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भारत में कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए बढ़ानी होगी टीकाकरण की गति, संख्या के हिसाब से दूसरे नंबर पर भारत

संख्या के आधार पर टीकाकरण में भारत दूसरे स्थान पर है। आबादी के आधार पर भारत बहुत पीछे है। पिछले साल से अब तक दुनियाभर के 110 देशों में कोरोना संक्रमण के कुल मामले कम से कम 50 हजार या इससे ज्यादा हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 21 Jun 2021 12:07 PM (IST)Updated: Mon, 21 Jun 2021 12:27 PM (IST)
भारत में कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए बढ़ानी होगी टीकाकरण की गति, संख्या के हिसाब से दूसरे नंबर पर भारत
अग्रिम आर्डर नहीं देना भी वैक्सीन कमी की बड़ी वजह है।

नई दिल्‍ली, जेएनएन। चीन के वुहान में कोरोना संक्रमण का पहला मामला आए डेढ़ साल से ज्यादा का वक्त बीत चुका है। ज्यादातर देशों में इस साल आई महामारी की लहर ज्यादा घातक साबित हुई है। इन सबके बीच टीका ही है, जिसने उम्मीद जगाई है। आंकड़ों के विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि जहां टीकाकरण की गति तेज है, वहां संक्रमण के मामले तेजी से गिरे हैं। निश्चित तौर पर भारत में भी संक्रमण को रोकने के लिए टीकाकरण की गति को बढ़ाना होगा।

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कहां खड़े हैं हम

  • संख्या के आधार पर टीकाकरण में भारत दूसरे स्थान पर है। आबादी के आधार पर भारत बहुत पीछे है। पिछले साल से अब तक दुनियाभर के 110 देशों में कोरोना संक्रमण के कुल मामले कम से कम 50 हजार या इससे ज्यादा हैं।
  • इन 110 देशों से तुलना की जाए तो 60 से ज्यादा देश हैं, जो टीकाकरण मामले में आबादी के प्रतिशत के आधार पर भारत से आगे हैं। दोनों डोज के मामले में आगे रहने वाले देशों की संख्या 70 के करीब पहुंचती है।
  • आवर वल्र्ड इन डाटा के अनुसार 50 से ज्यादा देश ऐसे हैं जहां अब भी रोजाना के संक्रमण उनके पीक के 20 फीसद से ऊपर हैं। जहां मामलों में कम गिरावट आई है, वहां अब तक टीकाकरण भी तुलनात्मक रूप से कम ही हुआ है।
  • इनमें बमुश्किल 20 देश ही हैं, जिन्होंने 20 फीसद से ज्यादा की आबादी का अब तक टीकाकरण किया है।

टीका- टिप्पणी

  • बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में केवल जापान ही है, जहां भारत से धीमी गति से टीकाकरण हुआ है। लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि वहां संक्रमण भी भारत व अन्य देशों की तुलना में बहुत कम है।
  • ब्रिटेन ने आबादी की तुलना में 62 फीसद से ज्यादा को कम से कम टीके की एक डोज दे दी है। बड़े पैमाने पर टीकाकरण के दम पर वहां नए मामलों में तेज गिरावट आई है। अमेरिका ने भी 50 फीसद से ज्यादा लोगों को टीका लगा लिया है। लिहाजा अब वे ज्यादा निश्चिंत हो सके हैं।

ऐसे बढ़ रहे कदम

अब तक अभियान: देश में टीकाकरण की शुरुआत 16 जनवरी को हुई। शुरुआती उत्साह में रफ्तार ठीक-ठाक रही, लेकिन समय के साथ तमाम भौतिक-राजनीतिक बाधाएं सिर उठाने लगीं। टीके की आपूर्ति और मांग में असंतुलन के आरोप लगने लगे। मूल नीति पर राज्यों ने सवाल उठाए। मामला अदालतों में भी गया। सब कुछ दुरुस्त करने की मंशा से अब केंद्र ने पूरा कार्यक्रम अपने हाथ में ले लिया है और 21 जून से केंद्रीय टीकाकरण अभियान का आगाज हो रहा है।

टीके की किल्लत के बीच राज्य सरकारों ने बढ़ाया दबाव, शुरू हुई टीके पर राजनीति

अभियान की शुरुआत में सरकार ने छह से आठ महीनों के दौरान 30 करोड़ हेल्थ और फ्रंटलाइन वर्करों के टीकाकरण की योजना बनाई थी। इसमें वह भी लोग शामिल थे, जिनकी उम्र ज्यादा थी और जो विभिन्न बीमारियों से पीड़ित थे। जब दूसरे दौर का संक्रमण शुरू हुआ तो राज्य युवाओं का टीकाकरण किए जाने को लेकर सरकार पर दबाव बनाने लगे। केंद्र ने एक मई से सभी वयस्कों को टीका लगाने की घोषणा कर दी। चूंकि टीकों की आपूíत जून से पहले बढ़ने की उम्मीद नहीं थी, इसलिए यह घोषणा सरकार के गले की फांस बन गई है।

दूसरे दौर का संक्रमण शुरू होने के बाद राज्य टीकाकरण का काम अपने हाथ में लेने के लिए केंद्र पर दबाव बनाने लगे। इस पर केंद्र ने उन्हें खुले बाजार से टीका खरीदने और 18 से 44 वर्ष के लोगों को टीका लगाने की अनुमति प्रदान कर दी। हालांकि अधिकांश कंपनियों ने राज्यों को वैक्सीन देने से ही इन्कार कर दिया।

  • अग्रिम आर्डर नहीं देना भी वैक्सीन कमी की बड़ी वजह है।
  • टीकों की कमी को लेकर विशेषज्ञों की राय भी कम जिम्मेदार नहीं है। शुरुआत में वे वयस्कों के टीकाकरण को मना कर रहे थे, लेकिन बाद में उनके सुर बदल गए।

आबादी की हिस्सेदारी में पीछे

देर से टीकाकरण शुरू होने के बावजूद भारत सर्वाधिक टीका लगाने वाले देशों में शुमार है। हालांकि आबादी के हिस्सेदारी के रूप में भारत जरूर पिछड़ता दिखता है। आने वाले दिनों में जिस तरह से कई नई वैक्सीन मिलने की उम्मीद है और घरेलू वैक्सीन की उत्पादन क्षमता में इजाफा किए जाने की बातें हो रही हैं, उससे टीकाकरण की रफ्तार तेज होने की आस बंधती है।

टीकों का सबसे बड़ा उत्पादक

पोलियो, डिप्थीरिया सहित किसी अन्य बीमारी के लिए जो भी टीके बनाए जाते हैं, उनमें से अधिकांश भारत में ही बनते हैं। अगर कोरोना टीकों की बात करें तो अप्रैल मध्य तक भारत 95 देशों को साढ़े छह करोड़ से अधिक टीके दे चुका था। जब दूसरे दौर का संक्रमण बढ़ा तो देश में टीकों की कमी हुई। केंद्र सरकार ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए फाइजर, माडर्ना और जानसन एंड जानसन जैसी कंपनियों से कोरोना टीका खरीदने को लेकर बातचीत शुरू की। यह स्थिति तब थी, जब इनमें से किसी भी कंपनी ने अपने टीके बेचने के लिए भारत में आवेदन नहीं किया था। अब रूस की स्पूतनिक वी की भी लाखों डोज देश के सभी बड़े शहरों में आ चुकी हैं। अमेरिका ने भी भारत को एस्ट्राजेनेका की करोड़ों खुराक देने की बात कही है।


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