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जानें- भारत के लिए ट्रंप की अपेक्षा बिडेन क्‍यों साबित नहीं होंगे बेहतर अमेरिकी राष्‍ट्रपति, एक्‍सपर्ट व्‍यू

जानकार मानते हैं कि भारत के नजरिए से बिडेन से बेहतर राष्‍ट्रपति साबित हो सकते हैं ट्रंप। इसकी एक नहीं कई वजह हैं। ट्रंप प्रशासन के दौरान भारत और अमेरिका के बीच संबंध काफी मजबूत हुए हैं। वहीं बिडेन चीन के प्रति काफी नरम हैं।

By Kamal VermaEdited By: Published: Mon, 12 Oct 2020 11:31 AM (IST)Updated: Mon, 12 Oct 2020 12:28 PM (IST)
जानें- भारत के लिए ट्रंप की अपेक्षा बिडेन क्‍यों साबित नहीं होंगे बेहतर अमेरिकी राष्‍ट्रपति, एक्‍सपर्ट व्‍यू
चीन के प्रति ट्रंप हैं सख्‍त और यही रुख है भारत के लिए सही

नई दिल्‍ली (ऑनलाइन डेस्‍क)। अमेरिका के राष्‍ट्रपति चुनाव में अब एक माह से भी कम समय रह गया है। डेमोक्रेट प्रत्‍याशी जो बिडेन और राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप के बीच दो प्रेसिडेंशियल डिबेट हो चुकी हैं और दो होनी बाकी हैं। हालांकि, इनमें से भी एक डिबेट को रद किया जा चुका है। ऐसे में केवल एक ही डिबेट शेष रह गई है। ऐसे में आने वाला हर दिन बेहद खास होने वाला है। बहरहाल, अमेरिका और वहां रहने लोगों के लिए ट्रंप और बिडेन में से कौन सा प्रत्‍याशी ज्‍यादा बेहतर होगा, ये उनके लिए बड़ा सवाल है, लेकिन अमेरिकी राजनीति पर नजर रखने वाले जानकार मानते हैं कि भारत के लिहाज से ट्रंप-बिडेन से बेहतर राष्‍ट्रपति साबित होंगे।

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जवाहरलाल नेहरू के प्रोफेसर बीआर दीपक का मानना है कि ट्रंप के अमेरिकी राष्‍ट्रपति का पद संभालने के बाद से ही भारत और अमेरिकी संबंधों को नए नई दिशा मिली है। ये संबंध पहले से अधिक मजबूत हुए हैं। उनके मुताबिक, ऐसा केवल द्विपक्षीय मामलों में ही देखने को नहीं मिला है, बल्कि कई वैश्विक मुद्दों पर दोनों की राय एक समान ही दिखाई दी है। इनमें सबसे खास चीन का मुद्दा है। राष्‍ट्रपति ट्रंप ने जब से पदभार ग्रहण किया था तभी से उन्‍होंने चीन को लेकर सख्‍त रुख अपनाना शुरू किया। इतना ही नहीं, वैश्विक मंच पर अमेरिका ने कई मौकों पर भारत का मजबूती से साथ दिया। वैश्विक मंच पर मिले इस साथ की बदौलत दोनों देशों ने दशकों बाद एक लंबा रास्‍ता तय किया है।

वहीं, बिडेन की बात करें तो बराक ओबामा प्रशासन में उन्होंने 2009 से लेकर 2017 तक अमेरिका के उपराष्‍ट्रपति का अहम पद संभाला है। इस कार्यकाल के दौरान भारत-अमेरिका के बीच संबंधों को वो धार नहीं मिल सकी थी, जो ट्रंप प्रशासन के दौर में मिली। प्रोफेसर दीपक का कहना है कि बिडेन का चीन के प्रति काफी लचीला रुख रहा है। प्रेसिडेंशियल डिबेट के दौरान और दूसरी चुनावी सभाओं में भी ट्रंप ने इसको लेकर बिडेन पर निशाना साधा है। ट्रंप का ये भी कहना है कि बिडेन ने अमेरिकियों का हक मारकर उनकी नौकरियां चीन को दे दी थीं।

दीपक मानते हैं कि ट्रंप प्रशासन से पहले अमेरिका की कोई इंडो-पैसिफिक पॉलिसी नहीं थी। ट्रंप प्रशासन ने न सिर्फ इसको बनाया, बल्कि चीन के बढ़ते कदमों को रोकने के लिए कई देशों को एकजुट भी किया। हाल ही में टोक्‍यो में हुई क्‍वाड की मीटिंग में भी चीन को लेकर अमेरिका ने अपना रुख बेहद स्‍पष्‍ट कर दिया था। दीपक का कहना है कि भारत की शांति और विकास के पथ पर अग्रसर रहने के लिए चीन के पांव में बेड़ियां डालना बेहद जरूरी है। उनके मुताबिक, यदि इस चुनाव में ट्रंप दोबारा राष्‍ट्रपति बनने में सफल हुए तो भारत से अमेरिका के संबंध और नए स्‍तर पर जा सकेंगे। वहीं, बिडेन यदि अपनी जीत दर्ज करने में सफल हुए तो उनकी चीन के प्रति नीति इतनी आक्रामक नहीं होगी। हालांकि, चीन के मुद्दे पर ट्रंप के फैसले को वो शायद न पलटें, लेकिन उनका रुख वहां की कम्‍युनिस्‍ट सरकार के प्रति काफी हद तक लचीला ही रहेगा। ये रवैया भारत के संदर्भ में ज्‍यादा बेहतर नहीं होगा।

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