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तीन तलाक के बाद दूसरी शादी और हलाला पर भी लगे रोक, मुस्लिम महिला आंदोलन संगठन ने की मांग

सफिया अख्तर बताती हैं कि मुस्लिम समाज में बहु विवाह हलाला कम उम्र में शादी जैसी प्रथा अभी भी लागू हैं। उनका संगठन इनके खिलाफ संघर्ष कर रहा है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Sat, 01 Aug 2020 10:09 AM (IST)Updated: Sat, 01 Aug 2020 10:09 AM (IST)
तीन तलाक के बाद दूसरी शादी और हलाला पर भी लगे रोक, मुस्लिम महिला आंदोलन संगठन ने की मांग
तीन तलाक के बाद दूसरी शादी और हलाला पर भी लगे रोक, मुस्लिम महिला आंदोलन संगठन ने की मांग

आनंद दुबे, भोपाल। देश की मुस्लिम महिलाओं को एक साल पहले लागू हुए तीन तलाक कानून से काफी राहत मिली है। हालांकि इस कानून के दायरे में बहुविवाह, हलाला, कम उम्र में विवाह जैसी प्रथा शामिल नहीं हैं। इन पर रोक लगाने के लिए महिलाएं मुस्लिम कानून की मांग कर रही हैं, जिसका मसौदा शरीयत पर आधारित हो। भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की प्रमुख सफिया अख्तर ने बताया कि तीन तलाक के खिलाफ उनका संगठन वर्ष-2008 से संघर्ष कर रहा था। इसके लिए अलग-अलग राज्यों में महिलाओं से राय जुटाई गई। वकीलों, बुद्धिजीवियों से मशविरा करने के बाद तीन तलाक के खिलाफ 70 हजार लोगों के हस्ताक्षर का ज्ञापन प्रधानमंत्री को भेजा था। 

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कानून का सकारात्मक प्रभाव पड़ा

तीन तलाक कानून लागू होने के बाद ई-तलाक पर प्रभावी अंकुश लग गया है। इसके पहले फोन, ई-मेल, एसएमएस आदि से दूर देश में बैठा व्यक्ति तीन बार तलाक लिखकर भेज देता था। इससे पीड़ित महिला के पास न्याय के लिए कोई रास्ता ही नहीं बचता था। उन्होंने बताया कि तीन तलाक के खिलाफ इस कानून का सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। 2016, 2017 और 2018 में सूचना के जरिए तीन तलाक का चलन अधिक था। कानून लागू होने के बाद इसमें भारी कमी आई है।

संगठन के मुंबई केंद्र को 2016 में 31 मामले मिले थे। 2019 में एक भी मामला सामने नहीं आया। 2020 में अब तक केवल एक मामला सामने आया है। एक से अधिक शादी पर भी लगे रोक सफिया अख्तर बताती हैं कि मुस्लिम समाज में बहु विवाह, हलाला, कम उम्र में शादी जैसी प्रथा अभी भी लागू हैं। उनका संगठन इनके खिलाफ संघर्ष कर रहा है।

शरीयत के मुताबिक बने मुस्लिम कानून

 संगठन की मांग है कि इसके लिए समाज के लिए मुस्लिम कानून लागू किया जाना चाहिए, जो शरीयत के मुताबिक बने। उन्होंने कहा कि शरीयत में बहु विवाह के लिए सर्शत अनुमति है, जिसका पालन नहीं किया जाता है। 1937 में शरिया एप्लीकेशन एक्ट बना था। उस वक्त पुरुषों ने मनमाफिक प्रावधान शामिल कर लिए थे। इसके बाद उसमें संशोधन वर्ष 1986 में शाहबानो प्रकरण के दौरान किया गया था। संगठन की मांग है कि नए कानून में हलाला के लिए मजबूर करने वाले व्यक्ति के खिलाफ सजा का प्रावधान होना चाहिए। इसके अतिरिक्त पीडि़ता की आजीविका के लिए भी नए कानून में प्रावधान होना चाहिए।

शरीयत में इन सभी बातों का प्रावधान पूर्व से मौजूद है। कजियात में भी बदले नियम तीन तलाक कानून लागू होने के पहले महिला या पुरुष (दारुल कजा) कजियात में जाकर सिर्फ तीन तलाक बोलने या सुनने का ही जिक्र करते थे। इससे तलाक हो जाता था, लेकिन कानून लागू होने के बाद कजियात ने भी नई गाइडलाइन लागू की है। इसके तहत पति-पत्नी को कजियात में एकसाथ उपस्थित होना पड़ता है। पहले काउंसलिंग के माध्यम से उनके बीच समझौते की कोशिश की जाती है। इसके बाद तीन माह तक का समय दिया जाता है। इस दौरान दोनों पक्षों की सहमति होने पर ही तलाक की अनुमति दी जाती है। इस दौरान दोनों में से कोई भी पक्ष कोर्ट जाने के लिए भी स्वतंत्र रहता है।


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