मिलकर जीतेंगे हम कोरोना वायरस के खिलाफ जंग, घबराएं नहीं; रखें सावधानी
AIIMS के निदेशक डॉ. गुलेरिया ने बताया कि यह एक महामारी के खिलाफ लोगों की लड़ाई है। इसे जीतना है तो हर नियम का पालन करना ही पड़ेगा। ऐसा करने पर हम इस जंग को जरूर जीत सकेंगे...
नई दिल्ली, रणविजय सिंह। वैश्विक महामारी बना कोरोना (कोविड 19) ऐसा वायरस है, जिसकी अभी तक कोई ऐसी दवा नहीं आई, जिससे इसे शत-प्रतिशत काबू किया जा सके। मलेरिया व एचआइवी की कुछ दवाएं इसमें इस्तेमाल हो रही हैं लेकिन वे कितनी असरदार हैं, इसका परिणाम आना बाकी है। इस वायरस का संक्रमण बहुत तेजी से फैलता है, इसलिए मौजूदा समय में एक बात हर किसी को समझने की जरूरत है कि कोरोना अस्पताल की लड़ाई नहीं है।
हम अस्पताल में इस लड़ाई को कभी नहीं जीत पाएंगे। यह समुदाय की लड़ाई है, लोगों की लड़ाई है। इस लड़ाई को जीतना है तो लोगों को अपनी जिम्मेदारी समझकर शारीरिक दूरी के नियम का पालन करना ही पड़ेगा। जरूरत इस बात की है कि इसे मजबूरी के रूप में न लें। यदि हर कोई लॉकडाउन के नियम का पालन करेगा तो कोरोना के कहर से जल्दी बाहर निकलना संभव हो पाएगा।
हाल के दिनों में संक्रमण बढ़ने के दो प्रमुख कारण रहे। एक तो इस बीमारी के बारे में ज्यादा जानकारी मिलने लगी है। यह भी पता चल रहा है कि कुछ ऐसे भी संक्रमित लोग होते हैं, जिनमें कोई लक्षण नही होते लेकिन वे संक्रमण फैला सकते हैं। वे बीमारी के वाहक के रूप में काम कर रहे हैं। दूसरी बात यह है कि भले ही हमने लॉकडाउन किया है लेकिन यह भी मानना पड़ेगा कि कई जगहों पर और कई वर्गों में इसका ठीक ढंग से पालन नहीं हुआ। इससे लॉकडाउन की पहल को धक्का पहुंचा। इससे मामले एकदम से बढ़ गए हैं लेकिन इतने नहीं बढ़ रहे कि दोगुने होते चले जाएं। संक्रमण चरम पर पहुंचने की स्थिति नहीं बनी है। फिर भी यह गंभीर चिंता का विषय तो है ही, क्योंकि हॉटस्पॉट ज्यादा बन रहे हैं। अगर इन हॉटस्पॉट को नियंत्रित नहीं कर पाए तो मामले और ज्यादा बढ़ने शुरू हो सकते हैं। अगले कुछ दिन बेहद महत्वपूर्ण हैं। इसलिए यह कोशिश होनी चाहिए कि मामले ज्यादा बढ़ने न पाएं और स्थिरता बनी रहे।
घबराएं नहीं, रखें सावधानी : यदि देखें तो 50 साल तक की उम्र के जो मरीज हैं, उनमें मृत्युदर तो एक फीसद से भी कम है, करीब आधा फीसद है। इससे पीड़ित जवान व्यक्ति ठीक हो जाते हैं लेकिन वे बीमारी आगे फैला सकते हैं। इसलिए यदि किसी को भी लक्षण हैं तो घबराना नहीं चाहिए। उसे खुद को क्वारंटाइन करना चाहिए। यदि घर पर क्वारंटाइन नहीं हो सकते तो स्वास्थ विभाग की मदद लेकर क्वारंटाइन केंद्र में चले जाना चाहिए। इससे घर-परिवार व मोहल्ले में बीमारी नहीं फैलेगी। समझने की बात यह भी है कि यदि 60-70 साल से अधिक उम्र है और साथ में हाइपर टेंशन, मधुमेह, हृदय की बीमारी व फेफडे़ कमजोर हैं तो कोरोना गंभीर संक्रमण करता है। इससे निमोनिया हो सकता है और मरीज आइसीयू में वेंटिलेटर पर जा सकता है।
इसलिए जोखिम वाले इस वर्ग को बचाकर रखना है। यह बहुत जरूरी है कि बुजुर्ग लोग घर से बाहर बिल्कुल न जाएं। परिवार के लोग भी उनका ध्यान रखें। कई बार बच्चे बाहर जाते हैं, वे संक्रमण साथ लेकर आते हैं। वे तो ठीक हो जाएंगे लेकिन वे अपने दादा-दादी या नाना-नानी को संक्रमण दे देंगे तो हालत गंभीर हो जाएगी। इसलिए इस चेन को तोड़ें। एक तो संक्रमण समुदाय में न फैले और दूसरी बात यह कि हाई रिस्क वाले लोगों में न फैलने दें तो हम इस लड़ाई को काफी हद तक जीत सकते हैं।
हॉटस्पॉट इलाकों में सख्ती जरूरी : हॉटस्पॉट इलाके में ज्यादा मामले हैं। उन इलाकों में बहुत कड़ाई से नियमों का पालन कराना जरूरी है। देश का बहुत ज्यादा हिस्सा ऐसा है, जहां समुदाय में संक्रमण बिल्कुल नहीं है। हमें उन इलाकों को बचाकर रखना है क्योंकि उन इलाकों में भी संक्रमण फैला तो हेल्थ सिस्टम हर जगह सपोर्ट नहीं कर पाएगा। इस वजह से यह पूरी कोशिश होनी चाहिए कि हॉटस्पॉट से आगे बीमारी न जाने पाए। वहां बहुत आक्रामक तरीके से अभियान चलाकर हर संक्रमित व्यक्ति की पहचान कर उसे क्वारंटाइन व आइसोलेट किया जाना चाहिए, ताकि संक्रमण की चेन को तोड़ा जा सके। यह भी सुनिश्चित करना होगा कि उन इलाकों से किसी को बाहर नहीं जाने दिया जाए। लोगों को इसमें प्रशासन का सहयोग करना चाहिए। कई बार हॉटस्पॉट वाले इलाकों से लोग पीछे के रास्ते से बाहर निकलने की कोशिश करते हैं। ऐसे लोग इस लड़ाई में समाज का नुकसान कर रहे हैं। अपने थोड़े फायदे के लिए वे पूरे समाज में संक्रमण फैला रहे हैं। लोगों को यह बात भी समझनी चाहिए।
स्वस्थ रहने के लिए करें योग : जितने दिन लॉकडाउन रहेगा, उतने दिन लोगों के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ना स्वाभाविक है। ऐसी स्थिति में शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर रखने के लिए सुबह उठकर नियमित योग करें। कई लोगों ने तो घर पर ही वॉकिंग ट्रैक बना लिया है। जिनके घरों में दो-तीन कमरे एक सीध में अटैच हों, वहां इस तरह के ट्रैक बनाकर प्रतिदिन 50 से 100 चक्कर लगाकर व्यायाम कर सकते हैं। मानसिक स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना चाहिए। पूरे दिन टीवी पर कोरोना की खबरें देखने से भी मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। भले ही हम सामने से किसी से मुलाकात नहीं करें लेकिन फोन पर दोस्तों व रिश्तेदारों से संपर्क बनाकर रखें। योग के साथ ध्यान भी करें। अगर बहुत ज्यादा तनाव हो रहा हो तो कई हेल्पलाइन की मदद ली जा सकती है। एम्स की भी हेल्पलाइन है, जिसे मनोचिकित्सा विभाग द्वारा संचालित किया जा रहा है। उसमें विशेषज्ञ बताते हैं कि यदि तनाव व अवसाद है तो उससे बचने के लिए क्या किया जा सकता है।
निखारें अपनी दक्षता: लोग घर में भी खुद को अच्छे कार्यों में व्यस्त रख सकते हैं। इंटरनेट के जरिए कोई नई भाषा सीख लें, कोई नई तकनीक सीख लें। इस मौके का सकारात्मक सोच के साथ फायदा उठाना चाहिए। पेशेवर लोग इंटरनेट के माध्यम से अपनी स्किल बढ़ा सकते हैं, जो बाद में उनके कामकाज में मददगार बन सकती हैं।
पौष्टिक खुराक है फायदेमंद : हम इन दिनों बाहर जाकर व्यायाम नहीं कर पा रहे हैं तो घर में ही नियमित व्यायाम करते रहें और संतुलित भोजन लें। कुछ शोध बताते हैं कि संतुलित पौष्टिक आहार से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है इसलिए अच्छी खुराक लें। हरी सब्जियां व फल खूब लें।
स्वास्थ्यकर्मियों को भी ध्यान रखने की जरूरत : वैश्विक स्तर पर यह बात देखी जा रही है कि काफी संख्या में डॉक्टर व स्वास्थ्य कर्मचारी भी कोरोना की चपेट में आए हैं। इस वजह से स्वास्थ्यकर्मियों को भी अपना विशेष ध्यान रखना चाहिए। इसका सबसे अच्छा उपाय है कि पीपीई (पर्सनल प्रोटेक्शन इक्विपमेंट) इस्तेमाल करें और मरीज को सावधानी से देखें। कई बार ऐसा होता है जब मरीज की हालत खराब हो जाती है तो उस वक्त मरीज की जान बचाने के लिए ट्यूब डालते वक्त डॉक्टर मरीज के चेहरे के नजदीक होता है। इस दौरान संक्रमण का खतरा ज्यादा रहता है।
बंधी है उम्मीद : हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन से दुनियाभर में उम्मीद बंधी है। हम भी कोविड वार्ड में काम करने वाले स्वास्थ्यकर्मियों को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन प्रोफाइलेक्सीस दे रहे हैं। इसके अलावा उन मरीजों को भी दे रहे हैं जिन्हें सांस लेने में परेशानी व ऑक्सीजन की जरूरत पड़ रही है। इसके अलावा, इलाज में कई और नई दवाओं का ट्रायल किया जा रहा है। हालांकि इस तरह की कोई भी दवा बिना चिकित्सकीय परामर्श के खुद से कतई नहीं ली जानी चाहिए।
साधारण मास्क भी कारगर : स्वास्थ्यकर्मियों को एन-95 मास्क या सर्जिकल मास्क पहनने की जरूरत है, पर आम लोगों के लिए यह मास्क जरूरी नहीं है। आम लोगों के लिए हम कह रहे हैं कि साधारण मास्क, कपडे़ या रुमाल का मास्क बनाकर पहन सकते हैं। इसका फायदा यह होगा कि संक्रमित व्यक्ति के खांसने या छींकने से वायरस नहीं फैलेगा।
मास्क पहनना खुद की रक्षा से ज्यादा दूसरों की सुरक्षा और संक्रमण की चेन को तोड़ने के लिए जरूरी है। ऐसे संक्रमित व्यक्ति जिन्हें बहुत कम लक्षण होते हैं या जिन्हें कोई स्पष्ट लक्षण नहीं है यदि वे मास्क नहीं पहनेंगे तो जब वे सांस लेंगे और खांसी करेंगे तो उनके गले से वायरस बाहर हवा में आ जाएगा और फिर वह नीचे सतह पर आकर किसी चीज पर स्थिर हो जाएगा। उससे संक्रमण आगे फैलेगा इसलिए यदि चेहरे पर कपड़े का मास्क भी होगा, तब भी कुछ हद तक वायरस उसमें फंस जाएगा और वह आगे नहीं फैलेगा।
कोरोना अस्पताल की लड़ाई नहीं है, यह एक महामारी के खिलाफ लोगों की लड़ाई है। इसे जीतना है तो हर नियम का पालन करना ही पड़ेगा। ऐसा करने पर हम इस जंग को जरूर जीत सकेंगे...
डॉ. रणदीप गुलेरिया
निदेशक, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, दिल्ली