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बदलाव के दो सालः राजमार्गों का सफर हुआ आसान कई अड़चनें हुईं दूर

मोदी सरकार बनने पर पहली बार देश में रोजाना लगभग अठारह किलोमीटर राजमार्गों का निर्माण होने लगा है।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Sat, 21 May 2016 06:41 PM (IST)Updated: Sat, 21 May 2016 07:08 PM (IST)
बदलाव के दो सालः राजमार्गों का सफर हुआ आसान कई अड़चनें हुईं दूर

संजय सिंह, नई दिल्ली। अरसे की सुस्ती के बाद सड़क परिवहन एवं राजमार्ग क्षेत्र एक बार फिर गतिविधियों का केंद्र बन गया है। पहली बार देश में रोजाना लगभग अठारह किलोमीटर राजमार्गों का निर्माण होने लगा है।यह ऐसी उपलब्धि है जिसे सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी के दो साल में रोजाना तीस किलोमीटर सड़कें बनाने के दावे के पूरा न होने के बावजूद कम करके नहीं आंका जा सकता। हालांकि यह भी एक तथ्य है कि आधा दर्जन बहुचर्चित परियोजनाएं तमाम प्रयासों के बावजूद पूरी नहीं हुई हैं। इसी तरह सड़क परिवहन क्षेत्र के बहुप्रतीक्षित सुधार भी अटके हुए हैं। इन्हें आगे बढ़ाने में सरकार लाचार दिखाई दे रही है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण सड़क परिवहन और सुरक्षा विधेयक का अटकना है जिसे लेकर बड़ी उम्मीदें बांधी गई थीं। लगता है, सरकार ने ट्रांसपोर्टरों और आटोमोबाइल निर्माताओं की लॉबी के आगे हथियार डाल दिए हैं।

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दिख रहा बदलाव
राजमार्ग निर्माण क्षेत्र में निश्चित रूप से बदलाव दिखाई दे रहे हैं। संप्रग सरकार के समय में यह क्षेत्र सुस्ती का शिकार हो गया था। मंजूरियों में विलंब, भूमि अधिग्रहण तथा यूटिलिटी शिफ्टिंग में देरी के कारण कन्सेशनेयर्स के लिए परियोजनाओं को समय पर पूरा करना कठिन हो गया था। लागत बढ़ने के कारण बैंकों और वित्तीय संस्थाओं ने भी सड़क परियोजनाओं से हाथ खींचने शुरू कर दिए थे। टोल दरों और वसूली प्रक्रिया को लेकर चालू परियोजनाओं के प्रमोटरों के प्रति भी स्थानीय जनता और किसानों का गुस्सा जगह-जगह फूट रहा था।

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80 परियोजनाओं पर काम

ऐसे में, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अनुभवी नितिन गडकरी को सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी तो उम्मीद बंधी। और आशा के अनुरूप गडकरी ने चार्ज संभालते ही सबसे पहले लंबित परियोजनाओं के पेंच खोलने शुरू किए। मंत्रालय एनएचएआइ, बैंकर और निवेशकों के साथ रात-दिन बैठकें कर उन्होंने समस्या के मूल कारणों की खोजकर उन्हें एक-एक कर सुलझाना शुरू किया। फिर क्या था, देखते ही देखते अस्सी परियोजनाओं में फिर काम शुरू हो गया। इससे पहले पौने चार लाख करोड़ लागत की चार सौ से ज्यादा सड़क परियोजनाएं किसी न किसी वजह से अटकी हुई थीं। यही नहीं, जिन परियोजनाओं में कन्सेशनेयर
के लिए किसी भी तरह से आगे काम करना संभव नहीं था, उन्हें अन्य कंपनियों के जरिए पूरा कराने के लिए एक्जिट पॉलिसी लाई गई।

दो और अड़चनें दूर कीं
पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर और रेलमंत्री सुरेश प्रभु के साथ मिलकर राजमार्ग क्षेत्र की दो अन्य अड़चनों को दूर करने का काम भी गडकरी ने किया। इससे पर्यावरण मंजूरी के नियम उदार हुए और अकेले इस वजह से अटकी कई परियोजनाओं का काम भी चल निकला। दर्जनों राजमार्ग परियोजनाएं इसलिए अटकी थीं क्योंकि उनके रास्ते में पड़ने वाली क्रॉसिंग पर ओवरब्रिज और अंडरब्रिज का डिजाइन जल्दी मंजूर नहीं होता था। प्रधानमंत्री से मिलकर गडकरी ने इस समस्या का स्थायी समाधान कर दिया। इसके तहत रेलवे बोर्ड ने आरओबी और आरयूबी के सभी संभव डिजाइनों के साथ एक पोर्टल तैयार किया। इस पोर्टल के जरिए किसी भी आरओबी/
आरयूबी की ऑनलाइन मंजूरी तीन महीने में प्राप्त की जा सकती है। पहले इसमें तीन-तीन साल लग जाते थे।

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हाइब्रिड-एन्यूटी मॉडल

नई सड़क परियोजनाओं के मामले में भी गडकरी ने नया दृष्टिकोण अपनाया है। बीओटी मॉडल की दिक्कतों को देखते हुए उन्होंने इन परियोजनाओं के लिए ईपीसी मॉडल को अहमियत दी जिन्हें सरकार के खर्च पर जल्दी पूरा किया जा सकता है। इसके अलावा हाइब्रिड-एन्यूटी का एक नया मॉडल भी पेश किया गया है। इतना ही नहीं, गडकरी ने पाया कि अधिकांश सड़क परियोजनाएं योजना आयोग और वित्त मंत्रालय के हस्तक्षेप के कारण अटकती हैं। नीति आयोग के गठन के साथ योजना आयोग का हस्तक्षेप तो खत्म हो गया था। लेकिन वित्त मंत्रालय की दखल की अब भी संभावना थी। इस अड़चन को दूर करने के लिए गडकरी ने एक हजार करोड़ रुपये तक की परियोजनाओं की मंजूरी का अधिकार भी अपने मंत्रालय को दिला दिया। इससे निवेशकों और बैंकों का खोया विश्वास बहाल होने लगा है और उनमें नई उम्मीद का संचार हुआ है। इससे दो साल में रोजाना तीस किलोमीटर तो नहीं, लेकिन 18 किलोमीटर सड़कें अवश्य बनने लगी हैं। गडकरी को लक्ष्य प्राप्त न कर पाने का अफसोस तो है लेकिन उनका कहना है कि बड़ा लक्ष्य रखने से ही काम में प्रगति होती है। यही वजह है कि अब चालू वर्ष के लिए उन्होंने सड़क निर्माण के लक्ष्यों को ढाई गुना कर दिया है।

इलेक्ट्रॉनिक टोलिंग

कुछ यही हाल नवनिर्मित राजमार्गों और एक्सप्रेसवे का भी था। यहां भी टोल प्लाजा जाम का सबब बने हुए थे। इससे निपटने के लिए गडकरी ने राष्ट्रीय राजमार्गों पर इलेक्ट्रॉनिक टोलिंग योजना को शीघ्रातिशीघ्र अमली जामा पहनाने की मुहिम छेड़ दी। इससे देखते ही देखते 380 टोल प्लाजाओं में अधिकांश में इलेक्ट्रॉनिक टोलिंग के इंतजाम हो गए हैं। इसके लिए सभी प्लाजा पर एक लेन निर्धारित कर दी गई है। इस व्यवस्था को वाहनों पर लागू करने तथा वाहन स्वामियों को आरएफआइडी टैग लगाने को प्रेरित करने के लिए बैंकों के साथ मिलकर फास्टैग प्रणाली लाई गई। एक विशेष कंपनी का गठन कर उसे इस प्रणाली को संभालने का जिम्मा दिया गया।शुरू में फास्टैग व्यवस्था में दिक्कतें आईं थीं, लेकिन अब यह फिर पटरी पर आ गई है। इलेक्ट्रॉनिक टोलिंग का लाभ कई तरह से सामने आया है। इससे ओवरलोडिंग रोकने में भी मदद मिल रही है।

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वाहन उत्सर्जन पर अंकुश

जलवायु परिवर्तन समझौते के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को देखते हुए गडकरी ने वाहन उत्सर्जन पर अंकुश लगाने की पहल भी की है। अब 2020 से पूरे देश में सिर्फ बीएस-6 मानक ईंधन ही उपलब्ध होगा। इसके लिए पेट्रोलियम मंत्रालय और वाहन निर्माताओं के साथ मिलकर कदम उठाए जा रहे हैं। ई-रिक्शा को कानूनी मान्यता दिलाने में भी गडकरी की प्रमुख भूमिका रही है। इसी तरह इसरो से सस्ती बैट्री का विकास करवा कर ई-बसों का संचालन कराने में भी उनका अहम योगदान है। पुणे में उन्होंने सीएनजी और हाइब्रिड बसें भी चलवा दी हैं।

हादसों पर नकेल

वह हर साल पांच लाख सड़क दुर्घटनाओं तथा डेढ़ लाख मौतों के आंकड़ों को 2020 तक आधा करने के लक्ष्य को पूरा करने की दिशा में काम कर रहे हैं। इस क्रम में राष्ट्रीय राजमार्गों पर 726 दुर्घटना बहुल स्थानों की पहचान कर ली गई है और सड़क का डिजाइन सुधारने को कहा गया है। गडकरी ने राष्ट्रीय राजमार्गों के दोनों ओर हरित पट्टी विकसित करने की महत्वाकांक्षी योजना भी हाथ में ली है। महाराष्ट्र में इसके पायलट प्रोजेक्ट पर काम शुरू हो गया है। गडकरी यातायात नियमों को सख्त बनाने और जुर्माना तथा सजा बढ़ाने के लिए पूरी तरह नया कानून लाना चाहते हैं। उन्होंने सड़क परिवहन एवं सुरक्षा बिल नाम से इसका प्रारूप भी पेश किया है। लेकिन विभिन्न लॉबियों के दबाव में इसे आगे नहीं बढ़ा पा रहे हैं। लेकिन आरटीओ के भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के मकसद से ऑनलाइन ड्राइविंग टेस्ट शुरू कराने में वह कामयाब रहे हैं।

टोल वसूली बंद भी

राजमार्ग निर्माण के अलावा परिवहन और यातायात सुधार के लिए भी गडकरी के दिमाग में क्रांतिकारी योजनाएं हैं। हालांकि इन्हें अमली जामा पहनाने में उनके प्रयास पूरा रंग नहीं दिखा पाए हैं। इसके बावजूद कुछ मोर्चो पर जबदरस्त बदलाव हुआ है। उदाहरण के लिए, उन्होंने राष्ट्रीय राजमार्गों पर स्थित 63 पुलों पर होने वाली टोल की वसूली बंद करा दी है। ये वे पुल हैं जिनकी लागत और मुनाफा की वसूली बहुत पहले हो चुकी है।निरंतर टोल वसूली से इन जगहों पर जाम लगा रहता था।

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मंजूर हुई अहम सड़क परियोजनाएं

* दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे
* ईस्टर्न पेरीफेरल एक्सप्रेसवे
* रामपुर-रुद्रपुरकाठगोदाम (एनएच-87)
* लखनऊ-सुल्तानपुर 6 लेन (एनएच-56)
* सुल्तानपुर-वाराणसी 4 लेन (एनएच-56)
* शिमला बाईपास 4 लेन (एनएच-22)
* दिल्ली-पानीपत 8 लेन (एनएच-1)
* नगीना-काशीपुर 4 लेन (एनएच-74)
* रामबन-बनिहाल 4 लेन (एनएच-44)
* बनिहाल-ऊधमपुर 4 लेन (एनएच- 44)
* चकेरी-इलाहाबाद 6 लेन (एनएच-2)
* हंडिया-वाराणसी 6 लेन (एनएच-2)
* आगरा-इटावा 6 लेन (एनएच-2)

परियोजनाएं जो नहीं पूरी हुईं

* गुड़गांव-कोटपूतली 6 लेन (एनएच-8)
* पानीपत-जालंधर 6 लेन (एनएच-1)
* गंगापुल-रामादेवी उन्नयन (एनएच-25)
* इटावा-चकेरी 6 लेन (एनएच-2)
* दिल्ली-आगरा 6 लेन (एनएच-2)
* जम्मू-ऊधमपुर 4 लेन (एनएच-44)
* श्रीनगर-बनिहाल 4 लेन (एनएच 44)
* हरिद्वार-देहरादून 4 लेन (एनएच-58/ 72)


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