कोरोना से लाखों लोगों की गई जान, प्रत्येक नागरिक को समझनी होगी अपनी जिम्मेदारी
पर्यावरणीय उदासीनता के कारण आज तमाम बीमारियां लोगों के जीवन में घर कर गई हैं और व्यक्ति असमय काल के गाल में समा रहा है। अगर मनुष्य को संतुलित जीवन की दरकार है तो उसे बौद्ध सूत्र मध्यम मार्ग अपनाना ही होगा।
[लालजी जायसवाल] कोरोना की भयावहता से आज पूरा देश आक्रांत है। इस कारण जहां लाखों लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है, वहीं दूसरी ओर इस कारण से कुछ क्षेत्रों में सुधार भी होता दिख रहा है। इस बीच एक अच्छी बात यह हुई है कि देश ने कुछ वक्त में ही डिजिटलीकरण का प्रतिमान स्थापित कर दिया, तो वहीं आत्मनिर्भरता की चर्चा होते ही देश में कई विशेष उत्पाद सामने आने लगे, जिसका देश बाहर से आयात करता था। रक्षा क्षेत्र में नए प्रतिमान स्थापित हुए तो वहीं नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में भरपूर कार्य हुआ। इसलिए आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि एक महामारी हमें धारणीय विकास की सीख दे सकती है। आज प्रत्येक नागरिक को धारणीय विकास की सोच बनानी होगी। हमें प्लास्टिक के उपयोग से बचना होगा। साथ ही पर्यावरण क्षरण को रोकना होगा। खासकर पेड़ों की कटाई को नजरअंदाज करना, अपने पर्यावरणीय कर्तव्यों से विमुख होना है। अत: धारणीय विकास के लक्ष्य में सरकारी प्रयास के साथ जनता की भागीदारी सवरेपरि है।
डेनमार्क में पर्यावरण विज्ञान के एक संबंधित शोध पत्र में कहा गया है कि अगर एक वृक्ष काटा जाए तो एक वृक्ष लगाना साम्यावस्था बनाए रखने के लिए पर्याप्त है। गौरतलब यह भी है कि अगर हम एक वृक्ष काटते हैं और बदले में पांच पौधे लगाते हैं, लेकिन उसकी नियमित देखभाल नहीं करते, तो यह पर्यावरण विदोहन के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। पर्यावरणीय उदासीनता के कारण आज तमाम बीमारियां लोगों के जीवन में घर कर गई हैं और व्यक्ति असमय काल के गाल में समा रहा है। अगर मनुष्य जीवन में धारणीय शैली को अपना ले, तो विकास स्वयं ही धारणीय बनता चला जाएगा। स्पष्ट है कि मनुष्य पर्यावरणीय स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा कर अपने आयुष्मान की कल्पना नहीं कर सकता। अगर मनुष्य को संतुलित जीवन की दरकार है तो उसे बौद्ध सूत्र मध्यम मार्ग अपनाना ही होगा, जो व्यक्ति को स्वस्थ जीवन तो प्रदान करेगा ही, विकास भी आíथक संवृद्धि मात्र न हो कर धारणीय विकास को प्रतिबिंबित करेगा, जो मानव और जीव जगत के लिए हितकारी होगा।
हमें यह कतई नहीं भूलना चाहिए कि धारणीय विकास एक विशाल यज्ञ की तरह है, जिसमें समाज के हर वर्ग को अपनी आहूति डालनी होगी। इस क्षेत्र के अगुआ देशों के अनुभवों से ज्ञान लेकर अगर हम सरकार-समाज की साङोदारी करने में सफल हो गए, तो सबका साथ-सबका विकास के स्वप्न को अवश्य ही पूरा कर सकेंगे। वहीं अगर पर्याप्त रूप से जन भागीदारी नहीं हुई तो धारणीय विकास के लक्ष्य को प्राप्त करना कठिन हो जाएगा। प्रकृति का विदोहन नागरिक ही करता है। अत: उसकी सुरक्षा का दायित्व भी प्रत्येक नागरिक का ही है। इसलिए धारणीय विकास लक्ष्य के लिए केंद्र-राज्य सरकार और स्थानीय स्वशासन तथा जनता का समन्वित प्रयास बहुत जरूरी है।
(शोधार्थी, इलाहाबाद विश्वविद्यालय)