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पेट्रोल-डीजल पर टैक्‍स के रूप में लगने वाला 'एड-वलोरम' क्‍या है, इसे समझिए

एड-वलोरम क्या है? उपभोक्ताओं की जेब और सरकार के खजाने पर इसका क्या असर पड़ता है।

By Prateek KumarEdited By: Published: Sun, 21 Oct 2018 08:27 PM (IST)Updated: Sun, 21 Oct 2018 08:30 PM (IST)
पेट्रोल-डीजल पर टैक्‍स के रूप में लगने वाला 'एड-वलोरम' क्‍या है, इसे समझिए
पेट्रोल-डीजल पर टैक्‍स के रूप में लगने वाला 'एड-वलोरम' क्‍या है, इसे समझिए

हरिकिशन शर्मा, नई दिल्ली। हाल में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल महंगा होने से पेट्रोल व डीजल की कीमतें रिकार्ड स्तर पर पहुंच गयीं। पेट्रोल-डीजल की जितनी कीमत है, उसमें लगभग आधा हिस्सा केंद्र व राज्यों के दो टैक्स- उत्पाद शुल्क और वैट का बोझ है। खासकर वैट जो 'एड-वलोरम' आधार पर लगता है। 'एड-वलोरम' क्या है? उपभोक्ताओं की जेब और सरकार के खजाने पर इसका क्या असर पड़ता है? 'जागरण पाठशाला' के इस अंक में हम यही समझने का प्रयास करेंगे।

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 लैटिन भाषा का शब्‍द
'एड-वलोरम' लैटिन भाषा का शब्द है जिसका मतलब होता है 'मूल्यानुसार'। इसलिए जब किसी वस्तु पर उसके मौद्रिक मूल्य के आधार पर टैक्स लगता है तो उसे 'एड-वलोरम टैक्स' (मूल्यानुसार कर) कहते हैं। परंपरागत तौर पर आयात शुल्क और उत्पाद शुल्क वस्तुओं की मात्रा, उनके भार या उनकी संख्या के आधार पर लगाये जाते रहे हैं जिसे टैक्स की 'स्पेसिफिक रेट' कहते हैं। हाल में 'एड-वलोरम' के आधार पर टैक्स लगाने का चलन बढ़ा है। खासकर बिक्री कर जैसे वैट इसी आधार पर लगाए जाते हैं।

अचल संपत्ति पर लगने वाला प्रॉपर्टी टैक्स भी 'मूल्यानुसार' कर की श्रेणी में आता है। स्थानीय निकाय प्रॉपर्टी टैक्स लगाते हैं और अचल संपत्ति के मालिक को सालाना इसका भुगतान करना होता है। यह उस संपत्ति के उचित बाजार मूल्य यानी फेयर मार्केट वैल्यू के आधार पर लगाया जाता है। कई चीजों के आयात पर भी एड-वलोरम टैक्स लगाया जाता है। दरअसल इसकी पीछे विचार यह है कि उपभोक्ता किसी वस्तु के उपभोग के लिए जितनी राशि खर्च कर रहा है उसके अनुसार उस पर टैक्स का बोझ डाला जाए। भारत में 'एड-वलोरम' आधार पर लगने वाले टैक्स का सबसे उपयुक्त उदाहरण पेट्रोल और डीजल पर राज्यों द्वारा लगाए जाने वाला मूल्य वर्दि्धत कर (वैट) है।

पंद्रह अक्टूबर 2018 को दिल्ली में पेट्रोल का सेलिंग प्राइस (बिक्री मूल्य) 82.78 रुपये प्रति लीटर था। इसमें 43.54 रुपये पेट्रोल का वास्तविक मूल्य तथा शेष राशि केंद्र व राज्यों के टैक्स (17.98 रुपये उत्पाद शुल्क और 17.60 रुपये वैट) व 3.66 रुपये डीलर कमीशन था। चूंकि उत्पाद शुल्क 'स्पेशिफिक रेट' यानी उसकी मात्रा के आधार पर लगता है। इसलिए एक लीटर पेट्रोल की कीमत में इसका योगदान 17.98 रुपये है।

दूसरी ओर वैट 'एड-वलोरम' आधार यानी मूल्य पर लगता है इसलिए यह पेट्रोल के वास्तविक मूल्य 43.54 रुपये में उत्पाद शुल्क और डीलर कमीशन को जोड़कर (65.18 रुपये) पर लागू होगा। दिल्ली में पेट्रोल पर वैट 27 प्रतिशत है इसलिए 65.18 रुपये पर यह लगने के बाद एक लीटर पेट्रोल के सेलिंग प्राइस में इसका भार 17.60 रुपये पड़ा।

अगर वैट 'एड-वलोरम' के बजाय केंद्र के उत्पाद शुल्क की तरह 'स्पेसिफिक' रेट पर लगता तो यह इसका भार 17.60 रुपये के बजाय मात्र 12 रुपये आता। ऐसे में ग्राहक को कम राशि चुकानी पड़ती। हालांकि इसका एक परिणाम यह होता कि राज्य सरकार के खजाने में कम धनराशि जाती। यही वजह है कि राज्य सरकारें पेट्रोल व डीजल पर वैट लगाते समय 'एड-वलोरम' तरीका अपनाती हैं ताकि जब जब पेट्रोलियम उत्पादों के भाव बढ़ें, उनके खजाने में भी अधिक राशि आए।


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