एक हाथ एक पैर ही सही, जज्बा दो गुना है...
अलग-अलग साइकिल पर एक साथ शुरू हुई यह यात्रा 9800 किमी की दूरी पूर्ण करने के बाद खत्म हुई। इनके हौसले को लिम्का बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड ने भी सलाम किया।
रायपुर [प्रशांत गुप्ता]। बचपन के दो दोस्त, लेकिन एक का एक हाथ नहीं है और दूसरे का एक पैर नहीं। दोनों ही दिव्यांग, मगर दोनों ने ही साइकिल से लगभग 10,000 किलोमीटर का सफर तय कर पूरी दुनिया के सामने चुनौती पेश कर दी है। इन बाल सखाओं का यह रिकॉर्ड लिम्का बुक में भी सुनहरे अक्षरों में दर्ज है। एक पैर गंवा चुके घनश्याम ने अब अपने एक हाथ वाले बाल सखा मोतीलाल के साथ मिलकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दरख्वास्त की है कि उन्हें पाकिस्तान, चीन, नेपाल व बांग्लादेश की साइकिल यात्रा करने की अनुमति प्रदान की जाए।
हौसला, हिम्मत और जुनून... इन बातों को समझना हो तो छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित गरियाबंद जिले के छोटे से गांव लेटीपारा आना होगा। यहां एक मिडल स्कूल में शिक्षक घनश्याम देवांगन (48) से जब आपकी मुलाकात होगी तब इन तीन शब्दों का सटीक अर्थ स्पष्ट हो जाएगा। लंबी बीमारी के बाद घनश्याम को अपना बायां पैर गंवाना पड़ा था। उन्हें बोन कैंसर था, पांच ऑपरेशन हुए इसके बाद भी जब बीमारी नहीं गई तो डॉक्टर ने पैर काटना ही उचित समझा। यहीं से उनकी जिंदगी ने करवट ली।
एक पैर गंवाने के बाद घनश्याम के दिल-दिमाग में साइकिल यात्रा का रिकार्ड बनाने का जुनून सवार हो चुका था। इसके लिए उन्होंने साथ लिया एक हाथ से दिव्यांग बाल सखा मोतीलाल को। मोतीलाल के साथ एक हादसा हुआ और उन्हें बायां हाथ गंवाना पड़ गया, लेकिन उन्होंने भी इसे अपनी लाचारी नहीं बनने दिया। इन दोनों की जोड़ी ने रायपुर से तीन दिसंबर 2009 को प्रस्थान किया, भारत के 23 शहरों को साइकिल से नापा और 28 अप्रैल 2010 को दिल्ली में विराम लिया।
अलग-अलग साइकिल पर एक साथ शुरू हुई यह यात्रा 9800 किमी की दूरी पूर्ण करने के बाद खत्म हुई। इनके हौसले को लिम्का बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड ने भी सलाम किया।