जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल के साथ हमले का जवाब देने वाले सूबेदार जोगिंदर सिंह की आज है जयंती
सूबेदार जोगिंदर सिंह के पास पर्याप्त मात्रा में न तो सैनिक थे ना ही असलहे उसके बाद भी वो चीनी सैनिकों के साथ डटकर लड़ते रहे।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल के नारे के साथ चीन की सेना का मुंहतोड़ जवाब देने वाले सुबेदार जोगिंदर सिंह का आज जयंती है। उन्होंने अपनी पूरी पलटन के साथ चीन की सेना का डटकर मुकाबला किया था। हालांकि उनके पास उस समय न तो अधिक मात्रा में हथियार थे ना ही उनके पास आधुनिक हथियार, उसके बाद भी उन्होंने तवांग पर चीन की सेना का जमकर मुकाबला किया था। इससे पहले भी सूबेदार द्वितीय विश्व युद्ध और 1947-48 के पाकिस्तान युद्ध में भी अपना रण कौशल दिखा चुके थे।
जोगिंदर सिंह की बहादुरी
तवांग पर चीन की नजर पहले से ही रही है। 1962 के युद्ध में चीन ने यहां भी मोर्चा खोल दिया था। तवांग में बम ला के करीब तोंगपेन ला में दोनों देशों के बीच जबरदस्त जंग लड़ी गई। उत्तर-पूर्व फ्रंटियर एजेंसी के नाम से जाना जाने वाला यह क्षेत्र अब अरुणाचल प्रदेश में है। कुछ सैनिकों के लिए तो युद्ध का बिगुल एकदम हैरान करने वाली घटना थी, क्योंकि वे लखनऊ में हो रहे एक बास्केटबॉल टूर्नामेंट में शामिल होने गए। टूर्नामेंट को कैंसिल कर सैनिकों को तुरंत अपनी बटालियन में शामिल होने का निर्देश दिया गया।
द्वितीय विश्व युद्ध में दिखाया था कौशल
जयपुर से 1 सिख रेजिमेंट को भी यहां बुलाया गया। सूबेदार जोगिंदर सिंह अपनी पलटन के इंचार्ज थे। वे जल्द ही आर्मी से रिटायर होने वाले थे। वे द्वितीय विश्व युद्ध और 1947-48 के पाकिस्तान युद्ध में भी अपना रण कौशल दिखा चुके थे। सूबेदार जोगिंदर सिंह के साथ सिर्फ 29 सैनिक थे और उनके पास न तो अच्छे हथियार थे और न ही वहां के ठंडे हालात के अनुसार कपड़े ही मौजूद थे। जोगिंदर सिंह जानते थे कि वे यहां सिर्फ अपने साहस के दम पर ही टिके रह सकते हैं, इसलिए वे लगातार सैनिकों का साहस बढ़ाते रहे।
ऐसे बढ़ाया सैनिकों का हौसला
20 अक्टूबर के दिन चीन ने नामकचू पोस्ट पर हमला किया और तवांग में उस ओर बढ़ना शुरू कर दिया जहां सूबेदार जोगिंदर सिंह और उनकी पलटन मोर्चा संभाले हुए थी। लेकिन चीन ने 23 अक्टूबर को सुबह 5.30 बजे हमला बोला। जोगिंदर सिंह की एक सिख रेजिमेंट पलटन ने उनका जोरदार तरीके से सामना किया। चीन को भारी नुकसान हुआ और इस मोर्चे पर उसे पीछे हटना पड़ा। हालांकि जल्द ही चीन ने और ज्यादा ताकत से दूसरी बार हमला बोल दिया। जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल के नारे के साथ सूबेदार जोगिंदर सिंह की पलटन ने इस हमले का भी जवाब दिया।
घायल होने के बाद संभाली एलएमजी
वे अच्छी तरह से जानते थे कि उनके पास बहुत कम सैनिक और हथियार बचे हैं, जबकि दुश्मन अत्याधुनिक हथियारों से लैस और बड़ी संख्या में है। वे अपने सैनिकों को लगातार मातृभूमि का कर्ज उतारने के लिए प्रेरित कर रहे थे। इसी दौरान सूबेदार जोगिंदर सिंह बुरी तरह से घायल हो गए, लेकिन उन्होंने एलएमजी पर अपनी पोजिशन थामे रखी वो वहां से नहीं हटे, उन्होंने और उनकी पलटन ने दुश्मन का बहादुरी से सामना किया। कम हथियार और सैनिकों के साथ वो मोर्चें पर बहुत अधिक देर तक नहीं ठहर सके। उसके बाद चीनी सैनिकों ने उनको बंधक बना लिया।
दुश्मन ने भी दिया जोगिंदर सिंह को सम्मान
चीनी सैनिक जोगिंदर सिंह को बंदी बनाकर ले गए और फिर वे कभी वापस नहीं लौटे। सूबेदार जोगिंदर सिंह को उनके अदम्य साहस, समर्पण और प्रेरक नेतृत्व के लिए मरणोप्रांत सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से नवाजा गया। चीन को जब पता चला कि जोगिंदर सिंह को भारत का सर्वोच्च सम्मान मिला है तो उन्होंने भी इस बहादुर का सम्मान किया। सम्मान करते हुए उन्होंने सूबेदार जोगिंदर सिंह की अस्थियां भारत को लौटाईं।