतीय विज्ञानियों के इनोवेटिव उत्साह को दर्शाती है। वास्तव में यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।

तीन डोज वाली है यह वैक्‍सीन

देश में अभी तक जो वैक्सीन लगाई जा रही है वह 18 साल से अधिक उम्र के लोगों के लिए है। इसके अलावा ये सभी दो डोज वाली वैक्सीन हैं, जबकि जायकोव-डी तीन डोज की। अहमदाबाद स्थित इस फार्मा कंपनी ने अपनी इस वैक्‍सीन के आपात इस्‍तेमाल के लिए डीसीजीआइ के पास पहली जुलाई को आवेदन दिया था।

दुनिया की पहली डीएनए आधारित वैक्‍सीन

डीबीटी ने बताया कि यह दुनिया की पहली डीएनए आधारित वैक्सीन है। अभी तक जितनी भी वैक्सीन हैं वह एम-आरएनए आधारित हैं। हालांकि, दोनों ही वैक्सीन एक ही काम करतीं, बस इनके काम करने का तरीका अलग है। प्लाज्मिड डीएनए-आधारित जाइकोव-डी सार्स-सीओवी-2 के स्पाइक प्रोटीन का उत्पादन करती है और मजबूत प्रतिरक्षा प्रदान करती है।

बिना सुई के लगाई जाएगी

जायकोव-डी को लेना भी आसान होगा और इसमें दर्द भी नहीं होगा। इसको लगाने के लिए नुकीली सुई का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा बल्कि इसे फार्माजेट तकनीक से लगाया जाएगा। इस तकनीक में बिना सुई वाले इंजेक्शन में दवा भरी जाती है और फिर उसे एक मशीन में लगाकर बांह में दिया जाता है।

28,000 वालंटियर पर किया गया ट्रायल

कंपनी का कहना है कि उसने भारत में अब तक 50 से अधिक केंद्रों पर इस वैक्सीन का क्लिनिकल ट्रायल किया है। वैक्सीन के तीसरे चरण का क्लीनिकल ट्रायल 28 हजार से ज्यादा वालंटियर पर किया गया था। इसमें यह 66.6 फीसद प्रभावी पाई गई है। कोरोना वैक्सीन के लिए देश में यह सबसे बड़ा ट्रायल था। पहले और दूसरे चरण के परीक्षण में इसे सुरक्षित और कारगर पाया गया था।

मंजूरी पाने वाली छठी वैक्सीन

इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी यानी ईयूए हासिल करने वाली यह देश की छठी वैक्सीन है। इससे पहले कोविशील्ड, कोवैक्सीन, स्पुतनिक-वी, माडर्ना और जानसन एंड जानसन की वैक्सीन को मंजूरी दी जा चुकी है। लेकिन इनमें से अभी कोविशील्ड, कोवैक्सीन और स्पुतनिक-वी का ही इस्तेमाल किया जा रहा जा रहा है। जायडस कैडिला ने एक बयान में कहा है कि उसकी हर साल इस वैक्सीन की 10-12 करोड़ डोज का उत्पादन करने की योजना है।


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