सुप्रीम कोर्ट के दो जज एक आवाज में बोले- देश में कानून की पढ़ाई में तत्काल सुधार की जरूरत
सुप्रीम कोर्ट के दो न्यायाधीशों ने कहा कि देश में कानूनी शिक्षा में सुधार की तत्काल आवश्यकता है क्योंकि इसकी गुणवत्ता लॉ कॉलेजों के मशरूमिंग के कारण प्रभावित हो रही है। न्यायमूर्ति एस के कौल और जस्टिस एन वी रमन्ना ने की टिप्पणी।
नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट के दो जजों ने देश में कानून की पढ़ाई में तत्काल सुधार किए जाने की जरूरत बताई है। इन दोनों जजों के अनुसार लॉ कालेजों की भरमार के कारण कानून की गुणवत्ता में काफी कमी आई है। जस्टिस एस के कौल ने कहा ने कहा कि हम अपनी जरूरतों पर गौर किए बिना हर साल ढेरों वकील तैयार कर रहे हैं। देश में अंधाधुंध लॉ कालेज खुलने से कानून की पढ़ाई का स्तर गिरा है। वक्त का तकाजा है कि कानून की पढ़ाई में सुधार लाया जाए।
इसी तरह के विचार वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने भी व्यक्त किए। जस्टिस एन वी रमन्ना ने जस्टिस कौल और वकील सिंघवी के विचारों से सहमति व्यक्त करते हुए कहा कि कानूनी पढ़ाई की दशा सुधारने पर ध्यान देना बहुत जरूरी है। मैं समझता हूं कि इस बारे में कुछ किया जा सकता है। आने वाले दिनों में हम इस मुद्दे को उठाएंगे। इन दोनों जजों ने अपने विचार अभिषेक मनु सिंघवी और प्रोफेसर खगेश गौतम की लिखी पुस्तक 'द लॉ आफ इमर्जेसी पावर्स' के विमोचन अवसर पर आयोजित वर्चुअल कार्यक्रम में व्यक्त किए। प्रो.गौतम जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल में कानून पढ़ाते हैं।
स्थायी कमीशन व पदोन्नति के लिए फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं महिला सैन्य अफसर
समावेशी, निष्पक्ष, न्यायोचित और तार्किक तरीके से स्थायी कमीशन, पदोन्नति और उसके लाभ के लिए 11 महिला सैन्य अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर केंद्र सरकार को शीर्ष अदालत के पिछले साल फरवरी के आदेश का अनुपालन करने के निर्देश देने की मांग की है।लेफ्टिनेंट कर्नल आशु यादव और 10 अन्य महिला सैन्य अधिकारियों ने अपनी याचिका में आरोप लगाया है कि निर्देशों का उनकी भावना के अनुरूप पालन नहीं किया जा रहा था। उनका आरोप है कि स्थायी कमीशन प्रदान करने की प्रक्रियाएं मनमानी, पक्षपातपूर्ण और अनुचित हैं। याचिका पर 27 जनवरी को जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ सुनवाई करेगी।याचिका के मुताबिक, प्रतिवादी संस्था महिला अधिकारियों को तकनीकी एवं प्रक्रियागत औपचारिकाताओं में फंसाकर और उनके अधिकारों से वंचित करके असमान व्यवहार करने के अपने रुख पर अड़ी हुई है।
केंद्र सरकार के व्यवहार से लगता है कि वह इन महिला अधिकारियों के साथ मनोवैज्ञानिक खेल खेल रही है ताकि उन्हें स्थायी कमीशन, पदोन्नति और उनके लाभ प्रदान करने की हर संभावना से बचा जा सके। यह 17 फरवरी, 2020 के आदेश का स्पष्ट उल्लंघन है। याचिका में महिला अधिकारियों को समयावधि के आधार पर कर्नल की रैंक प्रदान करने और काफी समय से लंबित वित्तीय बकायों का भुगतान करने समेत निष्पक्ष नीति लागू करने के निर्देश देने की मांग की गई है। याचिका में शार्ट सर्विस कमीशन की महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन प्रदान करने के लिए आवश्यक स्पेशल बोर्ड-5 से संबंधित एक अगस्त, 2020 के सामान्य निर्देशों और स्पेशल बोर्ड-3 के आयोजन के लिए किसी नीति के अभाव को चुनौती दी गई है।