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अमेरिका में होते होंगे स्पाइडर मैन और सुपरमैन, यहां तो 'टॉयलेट मैन' की है धूम

स्वच्छ भारत: शौचालय प्रणाली को दिया नया आयाम, अपशिष्ट जल को भी उपयोगी बनाने की तरकीब बताई।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 31 Jan 2019 10:27 AM (IST)Updated: Thu, 31 Jan 2019 01:43 PM (IST)
अमेरिका में होते होंगे स्पाइडर मैन और सुपरमैन, यहां तो 'टॉयलेट मैन' की है धूम
अमेरिका में होते होंगे स्पाइडर मैन और सुपरमैन, यहां तो 'टॉयलेट मैन' की है धूम

विशाल श्रेष्ठ, कोलकाता। हॉलीवुड में स्पाइडर मैन, सुपरमैन, बैटमैन जैसी फिल्में काफी सफल रही हैं। इसीलिए तो हम कह रहे हैं कि अमेरिका में होते होंगे स्पाइडर मैन, सुपरमैन... हमारे यहां तो 'टॉयलेट मैन' की धूम है। खास बात यह है कि यह टॉयलेट मैन फिल्मी नहीं बल्कि असली है। यह इतने मशहूर हैं कि इन्हें टॉयलेट मैन ऑफ बंगाल कहा जाता है।

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उन्हें उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले के एक गांव से सिर्फ इसलिए चले जाने को कहा गया था, क्योंकि उन्होंने वहां के सरपंच को घर में शौचालय बनाने की नसीहत दी थी। प. बंगाल में अब तक 500 से ज्यादा जैवशौचालयों का निर्माण कर चुके डॉ. अरिजीत बनर्जी अब ‘टॉयलेट मैन ऑफ बंगाल’ के नाम से मशहूर हो गए हैं। वे शौचालय प्रणाली को नया आयाम दे अपशिष्ट जल को भी उपयोगी बनाने की युक्ति सुझा रहे हैं।

बनर्जी ने शौचालय प्रणाली को इस कदर बदल डाला है कि शौच का अपशिष्ट जल अब उपयोगी बन गया है। उन्होंने गंगासागर मेला समेत धार्मिक मेलों में उमड़ने वाले श्रद्धालुओं के लिए अस्थायी शौचालयों का निर्माण करवाया। सिक्स टॉयलेट वैन के निर्माण की उपलब्धि भी डॉ. बनर्जी के नाम दर्ज है। इसके अलावा पूर्वी भारत में एसी टॉयलेट का कांसेप्ट भी उन्होंने दिया।

बेहला के ठाकुरपुर इलाके के रहने वाले डॉ. बनर्जी ने 15 साल कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों में प्रशासनिक स्तर पर काम किया, लेकिन दूसरों की जीवनशैली में सकारात्मक बदलाव लाने की सोच ने उन्हें इस कार्य में उतार दिया। स्वदेश आने के बाद उन्हें मैनपुरी स्थित गांव में जाने का मौका मिला। बकौल डॉ. बनर्जी, मैंने गांव के सरपंच को महंगी गाड़ी से शौच करने खेत जाते देखा। उनके पास एक नहीं, चार-चार महंगी गाड़ियां थीं। मैंने जब उनसे पूछा कि आप अपने घर में शौचालय क्यों नहीं बनवाते, तो वे भड़क गए और कहा कि घर में शौचालय का निर्माण कराने से गंदगी फैलेगी। मैंने समझाने का प्रयास किया तो बहस हो गई। इसके बाद उन्होंने मुझे गांव से चले जाने को कहा। मुझे अहसास हो गया कि समस्या की जड़ केवल अजागरूकता है। इसके बाद मैंने शौचालय बनवाने की ठानी और रैमेसिस आरपीएल नामक संस्था के जरिए इसमें अब भी जुटा हुआ हूं।

40 साल के डॉ. बनर्जी ने कहा, शौच में इस्तेमाल होने वाला पानी भूमिगत जल में जाकर मिलता है, जिससे वह भी दूषित होता है। गांव-देहात के लोग इसी भूमिगत जल का पीने में इस्तेमाल करते हैं, जिसके कारण वहां अक्सर डायरिया, हैजा समेत अन्य जल वाहित बीमारियां फैलती हैं। इसी को देखते हुए हमने ऐसे स्थायी शौचालयों व मोबाइल टॉयलेट का निर्माण किया, जिससे भूमिगत जल प्रदूषित न हो। इन शौचालयों में इस्तेमाल होने वाले जल का बागवानी में इस्तेमाल किया जा सकता है। यह पानी यूरिया से भरपूर होता है। इसकी दुर्गंध भी चली जाती है। वीरभूम को निर्मल जिला बनाने में डॉ. बनर्जी की बड़ी भूमिका रही है। वहां उन्होंने कई शौचालय बनवाए। इन उल्लेखनीय कार्यों को देखते हुए इंडियन चेंबर ऑफ कामर्स की ओर से वर्ष 2017 में उन्हें टॉयलेट मैन आफ बंगाल के खिताब से नवाजा गया।


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